Naye Pallav

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मोरेलिटी

कर्मेश सिन्हा ‘तनहा’

नये पल्लव 11 अंक से

उसे कोरोना हो गया है। दो-तीन दिनों से बुखार था। दवाई खा लेता था, बुखार उतर जाता था, पर फिर हो जाता था। उसने गंभीरता से नहीं लिया था। बुखार को उसने कभी गंभीरता से लिया भी नहीं था। 99 या 100 डिग्री तक दवाई खाकर ऑफिस और घर के काम निपटाता रहता था। हाँ, 100 से ऊपर हो जाये तो बात अलग है। अतः अभी रोजमर्रा की जिन्दगी निश्चिंतता से कट रही थी।
कल रविवार था। ऑफिस जाना नहीं था। घर गृहस्थी का कुछ सामान लेने के लिए बाजार गया था। सड़क के किनारे एक कैम्प लगा हुआ था, जहाँ कोरोना का टेस्ट फ्री में हो रहा था। काउंटर पर खड़े सज्जन ने उससे कहा, ‘‘सर, आपको अगर दो या तीन दिन से बुखार है या खांसी जुकाम है या नाक बंद है, तो टेस्ट करवा लीजिए। सरकार की तरफ से फ्री है।’’
फ्री सुनते ही उसे लगा, अगर फ्री में हो रहा है तो करवाने में नुकसान क्या है। बुखार तो उसे तीन दिनों से है ही। यही सोचकर उसने कहा, ‘‘कर दीजिए टेस्ट, पर जरा जल्दी करवा दीजिए। मुझे जरूरी सामान खरीद कर जल्दी घर जाना है।’’
‘‘जी बिलकुल…’’ उन सज्जन ने कहा।
पर यह क्या ? उसका तो दिल ही बैठ गया। ‘‘सर, आपका टेस्ट पॉजिटिव आया है। ये लीजिए रिपोर्ट। इस पर दवाइयाँ भी लिखीं हैं। किसी भी सरकारी अस्पताल या दवाखाने से फ्री में मिल जायेंगी।’’
पॉजिटिव सुनकर उसका दिल बैठ गया। बड़ी मुश्किल से उसका ऑफिस पाँच महीने बंद रहने के बाद पिछले महीने ही खुला था। एक महीना भी नहीं हुआ था उसे काम पर जाते हुए। अभी तो तनख्वाह भी नहीं मिली थी। अगर दफ्तर वालों को पता चल गया, तो फिर 15 दिन ऑफिस नहीं आने देंगे। यानी इस महीने की आधी सैलरी कट जायेगी। उफ्फ ! क्या मुसीबत है।
थके हारे कदमों से खाली थैला लिए वो घर लौट गया। पत्नी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ ? सामान क्यों नहीं लाये, अब खाना क्या बनाऊँगी, एक काम को बोलो तो सारा दिन लगा देते हो और होता फिर भी नहीं।’’ एक साँस में उसने अपने चिर परिचित अंदाज में सारी शिकायतें उड़ेल दीं। उससे कुछ भी जवाब देते नहीं बन रहा था। चुपचाप बिना कुछ कहे उसने कोरोना रिपोर्ट पत्नी के हाथों में थमा दी। ‘‘अरे, तुम्हें कोरोना हो गया ?’’ पत्नी ने पूछा।
वो हल्की जबान से अपराधग्रस्त भाव से बोला, ‘‘हाँ।’’
‘‘अब ऑफिस कैसे जाओगे ?’’ पत्नी ने पूछा।
उसने कहा, ‘‘घबराओ मत। ऑफिस वालों को कह दूंगा मुझे वायरल हो गया है। डॉक्टर ने पाँच दिन की दवाई दी है और घर पर आराम करने को कहा है।’’
‘‘झूठ बोलोगे’’ पत्नी ने पूछा।
‘‘हाँ और कोई रास्ता भी नहीं है।’’ उसने कहा – ‘‘अगर सच बता दूँ तो 15 दिनों तक ऑफिस नहीं आने देंगे। आधी सैलरी कट जायेगी।’’
‘‘पर यह तो ठीक बात नहीं है’’ पत्नी बोली – ‘‘देखो, मैं तो अपने ऑफिस में साफ बता दूँगी कि मेरे हस्बैंड को कोरोना हो गया है। मैं घर पर 15 दिनों तक क्वारंटीन में रहूँगी।’’
‘‘पर तुम्हें ऐसा करने की क्या जरूरत है, तुम्हें तो कोरोना नहीं हुआ है।’’ उसने पूछा।
पत्नी बोली, ‘‘मोरेलिटी भी कोई चीज होती है।’’ इतना सुनकर वो चुप हो गया।
मगर अगले ही दिन सोमवार को उसने देखा कि पत्नी ऑफिस के समय पर ही जाने के लिए तैयार हो रही है। ‘‘कहाँ जा रही हो, तुमने तो कहा था ऑफिस नहीं जाओगी।’’
पत्नी बोली, ‘‘दस दिनों का एक ट्रांसलेशन का काम मिल गया है, रोज के दो हजार रुपये मिलेंगे। अब ऑफिस से तो छुट्टी ले ही ली है। सैलरी का नुकसान कहीं से तो पूरा करना पड़ेगा।’’
उसने पूछा, ‘‘…और वो मोरेलिटी ? उसका क्या ?’’
पत्नी बोली, ‘‘अब इस मोरेलिटी के चक्कर में बीस हजार रुपये छोड़ दूँ, इतनी बेवकूफ नहीं हूँ।’’

पता : बी 97, द्वितीय तल, नीति बाग, नई दिल्ली – 110049

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