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दिल कहता है …

हरि प्रकाश गुप्ता ‘सरल’

दिल कहता है –
ऐसा कर लो
वैसा कर लो
सारे जहां की
सैर कर लो
दिल की बात जो समझ जाए
वही अच्छा, उसे अपना बनाएं।

दिल कहता है –
दिल की थाह न
ले पाये कोई
दिल का हाल
न कह पाये कोई
दिल दरिया और
दिल है समंदर
न जा पाता कोई
इसके अंदर
बड़ी कठिन दिल की डगर है
सब की रहती इसपर नजर है
दिल की बाजी जीत ली जिसने
उसके फिर है क्या कहने !
दिल की बाजी हारी जिसने
नहीं कहूंगा कुछ भी, देते हैं रहने
समझा जिसने दिल को खिलौना
जीवन भर उसको रोना ही रोना।

दिल कहता है –
ऐसा कर लो
वैसा कर लो
सारे जहां की
सैर कर लो।

दिल कहता है –
न तोड़ो दिल किसी का
बड़ा बुरा है इसका नतीजा
मम्मी-पापा, चाची-चाचा
या फिर हो भाई-भतीजा
दिलों की बातें जो
पढ़नी आ जाए
फिर न जीवन में
समस्या आए।

दिल कहता है –
किसी के न खेलो दिल से
कितना नाजुक होता है
पूछो अपने दिल से
दिल का मामला
दिल ही जाने
कहां किसी की
ये दिल माने
टूटा है दिल जिस भी किसी का
हाल बुरा हो जाता है
जीनव सूना-सा लगता है
न समझ उसे कुछ आता है
दिल के सौदागर भी बहुत हैं
जो दिलों का सौदा करते हैं
अपनों को भी धोखा देकर
उनके दिलों से खेला करते हैं।

दिल कहता है –
ये कैसा दिल है
जो जानकर भी अनजान बना है
खाकर चोटें अपनों से ही
फिर भी सीना ताने खड़ा है।।

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