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मां का फैसला

अरुण गिजरे

‘‘राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेज दी गई है, माया को फांसी की सजा हुई है…’’ चाचा सबको बता रहे थे। ‘‘…माया ने जो भी किया, ठीक किया।’’
मैं भी चाचा की बात सुन रहा था। उन्होंने आगे बताया – ‘‘तकरीबन एक साल पहले उसने… माया ने अपने बाईस साल के लड़के को अपने ही हाथों से बंदूक चलाकर मार डाला।’’
‘‘क्यों?’’ मैंने पूछा।
‘‘गलत संगत में पड़कर बिगड़ गया था, दारु पीना, जुआ खेलना, घर में गाली-गलौज, मारपीट करना… और फिर धीरे-धीरे मुझसे और माया… अपनी मां से पैसे छीनकर ले जाने लगा…।’’ चाचा ने कहा।
मैंने कहा – ‘‘फिर…?’’
‘‘फिर… एक दिन कमबख्त ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर अशोक भाई की बेटी की इज्जत को तार-तार करके, उसे जिंदा जला कर मार डाला…’’ चाचा ने आगे बताया ’’…पुलिस ने उसके तीनों दोस्तों को तो मुठभेड़ में मार डाला, लेकिन ये… बच निकला, और भागकर चुपके से घर में आकर दरवाजा बंद करके कुंदी चढ़ा दी… मेरी और माया की नींद तो तब खुली, जब बाहर से किसी ने दरवाजा खटखटाया… दरवाजा खोला तो… देखा कि पुलिस की जीप और चार पुलिस वाले खड़े थे… मुझे और माया को सारी हकीकत पुलिस वालों से पता चली। उसी समय माया फुर्ती से अंदर गई और अलमारी से बंदूक निकालकर सीधे छत पर पहुंची… वो सो रहा था या… सोने का नाटक कर रहा था। माया की आंखों से आग बरस रही थी और… पुलिस वाले ऊपर छत पर पहुंचते इसके पहले ही माया ने तीन गोलियां उसके… अपनी कोख से पैदा अपने लड़के के सीने में उतार दीं…’’ कहते हुए चाचा रुके और अपनी आंखों से आंसू पोंछकर बोले – ‘‘…माया ने उसे… अपने लड़के को मार डाला और… इसके लिए माया को कोई पश्चाताप नहीं… और मुझे भी।’’ चाचा इतना कहकर चुप हो गए।
अब मुझे, चाचा को… हम सबको इंतजार है राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका के फैसले का।

मरना भी अपने हाथ नहीं

‘‘इसी का नाम जिंदगी है, बाबूजी’’ वो बोला।
‘‘ये भी कोई जिंदगी है… रोज एक नई समस्या खड़ी हो जाती है।’’ मैंने हैरान होकर कहा।
‘‘हां बाबूजी, यही जिंदगी है…’’ उसने कहा – ‘‘…हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ।“
‘‘लेकिन इस समस्या के लिए तो मैं बिल्कुल तैयार नहीं था।’’ मैंने फिर हैरान होकर कहा।
‘‘किसी भी समस्या के लिए जिंदगी में कोई पहले से थोड़े तैयार रहता है, बाबूजी।’’ उसने मुझे समझाया।
‘‘लेकिन मैं तो तंग आ गया ऐसी जिंदगी से।’’ मैंने लगभग रोते हुए कहा।
‘‘लेकिन जीना तो पड़ेगा ही न… बाबूजी…’’ उसने फिर समझाते हुए कहा, ‘‘…ये समस्याएं ही जिंदगी का इम्तिहान हैं… और इसमें हमेशा नये-नये सवाल पूछे जाते हैं।’’
‘‘नहीं नहीं… मैं… मैं जीना नहीं चाहता… अब बस… मैं मर जाऊंगा… बस…’’ मैंने आवेश में कहा।
‘‘ये जीना-मरना, सब ऊपर वाले के हाथ में है… हमारे हाथ में कुछ भी नहीं।’’ उसने कहा।
‘‘जीना नहीं… मुझे तो मरना है…।’’ कहते हुए भावावेश में मैंने दौड़कर सामने वाले कुएं में छलांग लगा दी। कुएं में पानी बहुत कम था। वो कुएं के पास आकर मुझे देखकर मुस्कुराया… फिर गांव वालों के साथ मिलकर उसने मुझे उस कुएं से बाहर निकाला। मेरे पैर की हड्डी चार जगह से टूट गई थी। अस्पताल में डॉक्टर ने बताया कि ऑपरेशन करना पड़ेगा और लोहे का रॉड डालना पड़ेगा। मैं दर्द से कराह रहा था।
उसने मेरे पास आकर मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा – ‘‘बाबूजी, मरना भी अपने हाथ में नहीं है…।’’

पता : लेले का बगीचा, लोहागढ़, ढोलीबुवा का पुल, लश्कर, ग्वालियर – 474001 (मध्य प्रदेश)

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