Naye Pallav

Publisher

घर से भागी हुई बेटियां

यामिनी नयन गुप्ता

घर से भागी हुई बेटियां
साथ भगा ले जाती हैं,
आसपास की बेटियों के सपने
और पढ़ने-लिखने की आजादी
सीमित हो जाते हैं उनके आसमां
और … जीने के सरोकार।

घर से भागी हुई बेटियां
पिता, भाई की नजरों में बो देती हैं
सवालों के कैक्टस ‘कहां जा रही हो,
क्यों जा रही हो ?’
इन सवालों के दंश से जब-जब जूझेंगी
घर पर बैठी अन्य बेटियां बार-बार।

घर से भागी हुई बेटियां
थमा जाती हैं कुछ दंभी पुरुषों के हाथों में
नैतिकता का औजार … ‘मैं ना कहता था
मत पढ़ाओ बेटियों को इतना’
चुप रह जाएंगी स्त्रियां उस घर की
पीकर अपमान के घूंट और तिरस्कार।

घर से भागी हुई बेटियां
बहुत दिनों तक रहेंगी चर्चा में,
लोगों की जुबान पर,
कानाफूसियों में …
साथ ले गईं वो अपने परिवार का सम्मान
और जीने का अधिकार।

घर से भागी बेटियों के नाम पर
अब नहीं रखा जाएगा
उस शहर में जन्मी किसी बेटी का नाम
शब्दकोश से बाहर कर दिया जाएगा
उपेक्षित, अभिशप्त किसी साक्ष्य-साक्षी की
नहीं अब समाज को दरकार।

घर से भागी बेटियों के पिता के कांधे
कुछ और झुक से जाएंगे
अकेले में मुंह छुपाकर रोयेगा वो परिवार,
पर कोई ना देगा एक दूजे को
ढांढस के दो बोल,
अपनत्व का स्पर्श
मानेंगे खुद को ही वह गुनहगार।

घर से भागी हुई बेटी की
मां पर लग जाता है एक बड़ा-सा प्रश्नचिन्ह
क्या सिखाया … ?
कैसी परवरिश दी तुमने ?
कोख को लज्जित कर गई बेटी की
कैसी थी तुम पालनहार।

घर से भागी हुई बेटी
जड़ देती है ताले, बदलते दृष्टिकोण वाले
पुरुषों के साहस पर ‘बेटा बेटी एक समान’
पर कुठाराघात होता है
दहलीज से परे रखा ये कदम
हर फैसले पर अपने वह करते पुनर्विचार
ऐसे पुरुष अब नहीं रहते उदार।

घर से भागी हुई बेटियां
छोड़ जाती है एक कैद
अपनी छोटी बहनों के लिए
लील जाती हैं खुशी से लहलहाते
परिवारों की खुशहाली
ज्यों हरियाली के बीच में खर-पतवार।
वो घर से भागी हुई बेटियां।

Leave a Reply

Your email address will not be published.


Get
Your
Book
Published
C
O
N
T
A
C
T