हरि प्रकाश गुप्ता की कविताएं

आओ भाइयों तुम्हें बताएं
आओ भाइयों तुम्हें बताएं सच्चाई हिंदुस्तान की।
देश में खुद दुश्मन इतने, चिंता करते पाकिस्तान की।।
पाकिस्तानी आतंक मचाएं आकर हिंदुस्तान में।
देशी दुश्मन गीत गाकर खुशी मनाते हिंदुस्तान में।।
हन हना हन हन, हन हना हन हन।
मारने का इनको करता मेरा मन।।
पाकिस्तान पर कार्रवाई करें, चेहरे इनके मुरझा जाते हैं।
हिंदुस्तान के विरोध में चीन और अमेरिका से गुहार लगाते हैं।।
आओ भाइयों तुम्हें बताएं सच्चाई हिंदुस्तान की।
देश में खुद दुश्मन इतने, चिंता करते पाकिस्तान की।।
पाकिस्तान में घुसकर हमला करते, दिल इनके जल जाते हैं।
अपने ही फौजी की कार्रवाई के सबूत मांगने आते हैं।।
ऐसी मानसिकता वाले दुश्मन हमारे हिंदुस्तान के।
हिंदुस्तान की मिट्टी में सांसें लेते, गीत गाते पाकिस्तान के।।
आओ भाइयों तुम्हें बताएं सच्चाई हिंदुस्तान की।
देश में खुद दुश्मन इतने, चिंता करते पाकिस्तान की।।
हन हना हन हन, हन हना हन हन।
मारने का इनको करता मेरा मन।।
हम फिर मिलेंगे
जंग छिड़ चुकी है, छुट्टी में जाऊं कैसे
मां बीमार है पर, घर जाऊं कैसे
घर का अकेला, जाना भी जरूरी
और जंग लड़ना भी जरूरी
वहां मेरी जन्म देने वाली और इधर
मेरी भारत मां, दोनों जरूरी
हम नहीं आ पाएंगे, बताया जाए कैसे
छुट्टी भी शायद मिल जाएगी जैसे तैसे
पर सच्चा सिपाही हूं, जंग
छोड़ कर न जाया जाए
‘हम फिर मिलेंगे’ मां को
बताया कैसे जाए
हिम्मत कर पिताजी को फोन लगाया
मां जी का हाल पूछा और अपना बताया
सुन मां की बातें हिम्मत बहुत आई
मां ने कर्तव्य की बात याद दिलाई
मेरे से भी बढ़कर भारत माता तुम्हारे लिए
आज बहुत जरुरी जंग लड़ना उनके लिए
इससे खुशनसीब और कौन मां होगी
जो एक सिपाही को जंग जाने देगी
सब कुछ बेहतर होगा ‘हम फिर मिलेंगे’
मत आओ छुट्टी लेकर, हम ये ही कहेंगे
जंग जीतकर आना ही होगा
खुशी सुनने के लिए मैं भी जिंदा रहूंगी
खुशी खुशी जाओ, आशीर्वाद साथ मेरा
‘हम फिर मिलेंगे’ बार बार कहूंगी।
चाय
सुबह सुबह आंख खुलती
चाय की आती याद।
सारे काम होते हैं
चाय पीने के बाद।।
चाय पीकर दबाव बनता
जाते हैं फिर कहां।
नहीं बताने की आवश्यकता
जानते हैं सभी यहां।।
नाश्ते की तैयारी होती
नहाने की बारी आती है।
बीवी भी दफ्तर वाली
वो भी तैयार हो जाती है।।
काम वाली काम निपटाकर
अपने घर चली जाती है।
सुबह सुबह आंख खुलती
चाय की आती याद।
सारे काम होते हैं
चाय पीने के बाद।।
दस बजे दफ्तर पहुंचने
सवारी हमारी भी निकल जाती है।
काम किए बज गए बारह, चाय की याद आती है।
दफ्तर में चाय भी सही समय पर मिल जाती है।।
चाय पीकर चुस्ती आती
काम अधिक हो जाता है।
थोड़ी देर बाद फिर भोजन
का समय आता है।।
सुबह सुबह आंख खुलती
चाय की आती याद।
सारे काम होते हैं
चाय पीने के बाद।।
चाय की चाहत में पुनः
चार बजे की चाय की आती बारी है।
चाय की चुस्ती से काम करने की
क्षमता होती भारी है।।
काम समय पर सब हो जाता
कल पर नहीं टाला जाता है।
नये नये कामों की फाइल
टेबल पर आती जाती हैं।
चाय ही तो है जो दफ्तर में भी
पहचान कराती है।।
हम भी पीते, वो भी पीते
चुस्ती सभी को आ जाती है।
काम की चाहत में फाइल सभी
पूरी हो जाती हैं।।
सुबह सुबह आंख खुलती
चाय की आती याद।
सारे काम होते हैं
चाय पीने के बाद।।
हिन्दी मुझे बहुत भा गई है
हिन्दी मुझे बहुत भा गई है
जहां देखो वहां अंग्रेजी पाई है
हिन्दी को बिसार दिया सभी ने
अंग्रेजी स्कूल लाई है
गुरुकुल भी अब नहीं यहां
अपनी हिन्दी क्यों लाचार यहां
दफ्तरों और अन्य संस्थानों में भी
अंग्रेजी ही सबको भाती है।
बड़ों बड़ों की क्या कहूं
छोटे छोटे बच्चों को भी
हिन्दी नहीं सिखाई जाती है।
अ से ज्ञ तक हिन्दी के अक्षरों का
ज्ञान नहीं होगा
एक से लेकर सौ तक गिनती का भी
पता नहीं क्या होगा।
पहाड़ों की क्या बात कहूं
कैलकुलेटर साथ अब रहता है
हिन्दी को कभी ना भूलो
और अब क्या कहूं।
अपने ही देश में हिन्दी
जब अपनी पहचान खोएगी
अपने अंतर्मन से सोचो
अपनी भाषा क्या ऐसे ही रोएगी।
याद करो बचपन अपना
जब नानी और दादी हिन्दी में कहानी सुनाती थी
नींद नहीं आने पर हिन्दी में लोरी सुनाती थी।
कसम उन्हीं नानी और दादी की
दिल से याद करो उन कहानियों को
चंदा, सूरज, आसमान और झरने,
नदियां और पहाड़ियों वाली कहानियों को
सुनता हूं सुबह-शाम मंदिरों में
घंटा और शंखनाद की आवाज
और हिन्दी में आरती गाई जाती है
बहती जब सुबह-सुबह पुरवाई
और पार्कों, बागों से सुगंधित फूलों की खुशबू आती है
बचपन के हिन्दी माध्यम वाले स्कूल की बहुत याद आती है
हिन्दी में पढ़ी कहानी और कविताएं
अपने आप याद आ जाती हैं
हिन्दी में लिखी हुई किताबें और कापियां
आज भी याद आ जाती हैं
भले आज बड़े हो गए और सब कुछ बदल गया है
अंग्रेजी की लालसा ने, हिन्दी से दूर किया है
पर आज तो हिन्दी के नाम पर
सिर मेरा अभिमान से उठ जाता है
हिन्दी के यश को अब विदेशों में भी गाया जाता है
बड़ी बड़ी हिन्दी संस्थानों को
विदेशों में मान दिया जाता है
हिन्दी की जानकारी देने विदेशों में बुलाया जाता है
हिन्दी के लेखकों और कवियों की
बड़ी रुचि के साथ जानकारी समझी जाती है
तुलसीदास, सूरदास, कबीर, रहीम और रसखान के दोहे
पद्य और चौपाई दुनिया अब पढ़ने आगे आ आती है
हिन्दी मुझे बहुत भा गई है
जहां देखो वहां अंग्रेजी पाई है
हिन्दी को बिसार दिया सभी ने
अंग्रेजी स्कूल लाई है।
कलयुगी जयचंद
हर युग में जयचंद पैदा होते हैं।
नफरत और बुराई के बीज बोते हैं।।
भारत में भी जयचंदों के कारण
नफरत इतनी फैल रही है।
जाति-पाति और धर्म के नाम पर
आपस में लड़ाई हो रही है।।
देश का सम्मान करना जिनको नहीं आता है।
जयचंदों को बाहरी दुश्मन सम्मान दिलाता है।।
जिन वीरों ने देश के लिए बलिदान दिया है।
जयचंदों ने उनका भी बलिदान भुला दिया है।।
जब भी एकता की बात करो, वो अपना भयानक रूप दिखाते हैं।
देश के प्रति अपनापन छोड़, देश के ही दुश्मन बन जाते हैं।।
कहां कहां से अपनी गंदी सोच से झूठी कहानियां सुनाते हैं।
सच्चाई छुप नहीं सकती, पोल खुलने पर भी नहीं शरमाते हैं।।
बेशर्मी का लिबास पहनकर झूठ, छल, प्रपंच का चोला पहना है।
देशवासियों बताओ, ऐसे लोगों के भरोसे क्यों रहना है।।
हर युग में जयचंद पैदा होते हैं।
नफरत और बुराई के बीज बोते हैं।।
समय आ गया देश के जयचंदों को बुरे कर्मों की सजा देने का।
धैर्य टूट रहा, अब नहीं समय इंतजार करने का।।
अबकी बार संसद में इनको नहीं आने देना है।
देश के जयचंदों को एक भी वोट नहीं देना है।।
कसम देश की, जयचंदों को दौड़ा-दौड़ा कर भगाना है।
संसद के अंदर न जाने देंगे, जयचंदों से बचाना है।।
हर युग में जयचंद पैदा होते हैं।
नफरत और बुराई के बीज बोते हैं।।
पति और पत्नी
पति और पत्नी में होती लड़ाई,
मैं क्या करूं भाई।
पति, मेरा भईया और पत्नी, भौजाई
मैं क्या करूं भाई।।
छोटी छोटी बातों में आपस में ठन जाती।
आपस में बातचीत भी बंद हो जाती।।
जिद्दी हैं भईया और भाभी भी बहुत गुस्सालू।
भईया को पसंद बैंगन का भर्ता, भाभी को है आलू।।
कभी कभी छोटी छोटी बातों में होती गड़बड़ी।
भईया मेरे दुबले पतले और भाभी तगड़ी।।
पति और पत्नी में होती लड़ाई,
मैं क्या करूं भाई।
पति, मेरा भईया और पत्नी, भौजाई
मैं क्या करूं भाई।।
भाभी का आया जन्मदिन
भईया गए भूल।
भाभी जी बहुत क्रोधित,
भईया को चटा दी धूल।।
बड़ी मुश्किल से शांत हुई भाभी
जब भईया बहुत मनाए।
थियेटर में पिक्चर देखी और
बढ़िया होटल में खाना खाए।।
याद रखेंगे सदैव भईया
जब भाभी का जन्मदिन आएगा।
कहां अब इतना साहस पत्नी को
फिर से मनाएगा।।
पति और पत्नी में होती लड़ाई,
मैं क्या करूं भाई।
पति, मेरा भईया और पत्नी, भौजाई
मैं क्या करूं भाई।।
याद बहुत आते हैं
याद बहुत आते हैं हमको, अपने बचपन वाले दिन।
स्कूल में जाकर दोस्तों के साथ, पढ़ाई करने वाले दिन।।
बिना बात पर मित्रों से, झगड़ा करने वाले दिन।
स्कूल के अध्यापकों की नकल, उतारने वाले दिन।।
अध्यापक जी से सवालों के, गलत जबाब देने वाले दिन।
बदले में उनसे हाथों में अपने, डंडे खाने वाले दिन।।
स्कूल से आकर खाना खाकर, भरी दोपहरी कंचे खेलने वाले दिन।
खेलकूद कर चोरी-चोरी, घर वापस आकर डांट खाने वाले दिन।।
याद बहुत आते हैं हमको, अपने बचपन वाले दिन।
स्कूल में जाकर दोस्तों के साथ पढ़ाई करने वाले दिन।।
सुबह-सुबह उठ कर मैदान में, दोस्तों के साथ घूमने वाले दिन।
मेला ग्राउंड में इमली तोड़ कर खाने वाले दिन।।
आम के सीजन में आम बाग में, चोरी से आम खाने वाले दिन।
आम बाग के माली ने जो देख लिया, भगा भगा कर दौड़ाने वाले दिन।।
बरसात के महीने में नाले में बाढ़ आने वाले दिन।
बारिश में दोस्तों के साथ भीगने वाले दिन।।
घरों के अंदर बारिश का पानी घुसने वाले दिन।
गांव के तालाबों में भरा हुआ पानी वाले दिन।
सावन माह में पाखड़ पेड़ पर झूले में झूलने वाले दिन।
पाखड़ पेड़ के पास कुएं में सुबह शाम नहाने वाले दिन।।
घर के पास पहाड़ी में पतंगबाजी करने वाले दिन।
बाबू जी और भईया से पतंग छुपाकर रखने वाले दिन।।
बचपन की क्या बात कहूं, कितने अच्छे होते बचपन वाले दिन।
याद बहुत आते वो बचपन के नादानी वाले दिन।।
शाम को साइकिल चलाना सीखते, सीखते गिर जाने वाले दिन।
छुट्टी के दिन दोस्तों के साथ बिना बताए तालाब नहाने जाने वाले दिन।
तालाब के गहरे पानी में जाकर, कमल डंडी और सिंघाड़े खाने वाले दिन।।
याद बहुत आते हैं हमको, अपने बचपन वाले दिन।
स्कूल में जाकर दोस्तों के साथ, पढ़ाई करने वाले दिन।।
ऐसी मेरी बस्ती है
लौकी महंगी, पपीता महंगा
इंसान की कीमत सस्ती है।
रोगों से भरपूर घर अपना
ऐसी मेरी बस्ती है।।
बीपी बढ़ा, मधुमेह बढ़ी
गुर्दों ने भी नाता तोड़ लिया।
सुरक्षित नहीं दिल अपना
उसने भी रोगों से रिश्ता जोड़ लिया।।
खान-पान का सामान भी
केमिकल से भरा हुआ है।
पानी और हवा की क्या बात करूं
वो भी प्रदूषित हुआ है।।
इंसान की क्या तारीफ करें
रोगों से घिरा इंसान हो गया।
रोटी, चावल, दाल और सब्जी से अधिक
दवा ही उसका लंच और डिनर हो गया।।
लौकी महंगी, पपीता महंगा
इंसान की कीमत सस्ती है।
रोगों से भरपूर घर अपना
ऐसी मेरी बस्ती है।।




