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मक्खनबाजी

डाॅ. प्रदीप कुमार शर्मा

‘‘कहाँ जाने की तैयारी है ?’’ पतिदेव को तैयार होते देख श्रीमती जी ने पूछा।
‘‘आॅफिस और कहाँ जानेमन, मियां की दौड़ मस्जिद तक की ही होती है। घर से ऑफिस और ऑफिस से सीधे आपके दरबार में।’’ पतिदेव एकदम से रोमांटिक मूड में बोले।
‘‘अच्छा…, बातें तो ऐसे कर रहे हैं, जैसे कभी कहीं और जाते ही नहीं।’’ श्रीमती जी स्वाभाविक अंदाज में बोली।
‘‘अजी, आपने हमें ऐसा छोड़ा ही कहाँ है कि कहीं और जा सकें। वैसे मोहतरमा आज ये पूछ क्यों रही हैं ? इरादा तो नेक है न ?’’ पतिदेव श्रीमती जी के करीब आते हुए बोले।
‘‘इसलिए कि आज फिर से आपने पहन क्या लिया है, देखा है उसे ?’’ श्रीमती जी के स्वर में नाराजगी झलक रही थी।
‘‘क्यों … क्या बुरा है इसमें ?’’ पतिदेव बोले।
‘‘हे भगवान, आप न… कितनी बार कहा है कि एक दिन फुरसत में अपने सालों पुराने कपड़े छाँटकर अलग कर दो, बाई को दे दूँगी, पर आप हैं कि बस… करेंगे कुछ नहीं और कभी भी कुछ भी उठाकर पहन लेंगे।’’ श्रीमती जी बोली।
‘‘अरे भई, अच्छी खासी तो है ये ड्रेस। पैंट तो पिछले महीने ही तुमने खरीदी थी। हाँ, शर्ट कुछ पुरानी जरूर है।’’ पतिदेव ने सफाई देते हुए कहा।
‘‘कुछ… ? आपको पता भी है, ये वही शर्ट है, जिसे पहनकर आप पंद्रह साल पहले मुझे देखने आए थे।’’ श्रीमती जी ने याद दिलाया।
‘‘अरे हाँ, याद आया। बहुत कंफर्टेबल लगता है ये मुझे, बिल्कुल तुम्हारी तरह। जैसे पंद्रह साल पहले थी, आज भी वैसे ही, बल्कि उससे भी अच्छी। यही तो वह शर्ट थी जानेमन, जिसे पहनने से तुम और तुम्हारे घरवालों पर हमारा जादू चल गया था।’’ पतिदेव बातों में मक्खन लगाते हुए बोले।
‘‘बस, बस, ज्यादा फेंकने की जरूरत नहीं।’’ श्रीमती जी श्रीमान जी को वास्तविक धरातल पर लाने की कोशिश करते हुए बोली।
‘‘वैसे हमारी च्वाइस हमेशा बहुत ही लाजवाब होने के साथ-साथ टिकाऊ भी होती है। अब खुद को ही देख लो।’’ श्रीमान जी का मक्खन लगाना जारी था।
‘‘हूँ…’’ श्रीमती जी को बहुत मजा आ रहा था।
‘‘हाँ जी, और नहीं तो क्या ? हमारी पसंद थ्री जी, फोर जी, फाइव जी वाली नहीं, कलेंडर बदला नहीं कि मूड बदल जाए।’’ पति एकदम से अपनी रौब में बोल गए।
‘‘अच्छा जी, फिर कैसी है आपकी पसंद ?’’ श्रीमती जी ने उकसाया।
‘‘अजी हमारी पसंद तो ‘ए जी, वो जी, सुनते हो जी’ वाली है।’’ पतिदेव ने फरमाया।
‘‘हाँ…, वैसे इस मामले में मेरी भी च्वाइस आपसे कुछ अलग नहीं है।’’ श्रीमती जी भी पतिदेव की हाँ में हाँ मिलाने लगी थी।
‘‘सो तो होना ही है जी, ऑफ्टरआॅल हम मिंयाँ-बीवी हैं यार।’’ श्रीमान जी श्रीमती जी की आँखों में आँखें डालकर बोले।
‘‘बातें बनाना तो कोई आपसे सीखे।’’ श्रीमती जी पीछा छुड़ाते हुए बोली।
‘‘सो तो है जी। पंद्रह साल के साथ ने हमें इतना तो सिखा ही दिया है।’’ श्रीमान जी श्रीमती जी के और भी करीब आते हुए बोले।
‘‘हाँ, इसका फायदा भी तो हमें ही मिलता है जी।’’ श्रीमती जी ने रहस्यमयी अंदाज में फरमाया।
‘‘फायदा … कैसा फायदा जानेमन ?’’ श्रीमान जी ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘मूड बन जाता है।’’ श्रीमती जी शरमाते हुए बोली।
‘‘ओए-होए-होए … जानेमन … कहो तो आज की छुट्टी ले लूँ।’’ श्रीमान जी श्रीमती जी को बाँहों में भरते हुए बोले।

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