गालियां
लघुकथा

चंद्रधर शर्मा गुलेरी
एक गांव में बारात जीमने बैठी। उस समय स्त्रियां समधियों को गालियां गाती हैं, पर गालियां न गाई जाती देख नागरिक सुधारक बाराती को बड़ा हर्ष हुआ। वह ग्राम के एक वृद्ध से कह बैठा, ‘‘बड़ी खुशी की बात है कि आपके यहां इतनी तरक्की हो गई है।’’
बुड्ढा बोला, ‘‘हां साहब, तरक्की हो रही है। पहले गालियों में कहा जाता था… फलाने की फलानी के साथ और अमुक की अमुक के साथ… लोग-लुगाई सुनते थे, हंस देते थे। अब घर-घर में वे ही बातें सच्ची हो रही हैं। अब गालियां गाई जाती हैं तो चोरों की दाढ़ी में तिनके निकलते हैं। तभी तो आंदोलन होते हैं कि गालियां बंद करो, क्योंकि वे चुभती हैं।’’
अंधी लड़की
एक अंधी लड़की थी। वह अंधी होने के कारण खुद से बहुत नफरत करती थी। वो सिर्फ अपने प्रेमी से बहुत प्रेम करती थी। कारण कि वह हमेशा उसके लिए हाजिर रहता था, उसका ध्यान रखता था। लड़की कहती थी – अगर वह देख सके तो उस लड़के से शादी करेगी।
एकबार किसी ने उसको नेत्र दान कर दिए व् वह साडी दुनिया को यहाँ तक की अपने प्रेमी को भी देखने लायक हो गयी। तभी उसके प्रेमी ने उस से शादी करने की बात की, तब लड़की ने जाना की लड़का तो अँधा है उसने उस के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
वो लड़का निराशा ने ग्रस्त रोता हुआ वहां से चला गया, बाद में उसने उस लड़की को एक ख़त लिखा व् कहा – मेरी आँखों का ख्याल रखना।




