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First : हिन्दी कहानी/कविता प्रतियोगिता 2020 (Story)

शतरंज के घोड़े

उज्ज्वल गुप्ता

‘‘तुम्हें क्या लगता है, वो दोनों मान जाएँगे हमें नौकरी पर रखने के लिए।’’ अपनी अधखुली आँखों से अभय की ओर देखते हुए रुद्र ने कहा।
‘‘मानेंगे कैसे नहीं, हमारे पास ऑफर ही ऐसा है। इस इतने बड़े ऑफर के लिए बस छोटी-सी ही तो शर्त है। वही नौकरी जो कुछ महीने पहले हमारी थी और जिस तरह से मैंने उन्हें इस रहस्यमयी ऑफर के बारे में बताया था, वो दोनों काफी उत्सुक लग रहे थे। तुम बस कल सुबह दस बजे तैयार रहना, कल सन्डे भी है।’’
अपना आखिरी पैग खत्म करके ‘बारशाला’ से दोनों फ्लैट की ओर चल दिए।

कुछ महीने पहले…
‘‘अब तो ये जिंदगी बोझ-सी लगने लगी है।’’ अभय ने बेबसी दिखाते हुए अपने गिलास से एक घूँट पी कर कहा।
हर वीकेंड की शाम की तरह ही आज भी दोनों दोस्त ‘बारशाला’ में एक टेबल पर एक-दूसरे की ओर चेहरा करके बैठे हुए थे। ये बारशाला उनका सबसे पसंदीदा बार था। या यूँ कहें कि इस बार के अलावा शायद ही पिछले दो-तीन सालों में वो दोनों किसी और बार में मिले हों।
अभय और रुद्र हर वीकेंड बारशाला में अपनी-अपनी की हुई कमाई के बारे में बात करते हुए ठहाका मारा करते थे और अक्सर एक-दूसरे को बताते थे कि कैसे हाई क्लास कस्टमर ब्रांडेड चीजों के चक्कर में कितना भी पैसा फेंकने को तैयार हो जाते हैं। पर आज वो दिल को अजीज लगने वाली ये बातें करने के मूड में बिल्कुल नहीं थे।
‘‘…पर आखिर हम कर ही क्या सकते हैं, ये फैसला तो सरकार का है, भारत में अब घोड़ों की रेस बंद हो चुकी है, अच्छा होगा अब तुम भी ये समझ ही जाओ।’’ रुद्र के स्वरों में नशे के साथ हताशा झलक रही थी।
‘‘हाँ तो यहाँ की सरकार ने जो लागू कर दिया है वो तो यहाँ के लिए ही है न, दुनिया में और देश भी तो हैं, जहाँ ये अब भी कानूनी तरीके से होता है।’’ अभय ने बातचीत का सिलसिला जारी रखा।
चार साल से अभय और रुद्र दोनों दोस्त हैं। दोनों की उम्र भी चैबीस-पच्चीस साल की है और लगभग चार साल से ही दोनों चाँदनी चैक की सबसे बड़े कपड़े की दुकानों में शामिल दो दुकानों पर मैनेजर भी हैं। जिस दुकान में रुद्र काम करता है, उसी दुकान से तीन-चार शॉप छोड़कर अभय वाली दुकान आती है।
उन्हें पैंतीस-चालीस हजार के आसपास सैलरी मिलती थी। साथ ही समय-समय पर बोनस और कभी-कभी कुछ कस्टमर्स को इनिशिएट करने पर कमीशन भी मिल जाता था। इस तरह वे महीने के पचास-साठ हजार कमा लेते थे, शादियों के सीजन में ये कमाई और बढ़ जाती थी।
इन्हीं दुकानों के आॅनर भी बहुत अच्छे दोस्त हैं, जो कि एक बड़ी वजह है इनकी दोस्ती की। इन दुकानों पर काम से पहले तो घोड़े की रेस जैसा कुछ दोनों के जीवन में आया ही नहीं था, पर दुकानों के मालिक इन रेसों पर पैसा लगाने के शौकीन थे।
गुड़गांव में इसी तरह का एक-एक हॉर्स ट्रेक था, जहाँ दशकों से हॉर्स बैटिंग होती आ रही थी। ये हॉर्स रेस वीकेंड पर ही होती थी, जिसका समय सुबह दस बजे के आसपास था।
दोनों अपने शॉप आॅनरों के साथ वहाँ हर सन्डे जाते थे। शुरू-शुरू में तो उन्हें ये वक्त की बर्बादी लगती और यह भी कि ये तो अमीरों के चोचले हैं। पर जब दो-तीन महीने बीते, उन्हें भी इसमें रस आने लगा था।
जैसे-जैसे समय बीता, दोनों ही मालिकों के विश्वासपात्र होते गए। एक साल के करीब हुआ होगा कि अब से दोनों ही अपने-अपने शॉप आॅनरों की तरफ से पैसों का व्यवहार करने लगे।
मालिकों को जितने पैसे रेस में किसी घोड़े पर लगाने होते, वे यथा स्थिति रुद्र अथवा अभय से बोल देते। ये हर सन्डे का खेल था, ये कभी हार तो कभी जीत का खेल था।
समय के साथ अभय और रुद्र को भी घोड़ों की रेस का अच्छा अनुभव होता गया। अब अक्सर घोड़ों पर पैसे लगाने से पहले शॉप आॅनर्स उनसे भी यथा स्थिति सलाह करने लगे।
कई बार उन लोगों ने अपने-अपने शॉप आॅनर्स को हजारों रुपए जिताए थे, जिसके लिए उन्हें इनाम भी मिलता था, पर उन्हें तो पैसों से ज्यादा ये रेस पसन्द थी … ये छलांगे मारते घोड़े पसंद थेे। वे बेचारे घोड़े, जिन्हें खबर भी नहीं होती कि उनके एक-एक सेकेंड पर लाखों लाख रुपए दाँव पर लगे होते हैं।
घोड़ों की रेस के साथ हर सन्डे एक और खेल होता था, ये खेल था शतरंज का। दोनों शॉप आॅनर्स का मानना था कि शतरंज से दिमाग तेज होता है, और यह तेज दिमाग घोड़ों की रेस के नजरिए से उपयोगी भी था। चारों लोग मिलकर बाजी पर बाजी खेलते और आपस में खूब ठिठोली करते, जिससे उनके सम्बंध भी प्रगाढ़ होते गए।
अभय और रुद्र हर शनिवार बारशाला आते। एक-एक घूँट के साथ अगली सुबह को लेकर अपनी-अपनी रणनीतियों पर बातें करते। रुद्र कहता कि कल का दाँव देखना रॉकी ही जीतेगा, तो अभय खीझ कर गिलास मुँह से हटाते हुए चीख पड़ता, देख लेना तुम, कल का दिन तो शिम्बा के नाम रहेगा।
उनकी बातों में जब-जब घोड़ों का और उनकी रेस का जिक्र आता, उन्हें ऐसा लगता, मानों उनका नशा दुगना हो गया है, उनके जाम की मादकता दो गुनी बढ़ जाती।
उन्हें बियर से ज्यादा लत लग चुकी थी घोड़ों की। उनके लिए तो वीकेंड का मतलब ही एक तरह से शनिवार शाम बारशाला और अगले दिन सुबह दस बजे गुड़गांव का रेसिंग ट्रैक होता।
‘‘…और भी देश हैं ? क्या मतलब है तुम्हारा और देशों में ये सब बंद भी होता तो चलता, पर यहाँ ये नयी सरकार इसे कानूनी बनाए रखती काश !’’ रुद्र ने बेमन से एक और घूँट गले में उतार लिया।
‘‘आई एम सीरियस, हम यूरोप जा सकते हैं, वहाँ तो घोड़ों के इतने रेसिंग ट्रैक हैं कि हर हफ्ते भी दो-तीन जाओगे तो महीनों लग जाएंगे पूरे रेसिंग ट्रैक में दाँव खेलने में।’’ अभय की बात भले ही नशे वाली लग रही हो, पर उसे आज बियर जरा भी नहीं चढ़ी थी।
‘‘अगर ऐसी बात है, तो मैं भी तैयार हूँ, पर कहाँ चलेंगे ? और जानते हो वीजा कैसे मिलेगा वहाँ का ? मुझ पर तो पासपोर्ट भी नहीं है, कभी सोचा ही नहीं था कि भारत के बाहर भी जाना पड़ सकता है, वो भी अभी।’’
‘‘अपनी जो भी सेविंग्स है, उसके साथ तैयार रहो। मेरे पहचान में एक-दो लोग हैं, जो नॉमिनल फीस पर अपनी जाने की सारी व्यवस्था कर देंगे। हम इंग्लैंड चलते हैं, वहाँ हॉर्स रेसिंग के ट्रैक बहुत हैं और इन गोरों ने राज भी तो किया था हम पर, उसका हिसाब भी तो चुकता करना बाकी है।’’ अभय ने आँख मारते हुए कहा।

25 दिन बाद…
बारशाला में दोनों ने नशे में रहते हुए जो फैसला लिया था, साकार हो चुका था। दोनों इग्लैंड की सरजमीं पर पहुँच चुके थे। रुद्र को ब्रिटेन के लोगों का अंग्रेजी का एक्सेंट समझने में दिक्कत हो रही थी, पर अभय इसका आदी था। शायद इसके पीछे का कारण उसका हॉलीवुड से लेकर ब्रिटिश मूवीज देखना रहा होगा। ब्रिटिश मूवी सीरीज हैरी पॉटर का तो वो फैन था।
यहाँ तक आने के चरणों में उनकी सेविंग्स का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो चुका था।
अब वो कोई आलीशान होटल या इस तरह की रहने की व्यवस्था करने में खर्चा नहीं कर सकते थे। उन्होंने रहने के संभावित विकल्पों पर नजर मारते हुए एक घर चुना, जो कि एक भारतीय मूल के परिवार का था। उन दोनों ने निर्णय किया कि वो एक ही कमरे में एडजस्ट हो जाएंगे, जहाँ छोटी-सी किचन भी उसमें ही बनी हुई थी और अटैच्ड टॉयलेट।
लन्दन में नियम था कि एक ही कमरा दो बेचलरों को रेंट पर नहीं दिया जा सकता, जिसकी जानकारी वो इन रूम की तलाशी के दौरान ले चुके थे। …तो उन्होंने घर के आॅनर से कहा, अभी हम दोनों कुछ ही दिन के लिए रहेंगे और हममें से कोई एक जल्दी ही नयी जगह देख लेगा। सुबह होते ही वे दोनों सबसे पहले कैम्पटन पार्क रेसकोर्स जाते हैं, जहाँ पर उन्हें पता चलता है कि हॉर्स बैटिंग में लगने वाला सबसे छोटा दाँव भी बहुत बड़ा है और सभी हॉर्स रेसकोर्स का यही हाल है। अगर उनकी जेब पर नजर डाली जाए, तो ऐसे दो दाँव से ज्यादा वो नहीं खेल सकते थे …बिना जीते। अभी तक तो वो अपने शॉप आॅनर्स की तरफ से खेलते थे, उन्हें सलाह देते थे, उनके कहने पर पैसे लगाते थे, पर अब वो पहली बार खुद के पैसे लगाने जा रहे थे। लिहाजा वो दो बाजियों का रिस्क नहीं उठा सकते थे।
उन्होंने सोचा कि यहाँ उन्हें कुछ काम करना चाहिए, जिससे वो हॉर्स बैटिंग में ज्यादा से ज्यादा दाँव खेलने लायक कमाई कर लें। पर क्या काम मिल सकता है ? उन्हें कुछ न सूझा। रात को वे ये सोचकर निराश हो सो गए कि कल बाहर जाकर पता लगाएँगे।
अगले दिन सुबह-सुबह न्यूज पेपर को तलाशते वक्त उनकी नजर एक एडवरटाइजमेंट पर पड़ी, जिसने ओझल होते घोड़ों की रेस पर दाँव लगाने के सपने को फिर से जीवंत कर दिया।
इश्तिहार था कि लंदन की किसी अंग्रेज फेमिली को एक योगा टीचर की जरूरत है। ये पढ़कर रुद्र की आँखे चमक उठीं थी कि आखिर जो वो रोज सुबह बाबा रामदेव के योग वाले वीडियो देखते हुए प्राणायाम-व्यायाम करता था, आज यहाँ लन्दन में उसके पैसा कमाने का जरिया बन सकता है।
रुद्र बचपन से ही गाँव के माहौल में पला-बढ़ा था। उसका शरीर बाहर से जितना मजबूत था, अंदर से उतना ही लचीला, जिसका कारण था शुरू से कसरत-व्यायाम की ओर उसका रुझान। आज इसका प्रतिफल उसे मिलने वाला था। उसने जल्दी ही उस परिवार से सम्पर्क किया और अगले दिन की अपॉइंटमेंट भी फिक्स कर ली।
अगले दिन रात में अभय को अपने ट्विटर अकाउंट को स्क्रोल करते वक्त ऐसा कुछ दिखा, जिसने उसकी हताशा में आशा की रेखा खींच दी।
इंग्लैंड की क्रिकेट टीम से हाल ही में रिटायर हुए एक खिलाड़ी को हिंदी सीखने के लिए एक टीचर की आवश्यकता थी। ये वही क्रिकेटर था, जिसे पिछले आईपीएल के एक मैच के दौरान दिल्ली के कोटला स्टेडियम में उसने खेलते हुए देखा था। जब वह क्रिकेटर बाउंड्री पर फील्डिंग करने आया था, तो उसका नाम चिल्लाने वाले दर्शकों की तमाम आवाजों में एक आवाज अभय की भी थी। उसी दिन स्टेडियम से घर जाकर उसने सबसे पहला काम जो किया था, वो इस खिलाड़ी को ट्विटर पर फॉलो करना था।
इंग्लैंड टीम के इस पूर्व खिलाड़ी का पसंदीदा शॉट रिवर स्वीप था और भारतीय मीडिया में वह उस दिन काफी सुर्खियों में रहा था, जब भारत-इंग्लैंड के एक मैच के दौरान भारतीय टीम के एक ऑफ स्पिनर से उसकी तीखी नोंक-झोंक हो गयी थी।
बहरहाल कुछ ही महीनों में आईपीएल का अगला सीजन था, जिसमें यह खिलाड़ी शामिल होने वाला था। पिछले आईपीएल में उसे लगातार प्रतिद्वंदी खिलाड़ियों ने स्लेज किया था, वो भी खासतौर पर हिंदी में। वह इससे बहुत परेशान था, इसलिए इस बार थोड़ी-बहुत हिंदी सीखकर इंडिया जाने का मन बना लिया था उसने।
अभय ने जल्दी से उसकी पोस्ट पर कमेंट किया कि मैं लन्दन में ही हूँ, कुछ ही दिन पहले भारत से आया हूँ और मैं आपके काम आ सकता हूँ। साथ ही उसने एक डायरेक्ट मैसेज भी भेज दिया था।
एक-दो दिन के अंतर से दोनों को ही उनके आने वाले काम के लिए इंटरव्यू का समय मिल चुका था।
रुद्र योगा क्लास के लिए एकदम परफेक्ट था और अभय का अंग्रेजी एक्सेंट सटीक था ही और हिंदी ? वो तो लगभग समस्त उत्तर भारतीयों की ही मातृभाषा है।
कुछ ही दिनों में दोनों को नौकरी मिल चुकी थी और वे ज्वाइनिंग भी कर चुके थे। अब उनकी आय पौंड में थी। यह उनकी पिछली नौकरी की कमाई से बहुत ज्यादा थी, जो वे भारत में करते थे। वो इतना कमा लेना चाहते थे कि इत्मीनान से घोड़ों की दौड़ पर पैसा लगा सकें और उन्हें यह भी ध्यान रखना था कि उनको नौकरी पर रखने वालों का मन्तव्य भी पूरा हो जाए। क्योंकि यहाँ उन पर भारतीय होने का टैग लगा था। उनका कोई भी अच्छा या गलत काम उनके देश की छवि को ही चिन्हित करता।
उन्होंने अपने वीजा को एक्सटेंड करने के लिए सम्बंधित अथॉरिटी को एप्लीकेशन दी थी। इस काम में उन्हें इंग्लैंड क्रिकेट टीम के पूर्व क्रिकेटर और हाल में ही हिंदी सीखने के लिए बने अभय के शिष्य के कॉन्टेक्ट्स की भी काफी मदद मिल गयी थी।
कुछ दिन बाद अभय ने अपना सामान उस क्रिकेटर के पास की ही कॉलोनी में शिफ्ट कर लिया। रुद्र की योगा प्रैक्टिस करने वाली फैमली पास में ही थी, तो वो उसी इंडियन फैमली के यहाँ बना रहा।
हफ्ते के पाँच दिन दोनों काम करते और वीकेंड पर उनकी छुट्टी होती। यहाँ उन्होंने शनिवार की शाम निकालने के लिए बारशाला जैसा ही कोई बार देख लिया था, जहाँ उन्हें बियर के वे ही ब्राण्ड उपलब्ध थे, जिनकी लत चाँदनी चैक के बार में लग चुकी थी। अंग्रेजी वाइन या इस तरह की किसी ड्रिंक से वो बचना ही चाह रहे थे। उन्हें पता था कि इनके अभ्यस्त न होने के कारण इनका असर ज्यादा होगा और यह भी कि वाइन में एल्कोहल बियर की तुलना में कहीं ज्यादा रहता है।
हफ्ते के पाँच दिनों तक काम, शनिवार शाम को बार में मिलना, ये उनके हर हफ्ते का रूटीन बन चुका था। साथ ही बार से वो दोनों साथ में ही अपने में से किसी एक के निवास स्थान चले जाते, जहाँ रविवार की सुबह से उनका शतरंज का खेल जमता था। शतरंज का खेल जिसमें घोड़े थे, वो भी चारय घोड़ों से येे लगाव ही तो उन्हें अपने देश से इतनी दूर खींच लाया था।
रुद्र न सिर्फ अंग्रेज फैमली को योगा सिखाता, बल्कि उन्हें भारतीय संस्कृति में योग के महत्व के बारे में भी बताता, जो उसने गाँव के बड़े-बूढ़ों से सुन रखा था, कि कैसे योग न सिर्फ शारीरिक मजबूती पर बल देता है, बल्कि लोगों की मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति में भी सहायक होता है। इन बातों में अंग्रेजों का मन भी खूब लगता।
अभय भी उस क्रिकेटर को हिंदी सिखाने में रम चुका था। हर दिन के साथ उसके स्टूडेंट की हिंदी में निखार आने लगा। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब एक रोज अपना ट्विटर चेक करते वक्त उसने अपने शिष्य का हिंदी में ट्वीट पढ़ा, जो नमस्ते से शुरू हुआ था, जिसकी लिखावट तो अंग्रेजी के रोमन अल्फाबेट थे, पर भाव हिंदी का था।
चार महीने बीते होंगे कि वो क्रिकेटर इतनी हिंदी समझने लगा था जो इस बार के आईपीएल में उसके काम आती। कुछ ही दिन में आईपीएल भी शुरू होने वाला था और अब अभय का काम भी यहाँ से खत्म हो गया था।
इसी समय के लगभग वो अंग्रेज परिवार भी योगा में इतना परिपक्व हो गया था कि अब बिना योगा टीचर के भी उनका यह रूटीन चलता रहे। रुद्र भी उनसे इजाजत माँगकर अपने मंतव्य की सार्थकता को लेकर खुश था।
दोनों दोस्तों के पास रहने-खाने और हर शनिवार को पीने में खर्चे के बाद भी पर्याप्त पौंड बचे हुए थे, जिससे आगे चलकर वो अपना ब्रिटेन आने का उद्देश्य पूरा करने वाले थे।
वो दोनों घोड़ों की रेस देखने के लिए बेचैन हो उठे। इस बात की खुशी भी थी कि घोड़ों की रेस पर जो पैसे वो अपने एक्स शॉप आॅनरों की तरफ से लगाया करते थे, अब ये दाँव वो खुद लगाएँगे, वो भी अपने पैसों से।
जैसे ही वो दोनों अपने-अपने कामों से फ्री हो गए थे, उन्होंने एक साथ मिलकर इस पल को सेलिब्रेट करने का प्लान बनाया। वो दोनों अगले शनिवार की रात बार नहीं गए। उन्होंने वाइन शॉप की ओर रुख किया और ब्रिटेन की फेमस रेड वाइन की दो बोटल रख लीं।
वो आज नशे में सराबोर होना चाहते थे। आज उन्होंने अंग्रेजी वाइन न पीने की बंदिश को भी तोड़ने का निश्चय कर लिया था। वो दोनों सीधे जिस बिल्डिंग में अभय रहता था, उसकी टैरिस पर जा पहुँचे। उन्होंने धीरे-धीरे वाइन के घूँट भरना शुरू किया। वाइन की कुछ ही मात्रा उनकी बॉडी में पहुँचने से वे मादकता से भर गए।
‘‘यार अभय, आज का ये हमारा जाम कल लगने वाली हमारी जिंदगी की पहली हॉर्स बैट के नाम।’’
‘‘कल तो वही नजारा होगा जो महीनों पहले गुडगाँव में हुआ करता था। वही घोड़े, वही छलांगे। एक-एक सेकेंड में धड़कन का बढ़ना, साँसों का थमना। आखिर तक सस्पेंस में उंगलियाँ मरोड़ना। कितना मिस किया था न इस सबको।’’
‘‘लेकिन तुम भी खूब जिगर वाले निकले भाई, उस दिन बारशाला में मैं तो हार मान बैठा था कि अब तो ये घोड़े सिर्फ टीवीयों पर ही दिखाई देंगे, पर तुम यहाँ ले ही आए।’’ रुद्र ने अभय की तरफ हाथ जोड़कर झुकते हुए कहा।
‘‘मुझे तो ये लग रहा है कि कब ये मनहूस रात बीते और कब हम वो आँखों को स्तब्ध कर देने वाला नजारा देख पाएं।’’
‘‘काश ऐसा होता कि अभी इसी वक्त हम दाँव लगा पाते घोड़ों पर, मेरा तो मन कर रहा है इसी वक्त अपनी यहाँ की सारी कमाई लगा दूँ किसी घोड़े पर।’’ नशा रुद्र की आँखों के साथ दिमाग पर भी चढ़ चुका था।
‘‘लगा सकते हैं न इसी वक्त। वो भी चार-चार घोड़ों पर।’’ अभय के स्वरों में धैर्य था, पर वो स्वयं लड़खड़ा रहा था।
‘‘कैसे ?’’ रुद्र की आँखे फटीं हुई थीं।
‘‘रुक, अभी आता हूँ।’’ यह कहते हुए अभय नीचे अपने कमरे की ओर बढ़ गया।
रुद्र ने सोचा कि उसे उल्टी आ रही होगी, इसलिए अपने रूम की तरफ गया है। वो वहीं बैठ कर तारों में कुछ देखने की कोशिश करने लगा। आसमान में तारों की लंबी टिमटिमाहट में वो अपनी पसंदीदा आकृति ढूंढ रहा था। वो अपने रेस के घोड़े ढूंढ रहा था।
कुछ ही देर में अभय आ गया था। उसके हाथ में शतरंज थी, जिसे उसने आश्वस्त निगाहों के साथ रुद्र की ओर बढ़ा दिया।
‘‘ये है आज के घोड़ों का ट्रैक … इस पर दौड़ेंगे आज घोड़े। वो घोड़े जो किसी दूसरे की मर्जी से नहीं, बल्कि हमारी इच्छा से चलेंगे।’’
‘‘भाई पागल है, ये कोई शतरंज खेलने का वक्त लग रहा है तुझे। लगता है तुझे ये अंग्रेजी वाइन कुछ ज्यादा ही चढ़ गई है।’’ रुद्र ने झुँझलाते हुए कहा।
‘‘नहीं रे ! वहाँ भी घोड़ों की बाजी होती थी और यहाँ भी घोड़ों की ही बाजी होगी, जिसका घोड़ा पहले मर गया उसकी हार।’’ वाइन के नशे में भी शतरंज के खेल में अभय द्वारा प्रस्तावित यह अद्भुत बदलाव तारीफ के काबिल था।
रुद्र ने अभय को उन नजरों से देखा जिन सम्मान की नजरों से आज की यह दुनिया अल्बर्ट आइंस्टीन और थॉमस एल्बा एडिसन जैसे वैज्ञानिकों की ओर देखती है।
इस महान सुझाव का दोनों ने कुछ देर तक तालियाँ पीटकर स्वागत किया। …और फिर शतरंज की बिसात बिछा दी गयी। दोनों ने टोकन के रूप में अपनी-अपनी वाइन की बोतल रख दी, जिसके माध्यम से उन दोनों ने लन्दन में पिछले चार महीनों में कमाई हुई अपनी पूरी पूँजी सांकेतिक तौर पर लगा दी थी। हालाँकि उनकी पूँजी में एक-डेढ़ हजार पौण्ड का अंतर था, पर किसी निष्ठावान जुआरी की तरह उन्होंने अपना सबकुछ लुटाने से परहेज नहीं किया। उस दिन वो दोनों ही धर्मराज युधिष्ठिर थे, जो आज की इस बिसात में अपना सर्वस्व दाँव पर लगा चुके थे।
वो सर्वस्व था उनका एक सपना… घोड़ों की रेस में पैसे लगाने का, जिसे पूरा करने के लिए दोनों इंग्लैंड आए, यहाँ मेहनत की और पौण्ड कमाए। उनके लिए एक अनजान देश में अपनी चार महीनों की मेहनत की ये कमाई किसी इंद्रप्रस्थ से कम नहीं थी।
बरहाल खेल शुरू हुआ। अभय होस्ट था, इसलिए रुद्र को सफेद रंग की गोटियाँ मिलीं, सफेद रंग के घोड़े मिले और पहली चाल भी उसी की थी।
एक-एक करके दोनों दोस्त अपने-अपने प्यादे आगे बढ़ाते गए। प्यादों के बाद ऊँट, हाथी यहाँ तक कि वजीरों ने भी अपने स्थान बदल लिए, पर घोड़े ? वो तो टस से मस नहीं हो रहे थे।
घोड़े आज शहंशाह थे। आज के युद्ध में उनकी कीमत राजा के समान थी। आज उन्हें भी सारे वारों से बचाया जा रहा था।
अभय ने जैसे ही अपने वजीर से शह दी, रुद्र द्वारा उसे बचाने के लिए राजा को ही खिसकाया गया … है मजाल कि उसे बचाने घोड़ा बीच में कूदा हो।
एक के बाद एक रुद्र की सेना के हाथी गए, ऊँट गए और कुछ देर बाद वजीर भी मारा गया। अब बस घोड़े बचे थे, जो बार-बार ढाई चलकर खुद को बचा रहे थे।
जवाब में सामने वाली सेना ने भी अपने हाथी और ऊँट खो दिए थे, पर घोड़ों के साथ अभय का वजीर बाकी था।
आखिरकार रुद्र को मिली शह बचाने का एक ही तरीका बचा था, घोड़े को राजा और वजीर के बीच में लाया जाए। और ऐसा करने पर वजीर द्वारा बेरहमी से घोड़ा मार दिया गया। तो क्या हुआ कि राजा उस वजीर को मार सकता था। खेल पहले ही खत्म हो चुका था।
रुद्र हारने के बाद बेतहाशा हँस रहा था, वो भूल गया था कि शतरंज की हार के साथ वो इंग्लैंड की जमीं पर हॉर्स बैटिंग का सपना भी गंवा चुका था।
बिसात पूरी होने के बाद दोनों ने अपनी-अपनी वाइन की बोटल खाली की और दोनों वहीं सो गए।
सुबह सो कर उठने के बाद दोनों बहुत देर तक एक दूसरे को अपलक देखते रहे। और याद करने की कोशिश करने लगें कि रात को आखिर हुआ क्या था।
एक-दो मिनट में ही कल रात का सारा किस्सा अभय की आँखों के सामने तैर गया।
‘‘तुम कल की बात को भूल जाओ यार, रात गयी बात गयी। अगर तुम्हारे पूरे पैसे मैं रख लूँगा तो फिर किसके साथ जाऊँगा रेस में पैसा लगाने। यहाँ हम दोनों साथ आए हैं और हॉर्स बैटिंग भी साथ में ही करेंगे मेरे भाई।’’ अभय ने हल्की उवासी लेते हुए कहा।
‘‘नहीं भाई, मेरी चिंता का कारण तो कुछ और है।’’ रुद्र ने शून्य की ओर देखते हुए कहा।
‘‘मैं समझा नहीं।’’
‘‘कल रात मेरे सपने में धर्मराज युधिष्ठिर आये थे।’’
‘‘युधिष्ठिर ?’’ अभय ने आँखें तरेरकर कहा।
‘‘हाँ भाई, वही महाभारत के धर्मराज युधिष्ठिर। उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा कि जुए में मैं अपना सारा राज्य हार गया, अपने भाई, अपनी भार्या यहाँ तक कि अपने आप को भी हार गया। पर फिर भी तुम हमारे वंशज होकर वही गलती कर रहे हो ? ये द्यूत सिर्फ और सिर्फ नाश लेकर आता है, एक पल में राजा को रंक बना देता है। क्या तुमने हमसे कुछ नहीं सीखा ? समाज को जो दिशा देने के लिए इस धर्मराज ने अपने सर पर महाभारत का सबसे बड़ा जुआरी कहलाने तक का कलंक ले लिया, क्या तुम्हें उसका थोड़ा-सा भी भान नहीं है ? उनके ये प्रश्न अभी भी मेरे कानों में गूँज रहे हैं दोस्त। मैं रात को बहुत नशे में था। एक पल तो लगा कि वे स्वयं ही मेरे सम्मुख खड़े हुए हैं। और फिर कल रात को जिस तरह मैं एक ही बाजी में अपनी पिछले चार महीनों की मेहनत की सारी कमाई हार गया, इसे भी तो नहीं नकारा जा सकता।’’
‘‘बात तो तुम्हारी सही है, पर फिर हॉर्स बैटिंग का क्या ? जिसकी वजह से हम-तुम आज अपने देश से इतनी दूर इस अजनबी जगह पड़े हुए हैं।’’
‘‘जुआ कोई भी हो, है तो आखिर जुआ ही। …और ऐसा भी नहीं है कि हमने यहाँ कुछ ही न पाया हो। अगर मेरे और तुम्हारे पिछले चार महीने की कमाई जोड़ दी जाए, तो हम दिल्ली में एक छोटा-सा फ्लैट ले सकते हैं। जितनी सेविंग्स करने में हमें वहाँ चार-पाँच साल लग ही जाते। और फिर जुआ न खेलने की इतनी बड़ी सीख भी तो मिली, जो खुद धर्मराज ही आकर दे गए।’’
दोनों को महाभारत का सबसे बड़ा रहस्य समझ आ गया था। आखिर महाभारत के इतने बड़े युद्ध का एक बड़ा कारण ही यह जुए का दुव्र्यसन था। इस अजनबी धरती पर रहने का कोई कारण अब नहीं रह गया था। वो वापस स्वदेश लौटने की तैयारियाँ करने लगते हैं।

आज…
बारशाला से फ्लैट पर पहुंचने से पहले वो दोनों देर तक उसे निहारते रहे। उस फ्लैट में रुद्र को अपनी योगा क्लासेस की यादें दिख रहीं थी, तो अभय ने उसमें एक अंग्रेज क्रिकेटर को सिखाई गयी हिंदी के शब्दों को जगमगाते हुए पाया। ये उनकी चार महीने और कुछ दिनों की इंग्लैंड यात्रा का परिणाम था, ये उनकी मेहनत का फल था।
दूसरी ओर भारत में जब से हॉर्स बैटिंग बंद हुई थी, दोनों दुकान मालिक भी बहुत अधीर थे। पर वो लोग तो अपनी दुकानें छोड़कर कहीं जा भी नहीं सकते थे। और फिर ये लत भी तो हर वीकेंड की थी। एक-दो बार किसी दूसरे देश जाकर घोड़ों की रेस में पैसा लगाकर तो ये भूख और भी बढ़ जाती।
दोनों ही ने अपनी-अपनी दुकान में खुद को पूरी तरह से खपा दिया। इतना कि जब से अभय और रुद्र गए हुए थे, उन्होंने अपनी दुकानों के लिए कोई मैनेजर भी नहीं रखा था। सारे कामों का मैनजमेंट वे ही देख रहे थे।
हर सन्डे शतरंज खेलना भी उन्होंने छोड़ दिया था, क्योंकि उनके हिसाब से तो शतरंज दिमाग तेज करने का एक उपकरण मात्र था। रेस बंद होने के साथ ये औपचारिकता भी बंद कर दी गयी थी।
अगले दिन ठीक सुबह दस बजे चारों एक-दूसरे के सामने थे। यह गुडगाँव का वही मैदान था, जहाँ कुछ महीने पहले इस समय घोड़े दौड़ा करते थे।
‘‘हमारे लिए क्या ऑफर है तुम लोगों के पास ?’’ एक शॉप आॅनर ने अपनी दाढ़ी के बालों पर हाथ घुमाते हुए पूछा।
यह सवाल पूछना ही हुआ कि दोनों एक दूसरे की ओर देखकर तुम बताओ, नहीं-नहीं तुम बताओ करने लगे।
‘‘कोई नहीं, मैंने रास्ते में आते वक्त ये शतरंज खरीद ली थी। सोचा था बड़े दिन हो गए हैं खेले हुए। अब इस शतरंज की एक बाजी से ही तय कर लेते हैं कि ऑफर कौन बताएगा।’’ अभय ने सबको शतरंज की एक नयी पैकिंग खोलकर दिखाते हुए कहा।
रुद्र ने भी तुरंत हामी भर दी और फिर एक बार बिछने लगी शतरंज की बिसात।
दोनों शॉप आॅनर पहले तो अचंभित हुए, पर फिर उन्होंने सोचा कि घोड़ों के इस रेसिंग ट्रेक पर घोड़ों को वो कितना मिस कर रहे हैं। वो घोड़े नहीं तो शतरंज के ही घोड़े सही, पर ये जगह तो घोड़ों के लिए ही जानी जाती है। तो क्या हुआ कि आज ये घोड़े सामने दूर तक फैले उस रेसिंग ट्रैक पर नहीं, बल्कि इस 10‘×10’ इंच के चेस बोर्ड पर दौड़ेंगे। उन्हें भी ये खेल देखना पुरानी यादें ताजा होने जैसा लगा।
दोनों ओर से फिर वही चालें होने लगीं, जैसी उस रात इंग्लैंड में किसी इमारत की छत पर हो रहीं थीं। सारे प्यादे आगे निकल रहे हैं, एक के बाद एक। उसके बाद ऊँट, हाथी… यहाँ तक कि वजीर भी। पर घोड़े अपने घर में ही कैद हैं। उनकी सुरक्षा में पूरी किलेबन्दी कर दी गयी। राजा के साथ ही इस किले में दो घोड़ों को और बंद कर दिया गया।
दोनों शॉप आॅनर्स अपनी त्योरियाँ चढ़ाकर बड़े ध्यान से इन अजीबोगरीब चालों को देख रहे, उन्हें ऐसा लगा कि मानो दोनों इंग्लैण्ड से शतरंज खेलने की कोई बहुत बड़ी कला सीख कर आए हैं।
वो दोनों तो ये देखकर मन ही मन हँसे जा रहे थे कि घोड़े से अभय का वजीर मर रहा है। काफी देर से … बस एक घोड़ा खोकर वजीर लिया जा सकता है, पर रुद्र का ध्यान पता नहीं कहाँ लगा हुआ है।
जब भी वो ऐसी ही कोई ऊट-पटांग चाल देखते, तब दोनों एक दूसरे की ओर विस्मय भरी नजरों से देखने लगते। ये सिलसिला कमोबेश पूरा खेल होने तक चला।
आखिरकार रुद्र के वजीर ने इस बार सामने रखे सफेद घोड़े को छका दिया। कोई भी ढाई चाल उसे नहीं बचा सकती थी, तो सामने हाथी आया …उसे किसी का सहारा नहीं था, तो वो मारा गया।
इधर दोनों शॉप आॅनर सोच रहे हैं कि इंग्लैण्ड जाकर दोनों की शतरंज भ्रष्ट हो गयी है। एक घोड़ा जिसे मारने पर रुद्र का वजीर भी न बचता, उसे बचाने के लिए अभय ने अपना हाथी मरवा लिया।
आखिर में घोड़ा मारा गया, तो सामने से एक ऊँट उठाकर एक शॉप आॅनर ने रुद्र का वजीर मार दिया। और कहने लगे कि रुद्र कितना पागल है, साफ दिख रहा था वजीर मारा जाएगा, फिर भी एक घोड़े के लिए इसे कुर्बान कर दिया।
पर उन्हें कहाँ पता था कि खेल तो खत्म हो चुका था पहले ही।
रुद्र ने विजय होने की घोषणा की, जिसे अभय ने सहज भाव से स्वीकार कर लिया।
तय शर्त के मुताबिक वो ऑफर अब अभय को सुनाना था।
लेकिन बीच में ही शॉप आॅनरों ने जानना चाहा कि ये खेल कैसे खत्म हुआ ? अभी तो राजा बाकी है, अभी तो शह और मात बाकी है।
तो अभय ने कहा – पहले ऑफर सुनिए, फिर ये रहस्य भी आपके सामने खुल जाएगा।
अभय ने इंग्लैण्ड जाने की पूरी कहानी सुना दी, यह भी बता दिया कि वो दोनों भले ही बोलकर गए थे कि किसी बड़े कारोबारी के यहाँ काम मिला है, इसलिए इंग्लैण्ड जा रहे हैं, पर वास्तव में वो जुआ खेलने जा रहे थे, घोड़ों का जुआ। और कैसे जिस दिन वो अपनी जिंदगी की पहली हॉर्स बैटिंग करने जा रहे थे, उस की ठीक पहले वाली रात को उनके साथ कुछ ऐसा हुआ था कि उन्हें ये घोड़ों पर दाँव लगाने का ख्याल ही छोड़ देना पड़ा। उन्होंने शतरंज के खेल में घोड़े को मारने पर हार-जीत का भेद भी खोल दिया। साथ ही इसमें धर्मराज युधिष्ठिर वाली बात का भी पूरा जिक्र शामिल था।
दोनों शॉप आॅनरों ने उनकी बात इत्मीनान से सुनी और उनसे कहा कि घोड़ों की इस रेस का जब एक रोज हम दोनों ने बैठ के हिसाब किया, तो पता चला कि हम लाखों रुपये उसमें हार चुके थे। हम तो बस किसी दिन जीतते, तो वो जीत की खुशी याद रहती और हम भूल जाते कि हम उस एक जीत से पहले कितनी बार हारे। बस एक जगह सारी रशीदें जरूर रखते गए थे, जो हर दाँव पर हमें मिलती थी और उन पर ही हमारी जीत या हार का हिसाब भी लिखा होता।
धीरे-धीरे सालों से लगाए गए ये पैसे जुड़-जुड़कर एक बड़ी रकम में बदल चुके थे, इतनी कि गुडगाँव में ही हम दोनों का एक-एक फार्म हाऊस और होता आज।
आज वो चारों ही समझ चुके थे कि खेल में पैसे लगाए जाते हैं तो कोई हारता है और कोई जीतता है, पर अगर खेल को उसकी असल भावना से खेला जाए तो हर खिलाड़ी ही जीतता है। खेल तो मनोरंजन का जरिया है, जुए का साधन नहीं।
अब फिर हर सन्डे सुबह दस बजे घोड़ों की दौड़ शुरू होती। शतरंज की बिसात बिछती। आज भी वही घोड़ा महत्वपूर्ण था, जो कुछ महीने पहले गुड़गांव में हुआ करता था। अंतर सिर्फ इतना है कि हॉर्स ट्रैक पर घोड़े भगाकर बाजी जीती जाती थी और इस शतरंज की बिसात पर घोड़े बचाकर।

पता : 32, शांति कुंज, गोकिलधाम सोसायटी, पिछोर, शिवपुरी- 473995 (म.प्र.)
मोबाइल : 7000790407
[email protected]

3 thoughts on “First : हिन्दी कहानी/कविता प्रतियोगिता 2020 (Story)

  1. नए पल्लव प्रकाशन का हृदय के अन्तःस्थल से धन्यवाद, मुझ जैसे नवोदित कहानीकार की रचना को स्थान देने के लिए।

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