मन के भाव भरे मोती
शिमला पाण्डेय
आज मन मेरा बहुत व्यथित पर, भाव अनेकों उभर रहे।
उलझन में मस्तिष्क हमारा, कुछ ऐसा जो सोंच रहे।
अन्तर मन में इस समाज की दशा घुमण कर आती है।
सोच नहीं पाता ये मन है, क्या संदेश सुनाती है।
मानव के चरित्र चिन्तन में, कैसी यह विक्रति आई।
स्वार्थ भरा जीवन अपना कर औरों की खोदे खाईं।
मानवता रख दिया ताख पर, दानवता को अपनाया।
सुन्दर सा जीवन पाकर भी, समझ न उसको है पाया।
सुन्दर सा मुखड़ा दिखता है, मन में विष का प्याला है।
कौन समझ पायेगा इनको, तन उजला मन काला है।
बड़े बड़े मारीच बन गये, इस समाज के ठेकेदार।
देते हैं उपदेश अनेकों, बना बना कर माया जाल।
सीधे सादे लोगों को ये, नोच नोच कर खाते हैं।
इनकी करतूतों के आगे, गिद्ध भी घबराते हैं।
करना है गर काम प्रभु का, कपट, छद्म का त्याग करें।
चलें श्रीराम के पद चिन्हों पर, जीवन में अनुराग भरें।
रे मन भटक ना जाना आप
न ओढ़ो राम नाम की चादर, करो न राम नाम का जाप।
अन्दर बैठा अंश राम का, उसको कर लो साफ।
रे मन भटक न जाना आप।।
सुन्दर तन है दिया प्रभु ने, दिया मधुर है वाणी।
है विवेक दे दिया तो क्यों तुम बन बैठे अज्ञानी।
दुनियां के लालच में फंसकर, बेच न देना सांस।
रे मन भटक न जाना आप।।
जीवन यह अनमोल रतन है, इसका न करना मोल।
इसका हर पल वेष कीमती, इसको तू ले तौल।
अन्तर मन में बैठा है जो, छोड़ न देना साथ।
रे मन भटक न जाना आप।।
जिसने जन्म दिया है तुमको, उसके हो तुम प्राण।
वह तो सदा बनाये रखते, तुम पर अपना ध्यान।
सदा छिड़कते जान वो अपनी, बनना न अभिशाप।
रे मन भटक ना जाना आप।।
दुनियां में मारीच बहुत हैं उनसे बच कर रहना।
अपने चिन्तन और चरित्र को शुद्ध बनाये रखना।
परम पिता के पुत्र, किसी के बन ना जाना ग्रास।
रे मन भटक ना जाना आप।।
न ओढ़ो राम नाम की चादर, करो न राम नाम का जाप।
अन्दर बैठा अंश राम का, उसको कर लो साफ।
रे मन भटक ना जाना आप।।
आओ दीपावली मनायें
सदियों से हम मना रहे, अब नव संकल्प जगायें।
आओ दीपावली मनायें।।
अस्त हुआ है सूर्य, धरा पर अंधकार है छाया।
उदय हुआ न चांद गगन में, रे मन क्यों घबराया।
स्वयं ज्योति बनकर धरती पर, नव प्रकाश फैलायें।
आओ दीपावली मनायें।।
दुष्वृत्तियां प्रबल होकर, जगती में प्रलय मचाती हैं।
सद्विचार के शंखनाद से, ये सारी मिट जाती हैं।
ज्ञान की ज्योति जगे अन्तः में, ऐसी युक्ति बनायें।
आओ दीपावली मनायें।।
ये वसुधा परिवार हमारा, खुशियों से भरपूर रहे।
यही कामना करें प्रभु से, दुष्कर्मों से दूर रहे।
सद्बुद्धि की किरणों को, सारे जग में फैलायें।
आओ दीपावली मनायें।।
पावन उपवन बनें सुगंधित, पुष्पों का मधुमास रहे।
हर बगिया का आंगन महके, सभी सुखी परिवार रहे।
रहे समुन्नत राष्ट्र हमारा, सद्भावना जगायें।
आओ दीपावली मनायें।।
तुम्हीं संभालो कृपालु त्रिभुवन
हे नाथ अपनी दया की दृष्टि,
बनाये रखना दयालु भगवन।
तुम्हीं ने जीवन दिया है हमको,
तुम्हीं संभालो कृपालु त्रिभुवन।।
बहाई करुणा की धार तुमने,
पाया है परिवार प्यारा सा हमने।
खिलाये सुन्दर से फूल प्रभु ने,
सदा महकता रहे ये उपवन।।
तुम्हीं ने जीवन दिया है हमको,
तुम्हीं संभालो कृपालु त्रिभुवन।।
जिधर निहारूं तुम्हीं तुम हो,
दिया है भंडार प्यार का प्रभु।
ये प्यारी दुनियां बसायी तुमने,
इसी में बांधा अटूट बंधन।।
तुम्हीं ने जीवन दिया है हमको,
तुम्हीं संभालो कृपालु त्रिभुवन।।
कभी न कोई भव बाधा आये,
खुसियों से झोली यूं ही भरती जाये।
हमारी बगिया के फूल महकें,
मुझे बना दो हे प्रभु जी पावन।।
तुम्हीं ने जीवन दिया है हमको,
तुम्हीं संभालो कृपालु त्रिभुवन।।
शब्द का महत्व
1.
शब्द की महत्ता में जीवन की सत्ता में,
व्यक्ति की अभिव्यक्ति जब गूढ़ बन जाती है।
सघन अंधकार को चीर कर प्रकाश दे,
ऐसी प्रखर ज्योति हर व्यक्ति को जगाती है।।
2.
राष्ट्र को अति महान चिन्तन से सींच कर,
सुन्दर सुगन्धित पुष्पों को खिलाती है।
बसुधैव कुटुम्बकम की भावना को जागृत कर,
हर एक व्यक्ति के दिलों में बस जाती है।।
3.
देश में सुसंस्कृति का बिगुल बजाकर,
संस्कारवान पीढ़ी राष्ट्र को दे जाती है।
शब्दों को अपने बस में रखते हुये,
बाणी में ओजस की शक्ति भर जाती है।।
4.
महानता की सीढ़ियों से व्यक्तित्व को उत्कृष्ट कर,
सत् चित आनंद की भावना को जगाती है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः की प्रार्थना निरन्तर कर,
अपने प्यारे राष्ट्र को समुन्नत बनाती है।।
अपने प्यारे देश को समुन्नत बनाती है।।