गौरैया लौट आई
नम्रता पाण्डेय

नये पल्लव 11 अंक से
आठवीं में पढ़ने वाला सुधांशु स्कूल से लौट कर आया, तो माँ ने उसका खाना परोसकर प्लेट डाइनिंग टेबल पर रख दिया। जब सुधांशु कपड़ा चेंज करके डाइनिंग टेबल पर आया, तो देखा एक चिड़िया फुदक-फुदक कर प्लेट से चावल खा रही थी।
सुधांशु ने तुरंत मां को आवाज लगाई, ‘‘मम्मा देखो, जल्दी आओ।’’
मां तुरंत उसके पास पहुंची तो देखा, वह बहुत खुश होकर प्यार से चिड़िया को देख रहा है। फिर वह मां से बोला, ‘‘मम्मा, आपको याद है, जब मैं प्ले स्कूल में पढ़ता था, तो हमेशा दादी के साथ आंगन में बैठकर खाना खाता था, तब कितनी सारी गौरैया फुदक-फुदक का हमारे पास आ जाती थी। तब मैं और दादी अपने खाने में से थोड़ा चावल निकाल कर आंगन में बिखेर देते थे, फिर आप भी एक कटोरी में चावल लाकर आंगन में रख देती थीं और गौरैया हमारे साथ ही खाना खाती थी। दादी के जाने के बाद हमने आंगन में जमीन पर बैठकर भोजन करना ही छोड़ दिया और डाइनिंग टेबल पर खाना खाने लगे, धीरे-धीरे गौरैया का आना भी हमारे आंगन में कम हो गया था।’’
मां ने कहा, ‘‘आसपास नए मकान बनने से उन पेड़ों को अंधाधुंध काट दिया गया, जिनमें गौरैया अपना घोंसला बनाती थीं। साथ ही लोगों की व्यस्त जीवन शैली के कारण गौरैया को पीने योग्य पानी और भोजन नहीं मिल पाता था, इस वजह से धीरे-धीरे गौरैया की संख्या शहर में कम होने लगी थी, पर गौरैया की कमी को सभी ने महसूस किया, क्योंकि यह प्यारी-सी चिड़िया हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। छोटे बच्चों की कविताओं से लेकर बड़ों की कहानियां तक गौरैया के बिना अधूरी हैं। लुप्त होती गौरैया को बचाने के लिए लोगों ने अभियान चलाया और देखो गौरैया बचाओ अभियान रंग लाया है। सभी ने अपने घरों की छतों पर चिड़िया के लिए दाना और पानी रखना शुरु किया। लोगों ने अपने घरों के आसपास पेड़ भी लगाये और सब की मेहनत रंग लाई और गौरैया फिर से हमारे आंगन में लौट आई। आज बहुत अच्छा लग रहा है आंगन में फिर से गौरेया को देखकर।’’
कुछ देर बाद मां ने देखा कि जो सुधांशु रोज खाना खत्म करने के बाद मोबाइल या लैपटॉप पर बिजी हो जाता था, आज गौरैया के लिए अपने हाथों से घोंसला बना रहा है।
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