गया में ही पिंड दान क्यों ?

विष्णु जी की नगरी गया धाम पितृ पक्ष मेले के लिए ही प्रसिद्ध माना जाता है। इस विष्णु नगरी गया में हर साल विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले की शुरूआत होने के साथ ही पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए पिंडदान शुरू होता है। हिन्दू धर्म के अनुसार, हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक की अवधि पितृपक्ष या महालय कहलाती है। इस अवधि में पितरों को पिण्डदान और तर्पण करने की प्रथा चली आ रही है। ऐसा कहा जाता है कि इस अवधि में मृत्यु के देवता यमराज कुछ समय के लिए पितरों को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
पितृ पक्ष की इस अवधि में पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिसमें मुख्य रूप से पिंडदान, जल तर्पण और ब्रह्मभोज कराया जाता है। ब्रह्मपुराण में श्राद्ध की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि जो भी वस्तु उचित कार्य और स्थान पर विधिपूर्वक तथा श्रद्धा से ब्राहाणों को दी जाये, वह श्राद्ध कहलाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार, श्राद्ध कर्म के माध्यम से पितरों की तृप्ति के लिए उनतक भोजन पहुंचाया जाता है, जिसमें पिंड के रूप में पितरों को भोजन कराना प्रमुख कार्य माना जाता है।
गया में पिंड दान करने की प्रथा कई युगों से चली आ रही है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ अपने पिता का श्राद्ध करने गया धाम पहुंचे, जहां पिंडदान की सामग्री लाने के लिए राम और लक्ष्मण बाहर चले गये थे और माता सीता अकेली फल्गु तट पर दोनों के लौटने का इंतजार कर रही थी। बहुत समय बीत गया, लेकिन दोनों भाई नहीं लौटे, तभी माता सीता के सामने पिता दशरथ की आत्मा प्रगट हुई और पिंड दान की मांग की। सीता ने श्रीराम के आगमन तक की प्रतीक्षा करने का अनुरोध किया, परन्तु वे व्याकुल हो गये और सीता से पिंड दान की मांग करने लगे। तब सीता ने केतकी के फूलों और गाय को साक्षी मानकर बालू के पिण्ड बनाकर राजा दशरथ के लिए पिण्डदान किया।
कुछ समय बाद जब भगवान राम लौटकर आए, तो सीता ने उन्हें पिंड दान की सारी जानकारी दे दी। लेकिन, राम ने उनकी बात पर विशवास नहीं किया। इसके बाद सीता मां ने महाराज दशरथ की आत्मा का ध्यान कर उन्हीं से गवाही देने की प्रार्थना की, जिसके बाद स्वयं महाराज दशरथ की आत्मा प्रकट हुई और उन्होंने कहा कि सीता ने उनका पिण्डदान कर दिया है। सीता मां के इस पिंड दान के कारण आज भी लोग यहां बालू, मिट्टी या रेत से पिण्डदान करते हैं।