कवि प्रदीप की कुछ कविताएं
कविता

- कवि प्रदीप
कवि प्रदीप (6 फरवरी, 1915 – 11 दिसम्बर, 1998) भारतीय कवि एवं गीतकार थे जो देशभक्ति गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ की रचना के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। कवि प्रदीप का मूल नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था। उनका जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन में बदनगर नामक स्थान में हुआ। कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज फिल्म बंधन से बनी। हालांकि 1943 की स्वर्ण जयंती हिट फिल्म किस्मत के गीत ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है’ ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया। गीत से क्रोधित तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए। इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा। पांच दशक के अपने पेशे में कवि प्रदीप ने 71 फिल्मों के लिए 1700 गीत लिखे। उन्हें 1997-98 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मैं एक नन्हा सा मैं एक छोटा सा बच्चा हूं
मैं एक नन्हा सा मैं एक छोटा सा बच्चा हूं
तुम हो बड़े बलवान
प्रभु जी मेरी लाज रखो
मैं एक नन्हा सा …
मैंने सुना है तुमने यहां पे
लाखों के दुःख टाले
मेरा दुःख भी टालो तो जानूं
चक्र सुदर्शन वाले
मैं एक नन्हा सा मैं एक छोटा सा बच्चा हूं
मुझपे धरो कुछ ध्यान
प्रभु जी मेरी लाज रखो
मैं एक नन्हा सा …
तुमको दयालु अपना समझके मैंने आज पुकारा
मुझ निर्बल के हाथ पकड़ लो
दे दो नाथ सहारा
मैं एक नन्हा सा मैं एक छोटा सा बच्चा हूं
मैं भी तुम्हारी संतान
प्रभु जी मेरी लाज रखो
मैं एक नन्हा सा …
मैं आया हूं आज तुम्हारे द्वार पे आस लगाये
ऐसा कोई जतन करो प्रभु
सांच को आंच ना आये
मैं एक नन्हा सा मैं एक छोटा सा बच्चा हूं
बिगड़ी बनादो भगवान
प्रभु जी मेरी लाज रखो
प्रभु जी मेरी लाज रखो
प्रभु जी मेरी लाज रखो।

एक कर्ज मांगता हूं बचपन उधार दे दो
किस बाग में मैं जन्मा खेला
मेरा रोम रोम ये जानता है
तुम भूल गए शायद माली
पर फूल तुम्हें पहचानता है
जो दिया था तुमने एक दिन
मुझे फिर वो प्यार दे दो
एक कर्ज मांगता हूं बचपन उधार दे दो
तुम छोड़ गए थे जिसको
एक धूल भरे रस्ते में
वो फूल आज रोता है
एक अमीर के गुलदस्ते में
मेरा दिल तड़प रहा है मुझे फिर दुलार दे दो
एक कर्ज मांगता हूं बचपन उधार दे दो…
मेरी उदास आंखों को है याद वो वक़्त सलोना
जब झूला था बांहों में मैं बनके तुम्हारा खिलौना
मेरी वो ख़ुशी की दुनिया फिर एक बार दे दो
एक कर्ज मांगता हूं बचपन उधार दे दो…
तुम्हें देख उठते हैं
मेरे पिछले दिन वो सुनहरे
और दूर कहीं दिखते हैं
मुझसे बिछड़े दो चेहरे
जिसे सुनके घर वो लौटे मुझे वो पुकार दे दो
एक कर्ज मांगता हूं बचपन उधार दे दो…।