इश्क़ में
तुम्हारे इश़्क में
मुकम्मल होना भी चाहती थी
इसलिए दोस्तों से दूर रही
क्या पता था, आज तुम्हें
यही मेरा अकेलापन
मेरा अभिशाप नजर आएगा
और तुम मेरी मोहब्बत को
किसी कोने में सजी वस्तु की तरह
सजाकर अपने दोस्तों की दुनिया
सजाना चाहोगे
बहुत रोई हूँ मैं
अपनी मूर्खता पर
सच कहा गया है …
दोस्ती को इस हद तक ना ले जाओ
कि मोहब्बत हो जाए
और मोहब्बत को
इस हद तक ना ले जाओ
कि दोस्ती भी ना रह पाए
एहसास का खजाना
सब लूटते हैं
मगर एहसास को
एहसास की तरह
कितने सजाते हैं
और … अगर सजाया है तो,
सजाओ इस तरह
कि बन के दीपक,
निखरे इस तरह कि
दिल की गलियाँ,
रोशन हो जाएं,
और गम का अँधेरा,
कभी नजर ना आए।
कभी नजर ना आए।।