Naye Pallav

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माँ

कविता

शुभी मिश्रा

माँ खुशी है, माँ ममता की मूरत है
माँ नन्हे से बच्चे की प्यारी मुस्कान है

माँ आँखों का आसूँ, माँ सारा संसार है
माँ एक परिदें का खुला आसमान है

माँ नदी है, माँ समुद्र है
माँ खारा पानी और शीतल जल है

माँ रातों की नींद, माँ नया सवेरा है
माँ हर बच्चे का अपना बसेरा है

माँ होठों की लोरी, माँ नींद में देखा ख्वाब है
माँ हमारी शान है, माँ ही सारा जहान है।

मैं पढ़ना चाहती हूं

मैं कुछ करना चाहती हूं
हां, आगे बढ़ना चाहती हूं
मैं अभी पढ़ना चाहती हूं।

चारदीवारी में नहीं रहना चाहती
खुले आसमां में उड़ना चाहती हूं
मैं भी पढ़ना चाहती हूं।

माँ-बाप के लिए बोझ नहीं,
ये समझाना चाहती हूं
मैं भी बेटा बन सकती,
ये बताना चाहती हूं
मुझे मत रोको अब…
मैं भी पढ़ना चाहती हूं।

दीपक सा तेज है मुझमें
हमेशा उजाला फैलाऊंगी
तुम चिंता मत करो
सब कुछ सह जाऊंगी
पर मेरा हौसला मत तोड़ो
मैं कुछ करना चाहती हूं
मैं भी पढ़ना चाहती हूं।

रोशन करूंगी जहां में नाम
चाहे कितने ही खींचो लकीरे
सबको पार कर जाऊंगी
आग में तपकर सोना बन दिखाऊंगी
तुम्हें बांधे जंजीरे भी तोड़ जाऊंगी
खुले आसमां में उड़ान भरना चाहती हूं
मैं भी पढ़ना चाहती हूं।

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