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Second : हिन्दी कहानी/कविता प्रतियोगिता 2020 (Story)

रंगुआ का दर्द

ओली मिंज

रात के तीसरे पहर कटौर मुर्गी को नींद नहीं आ रही थी। जब तब कोट – कोट – कोटाक किए जा रही थी। चूजों की मम्मी आखिर कब तक बर्दाश्त करती ! उखड़ गई हत्थे से। इससे पहले कि कटौर चुप होती, चूजे जाग चुके थे। अब तो रंगुआ और चरका मुर्गे भी खिसिया गए। गुस्से में रंगुवा ने तो बांग भी लगा दिया। फिर क्या था ? पहले तो कटौर भागी बाहर। पीछे-पीछे झांझो मुर्गी, फिर चूजे, फिर इनकी मम्मी। इसके बाद निकले रंगुआ और चरका, अपने-अपने काॅलर झाड़ते हुए।
सुबह हो चुकी थी। रंगुआ आदतन कटौर के पीछे भागा। तो चरका बाकी सदस्यों की निगरानी में लग गया। कुछ समय तक तो सब कुछ ठीक ठाक रहा। अचानक पड़ोस का मिंज काका टपक गया, झिंनझरिया लेकर। मालिक से कहने लगा – ‘‘तुम्हारा रंगुआ से लड़ा कर देखता हूं। बढ़िया फाइट करेगा तो बाजार चढ़ाएंगे।’’ बेचारा रंगुआ को ना चाहते हुए भी भिड़ना पड़ा। यहां अच्छी फाइट देना रंगुआ के लिए मुसीबत बन गयी।

मिंज काका ने उल्टा पहाड़ा पढ़ा दिया – ‘‘तुम्हारा रंगुआ तो अच्छा फाइट देता है… बाजार चढ़ाओगे तो जीतोगे …बाजी भी और मुर्गा भी।’’
मालिक को आइडिया बुरा नहीं लगा। सो मालिक ने रंगुआ को मुर्गा लड़ाई के मैदान में ले जाने का मन बना लिया। बातों-बातों में मालिक ने यह स्वीकार किया कि वह पहली बार मुर्गा लड़ाई जा रहा है। अगर हार गया तो फिर कभी मुर्गा लड़ाई नहीं जाएगा।
रंगुआ ने मालिक की बातें सुन ली थी और मन ही मन सोच लिया था कि मैं मुर्गा लड़ाई के मैदान में जीतने के लिए नहीं लडूंगा, बल्कि हारने के लिए लडूंगा, ताकि मालिक को मुर्गा लड़ाई और जुए की आदत ना पड़े। रंगुआ को मालूम था कि मुर्गा लड़ाई में जुआ खेलकर कितने इंसानी परिवार बर्बाद हो चुके हैं।
रंगुआ को काली कोठरी में रखा गया। कल मालिक उसे मुर्गा लड़ाई में ले जानेवाला है। इधर, मुर्गी घर में सभी खामोश हैं। प्रेमिका कटौर का तो और भी बुरा हाल था। हमेशा झांव-झांव करनेवाली झांझों भी आज चुपचाप थी। लेकिन कब तक चुप रहती। रुंधे गले से आखिर बोल ही दी – ‘‘पता नहीं रंगुआ अब आएगा या नहीं… हां… थोड़ा शैतान है… पर अच्छा है।’’ झांझो की बातें सुनकर कटौर बुरी तरह टूट चुकी थी। सारी रात वह सिसकती रही।
मुर्गा लड़ाई के शोरगुल के बीच रंगुआ एक किनारे रस्सी से बंधा था। लोग जोड़ी लगाने के मकसद से आते, तो रंगुआ को भी तेवर दिखाने पड़ते थे। आखिरकार रंगुआ का जोड़ीदार मिल गया था। दोनों मैदान में आमने-सामने थे। चारों तरफ लोगों का हुजूम था। लोग एक दूसरे से बाजी लगा रहे थे। कोई रंगुआ पर दांव लगा रहा था, तो कोई उसके प्रतिद्वंद्वी पर। रंगुआ का मालिक भी फुल टेंशन में था।
आखिर फाइट शुरू हुई। शुरुआत में रंगुआ ने दो चार बढ़िया पंच भी मारा। अगला भी कम नहीं था। उसके आक्रमण का रंगुआ ने बढ़िया बचाव भी किया। इस मुकाबले में रंगुआ को तो पराजित होना था, सो उसने फाइट में अपनी पकड़ ढीली कर दी। अगले ने भी इसका भरपूर लाभ उठाया और देखते ही देखते रंगुआ धराशाही हो गया। अंतिम सांस लेने से पहले रंगुआ कराहते हुए बोला – ‘‘चलो …मेरे मालिक का परिवार तो बच गया।’’

पता : आकाशवाणी रांची, रातू रोड, रांची-834001
मोबाइल : 7061474070
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