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बेशक तुम्हें

हरि प्रकाश गुप्ता

बेशक तुम्हें
समझने की कोशिश बहुत की
पर समझ नहीं पाया हूं।
देर बहुत हो गई हमको
जब लौटकर तुम्हारे पास आया हूं।
समझ और समय का दोष नहीं है।
नादानियां हमारी हैं
और सही का ज्ञान नहीं है।
रास्ते तो आसान हैं पर
अपनी मंजिल की पहचान नहीं है।

चाहूं तुझे

चाहूं तुझे सुबह से शाम
लेता रहता तेरा ही नाम
फिर भी तुम्हें कुछ
समझ नहीं आता है
तेरे बिना रहा नहीं जाता है।
अब तुम्हीं बताओ
कुछ तो राह दिखाओ
समस्या बढ़ रही धीरे-धीरे
समझ नहीं कुछ आता है
चाहूं तुझे सुबह और शाम
रहा नहीं अब जाता है।

जवान-किसान

जवान हो तुम हिंद के
तुम से हिंद की आन है
किसान हो तुम हिंद के
तुमसे हमारी जान है
सीमा सुरक्षा की जिम्मेदारी
निभाते हो बड़े ईमान से
डरकर भागते दुश्मन
बचने अपनी जान से
आती आपदा किसी देश में
समय से पहुंच जाते हो
अपने कर्तव्य को बड़ी बहादुरी से
करके दिखाते हो
हिंद देश के जवान
हिंद को तुम पर नाज है
सारे विश्व में पहचान तुम्हारी आज है
किसान हमारे देश के बहुत महान हैं
सर्दी, गर्मी या बरसात
पैदा करते अनाज हैं
समस्या चाहे कैसी हो
डटकर मुकाबला करते हैं
कृषि कार्य कैसा भी हो
नहीं पीछे हटते हैं
बाढ़, आंधी या तूफान
चाहे सामने पहाड़ हो
डटे रहते बहादुरी से
जैसे पास सिंह सी दहाड़ हो
जवान हो तुम हिंद के
तुम से हिंद की आन है
किसान हो तुम हिंद के
तुमसे हमारी जान है
जय जवान और जय किसान का
कितना खूबसूरत नजारा
ऐसा देश कहां दुनिया में
जैसा हिंदुस्तान हमारा
आजादी की गाथाएं याद करो
उन वीरों के बलिदान याद आ जाते हैं
ऐसा नहीं होगा कोई जिसे सुनकर
उसकी आंखों में आंसू न आ जाते हों
बंजर भूमि में भी हल
चला कर फसल उगाते हैं
ऐसे किसानों की कमी नहीं
जो हिम्मत से आगे बढ़ जाते हैं
हे वीर जवानों, हे वीर किसानों
भारत को तुम पर नाज है
तेरे ही दम पर आज अपना
सारी दुनिया में राज है
जवान हो तुम हिंद के
तुम से हिंद की आन है
किसान हो तुम हिंद के
तुमसे हमारी जान है।

हिंदी मुझे बहुत भा गई

हिंदी मुझे बहुत भा गई लेकिन
जहां देखो वहां अंग्रेजी आ गई
हिंदी को बिसार दिया सभी ने
अंग्रेजी स्कूल समा गई
गुरुकुल भी अब नहीं यहां
अपनी हिंदी क्यों लाचार यहां
दफ्तरों और संस्थानों में भी
अंग्रेजी ही सबको भाती है
बड़े-बड़ों की क्या कहूं
छोटे-छोटे बच्चों को भी
हिंदी नहीं सिखाई जाती है
अ से ज्ञ तक हिंदी अक्षरों का
ज्ञान नहीं होगा …
एक से सौ तक गिनती का भी
पता नहीं क्या होगा …
पहाड़ों की क्या बात कहूं
कैलकुलेटर साथ अब रहता है
हिंदी की बिंदी को भी याद रखो
और अब क्या कहूं
अपने ही देश में हिंदी जब
अपनी पहचान खोएगी
अपने अंतर्मन से सोचो
अपनी भाषा क्या ऐसे ही रोएगी
याद करो बचपन अपना जब
नानी-दादी हिंदी में कहानी सुनाती थी
नींद नहीं आने पर हिंदी में लोरी गाती थी
कसम उन्हीं नानी-दादी की
दिल से याद करो उन कहानियों को
चंदा, सूरज, आसमान और झरने,
नदियां और पहाड़ियों वाली कहानियों को
सुनता हूं सुबह-शाम मंदिरों में
घंटा और शंखनाद की आवाज
और हिंदी में आरती गाई जाती है
बहती जब सुबह-सुबह पुरवाई
पार्कों और बागों से …
सुगंधित फूलों की खुशबू आती है
बचपन के हिंदी माध्यम वाले स्कूल
बहुत याद आती है
हिंदी में पढ़ी कहानी और कविताएं
अपने आप याद आ जाती हैं
हिंदी में लिखी हुई किताबें और
कॉपियां आज भी याद आ जाती हैं
भले आज बड़े हो गए
और सब कुछ बदल गया है
अंग्रेजी की लालसा ने हिंदी से दूर किया है
पर आज तो हिंदी के नाम पर
सिर मेरा अभिमान से उठ जाता है
हिंदी की महिमा को अब
विदेशों में भी गाया जाता है
बड़ी-बड़ी हिंदी संस्थानों को
विदेशों में मान दिया जाता है
हिंदी की जानकारी देने
विदेशों में बुलाया जाता है
हिंदी के लेखकों और कवियों की
बड़ी रुचि के साथ जानकारी समझी जाती है
तुलसी, सूर, कबीर, रहीम और रसखान के
दोहे, पद्य और चौपाई
दुनिया अब पढ़ने आगे आ आती है
बिंदी तो बड़ी खूबसूरत होती है
चाहे मां के माथे की हो या हिंदी की
चाह यही और आस यही अब
हिंदी की दुनिया में पहचान हो
हिंदी मुझे बहुत भा गई लेकिन
जहां देखो वहां अंग्रेजी आ गई
हिंदी को बिसार दिया सभी ने
अंग्रेजी स्कूल समा गई।

हमारी हिंदी

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा हो, हो सभी का सपना।
हर शहर हर गांव में हिंदी, संकल्प हो अपना।।
हिंदी से ही हिंद और आन-वान-शान है हमारी।
देखें तो देखते रह जाएं, हिंदी कितनी चमत्कारी।।

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