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बोलते शब्द (बाल प्रतियोगिता 2020) Poems


पिछले दिनों वर्ग 10 तक के बच्चों से कविता आमंत्रित की गई थी। हालांकि इसे प्रतियोगिता के अंतर्गत नहीं रखा गया था, फिर भी बहुत सारे बच्चों ने इसमें अपनी रुचि दिखायी। घरौंदा के मेल पर कई बच्चों ने अपनी कविता भेजी है, कई अब भी भेज रहे हैं। कुछ चुनी गई कविताओं को वेबसाइट पर स्थान दिया जा रहा है।

शिवम यादव

हमारे खिलौने

हमारे खिलौने तो गुड्डे-गुड़िया थी
जादू की एक पुड़िया थी
जिसके सहारे दादी चलती थी
दादी की एक छड़िया थी

डर था टीचर जी की डाँट में
लंच करते थे मिल बाँट के
मस्ती करते थे खेल के मैदान में
कोई बात कहते थे दोस्त के कान में

हम सब बच्चों को टीचर ने
आज नया पाठ पढ़ाया
हमेशा सच बोलो, ये बताया
साथ में गाना भी गाया
गाना गाकर सब खुश हो गए
फिर टीचर ने सबको गले लगाया
आज बड़ा मजा आया।

पिता : वीरेन्द्र यादव
कक्षा : 5, माँ शारदा विद्या मंदिर, हरदा


रिद्धि शेट्टी

ये करो-ना, भागेगा कोरोना

कहां गया वह पल ?
क्या आप देख सकते हैं कल ?
वे दिन जब हम बांटते थें सिर्फ सुख
अब तो है हर दिल में दुख
उसने उखाड़ लिया है सब कुछ
क्यों बन गया है सब इतना तुच्छ,
सबको लगा, है यह मेहमान
लाया भी तो एक फरमान
क्या है यह कोरोना ?
कोई तो कुछ इसका करो-ना
सिर पर इसके न है ताज
करने लगा पूरे विश्व पर राज
कोई भी बाहर नहीं जाएगा
वरना यमराज आ जाएगा
ना आने दो यह छोटा-सा बुखार
तुम सुन ना पाओगे उसकी पुकार
इसके पास ना आना
वरना स्वर्ग सिधार जाना !
एक दूसरे से रखो दूरी
इससे सबकी जिंदगी होगी पूरी
कोई नहीं लेता कोरोना का पक्ष
पूरी दुनिया का आज एक लक्ष्य
मरे तो सब मरेंगे
देश मांगे वचन सात
ना मिलाओ किसी से हाथ
सम्मान करो कोरोना योद्धाओं का
घर पर रहो, गरीबों का पेट भरो
बचे तो सब बचेंगे, मानो मेरी बात
तो बोलो, दोगे मेरा साथ।

सुपुत्री – कीर्ति शेट्टी
कक्षा 10, एक्सेल पब्लिक स्कूल, मैसूर


Arya Poovaiah M

डूबता मन

सोचा न था कि उसे बता दूंगी
सोचा था कि हृदय का यह छेद बंद कर दूंगी
सोचा था कि जीवन का हर एक पल उसके साथ बिताऊंगी
सोचा था कि उसके बड़े किंतु कोमल हाथ पकड़कर खिलकर हंसूगी
पर किसको पता था कि –
मेरे दिमाग को मेरा यह मासूम मन धोखा दे जाएगा
लगता है, मेरे मन की शांति किसी को नहीं भली
इसलिए उसने तोड़ कर रख दिया, खाली… खाली… खाली
अब मैं इस विशाल खालीपन के सागर के सामने खड़ी हूं
ना कोई जीने की वजह !
अच्छा है कि मैं स्वर्ग पहुंच जाऊं
यहां हर पल मरने के बजाय
इस सुंदर विशाल के सामने
क्या ले लेना चाहिए मुझे
अपने जीवन को अंत करने का निर्णय
यह समुद्र की लहरें और…
मेरे हृदय पर गहरी चोटें
ना कोई समझेगा मुझे, ना कोई रोकेगा
मुझे भला इस जीवन में जीने का क्या अर्थ ?
जो कुछ दिनों में हो जाएगा अंत
कहते हैं, सूर्य से अधिक खूबसूरत
कोई चीज नहीं होती, कोई क्या जाने कि …
वह मन में बसा हुआ दुख !
कभी कम नहीं होता, मदद मांगने से
मदद जरूर मिलती है,
‘‘मैं हूं … हमेशा तुम्हारे साथ…’’
उस अजनबी ने कहा, पकड़ कर मेरा हाथ
इन शब्दों को सुनते ही वह दुख का समुद्र सूख गया
मेरे मन से एक आवाज आई – क्या यह बचा पाएगा मुझे।

Father : Poovaiah M K
Class : 10, Excel Public School, Mysore


Akanksha Poovaiah M

एक ख्वाइश

जब फूलों को देखती हूं, तो पाती हूं
मन में महकी-सी ताजगी
जब भी फूलों को खिलता देखती हूं
तब मुझे याद सताती है सबकी
मेरे शिक्षक, मित्र, माता-पिता और पाठशाला
जो मुझे अपनी जिंदगी में खिलने में मदद करते हैं
मुझे बनना है एक खिला फूल
वह फूल जिसने अपनी मदद
करने वालों का सर किया गर्व से ऊंचा
और महका दे देश का आंगन, जो गर्व से ऊंचा करें
चाहती हूं चींटी से सीखूं, कैसे रहती है अनुशासन में
कोशिश से लड़ पाती है और …
नन्हीं-सी है, पर है कितनी काबिल
…और एकता में विश्वास रखती है
चाह है छू पाऊं नीला आसमान
पर अभी परो को मजबूत करना है।

Father : Poovaiah M K
Class : 8, Excel Public School
, Mysore


  • अनुज पांडेय की कुछ बेहतरीन कविताएं

बरतो एहतियात

अनुज पांडेय

मत निकलना घर से बाहर
देश-विदेश हैं खतरे में।
बरतो एहतियात हर पल
क्योंकि परिवेश है खतरे में।
अभिवादन करने के लिए
सिर्फ जोड़ना दोनों हाथ।
घड़ी है संकट की मित्रों,
मिलकर सभी दो साथ।
कोरोना से जीत लेंगे,
मिलकर हम सब जंग।
चलो रखें स्वच्छ वातावरण
रखें स्वच्छ हर अंग।
मुसीबत की इस घड़ी में
एहतियात से बचती जान है।
प्रबुद्ध मानुष, तुम जानते हो
कि जान है तो जहान है।
अपनी ओर से प्रयत्न करके
बचानी है हमको जिन्दगी।
ये जीवन अनमोल है यारों
रखनी है इससे दिल्लगी।

कोई प्रयोजन नहीं

अनुज पांडेय

ज्यादा कहानियाँ
ज्यादा कविताएँ
लिख देने का
कोई प्रयोजन नहीं।
प्रयोजन तब है,
जब रच दो तुम
अच्छी कहानियाँ
अच्छी कविताएँ।
कालजयी कहानियाँ
कालजयी कविताएँ !
सौ बेरुचि वाली
निरर्थक कविताएँ
लिखने से अच्छा है,
कोई दो-चार
कविताएँ लिख दो
जो हृदयस्पर्शी हों
रोचक हों, सार्थक हों
जुबाँ पर आ जाए सबके।

मां सिलती है कपड़े

अनुज पांडेय

मां सिलती है कपड़े
मेरी तालीम के लिए।
मेरे साक्षर और कुछ काबिल
बनने के सपने लिए।
कहती है कि बेंच देगी
अपने गहने-जवाहरात
मुझे पढ़ाने के लिए।
करती है हरसंभव कार्य
मुझे कुछ लायक बनाने के लिए।
नाम कमाऊं जग में मैं
उसका यही स्वप्न है।
सोच लेती है अक्सर ये बात
इसी में वो मग्न है।

तू थोड़ा-सा धीर बन

अनुज पांडेय

ये जीवन इक अवसर है
कुछ नवीन-वृहत् कर जाने का।
बढ़ते जा आगे, सँजोए हौसले को
स्वयं को शिखर तक पहुंचाने को।
मालिक ने मानुष जीवन है दिया
न तू इसका दुरुपयोग कर।
आदि से ही आराम का
मत अभी तू लोभ कर।
कर के अपना कर्म सदैव
इस जगती में कर्मवीर बन।
मिलेगा सुफल कर्मों का तेरे
तू थोड़ा-सा धीर बन।

हिंदी सुलभ-सी साधन है

अनुज पांडेय

विचारों के अभिव्यक्ति की
हिंदी सुलभ-सी साधन है।
स्नेह की यात्रा कराती सबको
हिंदी इक ऐसी वाहन है।
शब्द कम पड़ेंगे नित ही
करने को इसका गुणगान।
चाहिए हमें प्रयत्न करना
बना रहे इसका सम्मान।
ये केवल भाषा ही नहीं,
भारत की भी है ये शान।
प्रतिपल सुशोभित करती है
अपने भारत की पहचान।
निज भाषा उन्नति अहै…
इसीलिए हिन्दी अपनाओ।
मत डूबो केवल अंग्रेजी में
इस पर भी तुम ध्यान लगाओ।
बखान करते-करते इसका
शायद जाएगा बीत ये जीवन।
शब्दों की अनावृष्टि है मेरे पास
कैसे करूँ इसका मैं प्रशंसन ?
जड़ता के अंधियारे में निशिकर है
ज्ञान बिखेरने वाली दिनकर है।
शब्दों से भरकर अपनी काया
अविराम ये बहती निर्झर है।

पिता : देव नारायण पाण्डेय उर्फ गुड्डू पांडेय
पता : ग्राम-पड़ौली, पोस्ट-ककरही, गोरखपुर-273408, उत्तर प्रदेश
वर्ग : आठवीं

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