पत्थर की नारी

मोड़ा है रूख इस तरह जिन्दगी ने
कि सोचने का मौका भी ना दिया
खामोशी छाई है लब्जों पे इस कदर
दिल ने भी अपनाना छोड़ दिया।
सही होकर भी चुप बैठे हैं हम
ऊगलियां उठ रही हैं कितनी मुझपे
जवाब देने को भी सोच में पड़ गये
मेरी सोच भी अब सवाल कर रही है
सही होने का सबूत मांग रही है।
मेरे अपने भी खड़े हैं मेरे खिलाफ
मैं गैरों को क्या कहूं ?
गैर शब्दों से चोट पहुंचा रहे
अपने तो निगाहों से गिरा रहे हैं।
कोई पूछता नहीं मुझसे क्या हुआ था ?
मैं गलत थी या वो सही था !
जो सोचा सबने शायद वो सही है
मैं सही होकर भी आज फिर गलत हूं।
लड़की हूं तो बोल नहीं सकती
अपने दर्दों पे रो नहीं सकती
आंसू आकर भी सूख जाते हैं मेरे
मैं अपने लिए लड़ नहीं सकती।
शिकायत है मुझे उस खुदा से
जिसने बनाया काया नारी की
बनाना ही था तो पत्थर का बनाता
और मोम सा हृदय ना देता।
अगर लगाती गुहार …
तो क्षण भर में कुचल दी जाती मैं
भरती अगर बुलंद आवाज …
तो लग जाते लाज पर दाग
अपने नाजुक दिल पर कितना बोझ उठाती ?
अगर बनाते पत्थर की नारी
तो सुख-दुख से वंचित रहती
अपने आंचल को अश्कों से ना भिगोती
हे ईश्वर ! बनाई होती पत्थर की नारी।
पता : Hydel Colony, Near Saraswati Vidya Mandir, Vivekanand Nagar, Sultanpur, UP