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प्रेम

ऋचा प्रियदर्शिनी

प्रेम क्या है
एक सुखद एहसास
जिसमें न पाने की तमन्ना
न खोने का त्रास

प्रेम एक रंग
जो सभी रंगों से गहरा
जिसमें भीग कर
हर दिन लगे सुनहरा

प्रेम एक जश्न
जिसकी मादकता में
सराबोर तनमन रहे
आह्लादित उर उमंग में

प्रेम बसंत सा
अपनी छटा बिखेरता
सुवासित मृदु गंध से
अप्रतिम है मोहकता
प्रेम की पीड़ा भी
मीठा दर्द जगाए
प्रेम के अश्रु-जल भी
शीतल चित्त कर जाए

प्रेम एक अनुभूति
प्रेम नहीं आसक्ति
प्रेम ना ही बंधन
प्रेम आत्मा की मुक्ति

प्रेम सागर जो डूबा
उसने पाया भगवान
इस लौकिक जगत में
आलौकिक ही भान !

बिहान

यह जीवन की सांध्य है
या एक नया बिहान है
थी तीर किसी तरकश की
अब तेरे हाथ कमान है

आश्रित थी हर मर्ज़ी पर
कहा वही तेरा अरमान है
अब तेरे आश्रय पाने को
जाने कितने परेशान हैं

तजुर्बों की लिए पोटली
तू चलती भर गुमान है
वात्सल्य से परिपूर्ण सदा
तेरा स्नेह-भाव महान है

तुमने चलना सिखलाया
डगमगाती क्यों चाल है
सहारा देने को सब तत्पर
तुम्हारी आब कमाल है

इन पंखों में भर उड़ान
तू निहारती आसमान है
हमारी उपलब्धियों से
पा जाती तू जहान है

जीवन के इस मोड़ पर
अपरम्पार जुटाई ज्ञान है
इसलिए यह इति नहीं
एक नया बिहान है…
एक नया बिहान है !

पता : Lotus Villa, East Boring Canal Road, Gupteshwar Compound, Patna – 800001

4 thoughts on “प्रेम

  1. प्रेम को परिभाषित करती बहुत सुंदर कविता। बिहान नाम के अनुरूप नई ज्योति नया प्रकाश से भर देने वाले अद्भुत पंक्तियों के साथ आई कविता बहुत ही सुंदर बन पड़ी है।
    ऋचा प्रियदर्शिनी को बहुत बधाई।

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