रिश्ता
लघुकथा

प्रो. (डॉ.) सुधा सिन्हा
नौना तलाकशुदा थी। हर्जाना में मिले सारे पैसे मायकेवालों ने दबा दिया तथा उसे घर से निकाल दिया था। वह भीख मांगकर अपना गुजारा कर रही थी।
एकदिन वह भीख मांग रही थी, तभी सामने एक कार रूकी। कार देखते ही वह खिड़की के पास जाकर भीख के लिए हाथ पसार दी। कार में उसके ही पति बैठे थे। वह आवाक रह गई। उन्होंने कोर्ट के फैसले के अनुरूप हर्जाने के तौर पर चालीस लाख रुपए तो दिये ही थे।
सड़क पर पूछताछ न करके उन्होंने तुरंत उसे कार में बैठा लिया। नैना उन्हें अपनी खोली में ले गयी। खोली के आसपास ही वह भीख मांगकर गुजारा करती थी। सारे पैसे मायकेवालों ने लेकर उसे घर से निकाल दिया था, नैना के अपने पति को बताया।
नैना के पति बलबीर ने कहा कि उसे घर नहीं ले जा सकते, क्योंकि उनका तलाक हो चुका है। बलबीर ने तुरंत अपनी मां को फोन लगाया। उन्होंने अपनी मां से नैना की हालत बताकर पूछा, ‘‘मां, क्या मैं इसे घर ला सकता हूं।’’ मां ने जवाब दिया, ‘‘क्यों नहीं, वह तुम्हारी पत्नी और मेरी बहू है।’’
मां की बात सुनकर बलबीर खुश हो गया। नैना की आंखों से आंसू निकल रहे थे।