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मैं नोट हूं

राजीव मणि

मैं ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश
मैं ही हूं गणेश
मैं ही दुर्गा, लक्ष्मी, काली
मैं ही कलकत्ते वाली
मैं ही काया, मैं ही माया
मैं ही मान-सम्मान
मैं ही लोकतंत्र का वोट हूं
हां, मैं नोट हूं।

मैं ही कलयुग का
सम्मान और प्यार
हूं बच्चों का दुलार
मुझसे ही आकर्षक है लैला
मेरे बिना हर मजनूं कसैला
मैं ही हूं छप्पन ‘भोग’
मेरे बिना हर ‘इच्छा’ रोग
मैं ही लोकतंत्र का खोट हूं
हां, मैं नोट हूं।

मैं ही महलों की शान
मैं ही हर पगड़ी की आन
मैं ही बाजार का रक्तचाप
मैं ही कोठे पर तबले की थाप
मैं ही सेठ-साहूकारों का गल्ला
मेरे बिना हर कोई ‘निठल्ला’
मैं ही लोकतंत्र पर चोट हूं
हां, मैं नोट हूं।

अलगाववादी, आतंकवादी, नक्सलवादी के
हाथों में हूं तो विनाश
किसान, वैज्ञानिक, उद्योगपति के
हाथों में हूं तो विकास
मैं ही शेयर बाजार का लाल-हरा निशान
मेरे बिना आत्महत्या कर रहा किसान
मैं ही अमीरों के शरीर पर
टंगा गरमी का कोट हूं
हां, मैं नोट हूं।

एकल काव्य संग्रह ‘तुम्हारी प्रतीक्षा में’ से

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