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Second : व्यंग्य आलेख प्रतियोगिता 2020

भविष्य पर मंडराता साया

‘शिखा’ मनमोहन शर्मा

कल प्रशांत बाबू घर पर आए। बड़े सज्जन आदमी हैं, या यो कहें हमें पुराने मानने वाले हैं। उनकी माता श्री तथा उनके नाना भी हमें बहुत मानते हैं। घर में कोई भी कार्यक्रम हो, हम तो उनके नियमित अतिथि होते हैं। कोई भी पूजा रखी हो घर में, हम उनके बिन बुलाए पंडित हैं। हमें बस कह दिया जाता है कि कल पूजा है भाई और हम पहुंच जाते हैं, क्योंकि मुहूर्त वगैरह भी हमीं से निकलवाया गया होता है। घर में नई कार लेनी हो, बच्चे का मुंडन कराना हो, जन्म दिवस समारोह में सवामणी करवाना है, कोई नया काम शुरू करवाना हो या बिजनेस में पैसा लगाना है, सभी हमसे पूछ कर करते हैं।
प्रशांत बाबू मुहूर्त के बड़े पक्के हैं। हर काम मुहूर्त से शुरू हो, इसकी उन्हें अच्छी खासी चिंता रहती है। हमें तो कहना भी नहीं पड़ता कि बाबूजी मुहूर्त का समय निकला जा रहा है। वे ही आगे-आगे बोलते जाते हैं।
प्रशांत बाबू की वजह से हमारा यह कार्य बहुत दूर-दूर तक फैल गया। प्रशांत बाबू जहां जाते हैं, हमारे पंडित होने का और वे हमें बहुत मानते हैं, इसके बारे में बातें करते, जिसके कारण हमारी सिद्धि दूर-दूर तक हो गई थी। …और उस दिन तो हम प्रशांत बाबू के कायल ही हो गए, जब वे अपने एक रिश्तेदार को हम से मिलाने लेकर आए। उन जजमान को अपनी बहू के लिए शुभ मुहूर्त निकलवाना था। जल्दी ही उनकी बहू उन्हें पोता देने वाली थी। डॉक्टर ने बोला था, ऑपरेशन दो-चार दिन में ही करना होगा। यदि ऑपरेशन ही कराना है, तो बच्चा शुभ दिन ही घर आए, इसकी उन्हें बड़ी चिंता थी, इसीलिए वह आने वाले कुछ दिनों में बच्चा पैदा करने के लिए ऑपरेशन का मुहूर्त निकलवाने आए थे।
जरा सोचिए, अगर इस काम के लिए भी हमारी पूछ होने लगेगी, तो हमारा काम कितना आगे निकलता रहेगा और अब तो हम भविष्य भी बताने लगे थे, वह भी सही-सही। किसी की शादी नहीं हो रही हो, किसी के कार्य में विघ्न आ रहा हो, किसी का शनि भारी हो अथवा किसी का गुरु भारी हो, तो हम उन्हें किसी चिड़िया को चावल खिलाने के लिए कहते, किसी को गाय को चने की दाल खिलाने के लिए कहते, किसी को चीटियों को आटा खिलाने के लिए कहते अथवा गाय को चारा खिलाने के लिए और यह सब करके सच में जजमान के कार्य बनते जाते हैं।
शुरुआत में प्रशांत बाबू की माता जी ही पूछने और दिखाने आती थीं, पर गत पांच सालों से प्रशांत बाबू भी आने लगे हैं और उनके आने से मेरे बिजनेस में उत्तरोत्तर बढ़ोतरी हो रही है। पांच साल पहले जब प्रशांत बाबू मेरे पास आए थे, तो उनकी चार उंगली में चार अंगूठी, गले में चांदी की चेन पहने थे और श्रद्धा से पूरित होकर मेरे सामने हाथ जोड़कर बैठे थे।

मैंने कहा – ‘‘भाई, हाथों में इतनी अंगूठियां क्यों पहन रखी है ?’’
प्रशांत बाबू बोले – ‘‘एक मूंगा है, एक पन्ना है, एक नीलम है, एक जरकिन है और एक मोती है।’’ हम चक्कर खा गए। अपने एक हाथ में इतने सारे पत्थर पहनने वाले प्राणी प्रथम बार देखे थे।
मैंने कहा – ‘‘किसने बताया इन्हें पहनने के लिए !’’
तो कहने लगे, ‘‘ज्योतिष में बहुत रुचि है, जिसने भी जो कहा, पहन लिया।’’
मैंने कहा, ‘‘भगवान के पाठ करते हैं ?’’
तो गर्व भरी आवाज में बोले – ‘‘हां जी सर, मैं आदित्य हृदय स्तोत्र करता हूं, हनुमान चालीसा पढ़ता हूं, मंगलवार को सुंदरकांड पढ़ता हूं, विष्णु चालीसा पढ़ता हूं और गायत्री मंत्र का जाप भी करता हूं। इतना कुछ करता हूं फिर भी मुझे बिजनेस में फायदा नहीं हो रहा। जितना मैं मेहनत करता हूं, अगर कोई और पाठ हो तो मुझे बता दीजिए, मैं वह भी कर लूंगा।’’
मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा – ‘‘नहीं साहब, आप जितना करते हैं, पहले से ही बहुत है। इनमें से एक तो पाठ कम करिए और सही समय की प्रतीक्षा करने से सब ठीक हो जाएगा।’’
…फिर उन्होंने एक कुंडली मेरे हाथ में थमा दी कि देखकर बताइए, मेरा समय कब अच्छा आएगा। भविष्य तो हम जानते ही थे, हमने जोड़-तोड़ की गणित लगाकर उनका भविष्य पढ़ा और उन्हें बताया कि आपका अच्छा समय एक साल बाद से शुरू है। पांच साल के उपरांत तो आप तरक्की की बुलंदी पर होंगे। जो आपने सोचा है, वह आपको जरूर मिलेगा। एक-दो बातें और मैंने उन्हें बताई और कुछ उपाय सुझाए, उनके रुके हुए कार्य को सफल बनाने के लिए। वे कार्य सफल हो गए और वह मेरे भक्त बन गए। पर इस समय उनका मूड थोड़ा उखड़ा हुआ दिखा, थोड़े खफा दिखे…।
प्रशांत बाबू – ‘‘आपने तो कहा था यह समय मेरे लिए बहुत अच्छा है, पर यहां तो सब गुड़ गोबर हो रहा है।’’
मैंने कहा – ‘‘क्या हुआ … ऐसा क्या हो गया।’’
प्रशांत बाबू – ‘‘सब काम धंधा बंद पड़ा है कोरोना की वजह से, साल भर होने को आया, मुनाफा तो दूर, मुझे तो नुकसान ही नुकसान हो रहा है। आपने कहा था कि यह समय मेरे लिए बुलंदी वाला है। आपका भविष्य गलत निकला।’’
मैंने समझाते हुए कहा, ‘‘आपका नहीं, सबका हाल बुरा है भाई साहब, हमारी हालत ही देखिए, साल भर में पहले प्राणी आप ही आए हैं। आपके अतिरिक्त कोई आया ही नहीं, जिससे हम कमाते।’’
प्रशांत बाबू – ‘‘लेकिन आपके भविष्य के अनुसार तो अभी हमें बुलंदी के पहाड़ पर बैठे होना चाहिए। यह कोरोना वायरस अपनी जगह है, पर आपका भविष्य तो गलत हो गया ना।’’
मैंने धीरज धरते हुए कहा – ‘‘क्यों नाराज होते हैं भाई साहब, भविष्य तो यह भी था कि 2018 में दुनिया खत्म हो जाएगी। क्या हो गई दुनिया खत्म ? लेकिन हां, यह कह सकते हैं कि भगवान एक साथ नहीं तो धीरे-धीरे ही सही, अपना कार्य करे जा रहे हैं। मैं तो आपकी कुंडली में जो लिखा है, वही आपको बताया। अपने मन से तो कुछ बताया नहीं, जो आप मुझे दोष दें।’’
प्रशांत बाबू – ‘‘इसका मतलब कुंडली वगैरह सब झूठी है।’’
अब उस भले मानुष को कौन समझाता कि इस दुनिया में भगवान ने जो कुछ भी बनाया है, उसमें कुछ भी मिथ्या नहीं है। कुछ ना कुछ तो होता ही है सत्य, पर आज वह कुछ भी समझने के मूड में नहीं थे, इसलिए अपना पीछा छुड़ाने के लिए हमें अपनी पंडिताइन वाली बुद्धि ही काम में लेनी पड़ी, सो हमने कहा – ‘‘अखबार पढ़ते हैं भाई साहब, बड़े-बड़े बिजनेसमैन परेशान हो रहे हैं, पूरा देश बंद पड़ा है और मजदूरों श्रमिकों की हालत देखी है आपने, उन को दो जून की रोटी भी नसीब नहीं हो रही। वे घर से दूर हैं सो अलग। बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने घर से कार्य करने को मजबूर हैं। इस समय केवल डॉक्टर और पुलिस वाले ही भगवान का कार्य कर रहे हैं। ऐसे समय में क्या आपको नहीं लगता कि आप उनकी मदद करने के लिए सक्षम है ? मुझे लगता है, आप कर सकते हैं, मैंने देखी है आपकी शान। इस समय जब लोग दो जून की रोटी भी नहीं खा पा रहे हैं, ऐसी स्थिति में आप किसी की मदद करने के लिए सक्षम हैं, तो क्या आप अपनी तरक्की की बुलंदी पर नहीं हैं ? जरा सोच कर बताइएगा मुझे।’’
सिर खुजलाते हुए प्रशांत बाबू बोले – ‘‘हमें ऐसा वैसा मत समझो तुम पंडित, अभी कल ही सूखा राशन बांट कर आया हूं मजदूरों में, यहां बात तुम्हारे भविष्य वक्ता होने की हो रही है।’’
‘‘वह तो मैं हूं साहब, भगवान का भक्त हूं, जो भगवान बुलवाता है, वही बोलता हूं। आपके लिए भी सही ही बोला था। भगवान ने ही आपकी कुंडली बनवाई थी। मजदूरों की मदद कर रहे हैं आप … देखना एक दिन भगवान बहुत बुलंदी पर पहुंचाएगा आपको, मैंने अपने आप को बचाते हुए बोला।’’
‘‘ठीक है … ठीक है, अब मैं चलता हूं।’’
इस प्रकार प्रशांत बाबू अपना गुस्सा शांत करके चलते बने। मुझे अपनी फीस तो नहीं मिली, पर एक व्यक्ति को अपनी क्षमता का ज्ञान कराकर मुझे बेहद खुशी थी।

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