सिन्दूर की आग
सेना के जवानों को समर्पित
डॉ. सुधा सिन्हा

देख हमारी संस्कृति को,
सिन्दूर की कीमत कितनी है,
जल्लादों नहीं सोंच सकते,
औकात न तेरी उतनी है।
सिन्दूर की दो चुटकी ने,
तांडव मचा के रख दिया,
मांग की चमकती रेखा ने,
दुश्मन को भरता कर दिया।
तुमको मजा चखाया हमने,
ठिकाना नेस्तनाबूद किया,
घुटनों पर बैठा कर तुमको,
घिघियाना मंजूर किया।
इतिहास उलट कर जरा देखना,
सिन्दूर की कथा निराली है,
इससे ना टकराना बंधु,
बात यह बहुत पुरानी है।
शोला बन के आग उगलती,
तीर की तरह चुभ जाती,
हृदय वेध कर रख देती,
उफ भी नहीं निकल पाता।
धन्य धन्य वह मां-सपूत,
सिन्दूर की लाज बचाता है,
जो भी आडे आ जाता,
उसको तो मजा चखाता है।
संग में सेना साथ जो चलती,
राम की याद दिलाती है,
तहस नहस लंका हो जाता,
इतिहास पुनः दुहराता है।
चुन चुन कर तुझे मारेंगे
जल के लिए तड़पायेंगे,
तुमने बहुत सताया हमको,
आतंक का जनाजा उठायेंगे।
शत शत बार नमन सेना को,
शीश अपना हम झुकाते हैं,
भगवन को तो नहीं देखा,
उसकी हम पूजा करते हैं।