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नहीं कुछ खबर है

  • प्रो. (डॉ.) सुधा सिन्हा

खिड़की के बाहर शजर है,
सुन्दर सा मेरा सफर है।

इठलाती बहारें यहां पे,
इन सब पे मेरी नजर है।

हिरणें यहां चली आतीं,
मेरी तो ना ही पकड़ है।

मुझे देख के मुस्कुराती,
आखें तो उसकी सुघड़ हैं।

आई है बाढ़ यहां पे,
उसकी तो जैसे कहर है।

इश्क की है गलियां वीरान,
किसी को नहीं कुछ खबर है।

सपनों में गर वह आता,
बन जाता मेरा दिलबर है।

देश की माटी

बादलों की ओर से,
घूंघट की ओट से,
सूर्य कैसे झांकता,
तारे डर गये भोर से।

फिजाओं में भी बज रही,
है कोई सुन्दर रागिनी,
लहरों के घुन पे,
मचलती है कोई दामिनी।

समुन्दर पार हम हैं बसे,
मां की याद मन में पले,
दिल मेें हैं वीरानियां,
कुछ भी हमको ना जंचे।

अपनी मिट्टी सोंधी भली,
बसती है रवानियां,
इसके आगे फीकी पड़ी,
है सारी जवानियां।

विश्वगुरु भारत

पेड़ों के झुरमुट से,
कोई गीत गाता है,
आतंक जनाजा उठा,
मुझे भी बुलाता है।

स्वतंत्रता की रागिनी,
धीरे धीरे बज रही,
माता गजगामिनी,
वहां पे है सज रही।

वीणा लेके कोई,
वहां गुनगुनाता है,
रामराज्य उतरा वहां,
बहुत ही भाता है।

आजादी का दूत वहां,
झंडा लहराता है,
भारत को विश्वगुरु,
बना के मुस्काता है।

चावला हो या शंभू हो,
देश मान बढ़ाता है,
क्षितीज में भी जाकर के,
झंडा फहराता है।

जीवन की गति

सबसे मिलिए,
अपना न कहिए,
जीवन सफरनामा,
मुसाफिर-सा रहिए।

जीवन की बगिया,
फूलों से भरी है,
गंध उसका लीजिए,
समेट के न रखिए।

दुनिया में आये हैं तो,
सबसे प्यार कीजिए,
जब जाना पड़े,
सब छोड़ के चल दीजिए।

आज जो मेरा है,
कल किसी और का,
अपना काम कीजिए,
उम्मीद नहीं कीजिए।

जो भी पाया आपने,
जीवन को खाली कीजिए,
निर्विकार रहिए,
जीवन को गंगा कीजिए।

पता : कुमुद इनक्लेव, बी.-1, कृष्णा निकेतन स्कूल के पास,
बुद्धा कॉलोनी, पटना-800001 बिहार

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