आह्वान
जन-गण का प्रतिबिम्ब बनकर
राष्ट ª का अवलम्ब बनकर,
युद्ध को
ललकार रहा है,
एक वृद्ध!
पुकार रहा है,
रे! भारत के वीर-पुत्र?
तू क्यों चुप और चिंतित है?
तू तो,
स्वार्थवष विचलित है!
षंखनाद का आह्वान है,
रणभेरी बज चुकी है,
धिक्कार है तुम्हें!
क्या आत्मा मर चुकी है?
चल, आ!
कि बदल डालें
सत्तासीन दुर्योधन, दुःषासन और
धृतराष्ट ª को!
एक मौका आया है
आओ मिलकर बचा लें आज अपने
राष्ट ª को!!
चल उठ, तंद्रा से,
कि अब तो जीत तय है।
साहस जुटा के चल,
कि अब तो तुम्हारी जय है
अब तो तुम्हारी जय है।।
- डॉ विनोद षंकर,
पर्यावरण एवं जल प्रबंधन विभाग, एएन कॉलेज, पटना