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रोको ना मुझे

कविता

काजल साह

यह नहीं हो पाएगा तुझसे
यह कहकर मत रोको मुझे
मत कह ऐसा कि
कुछ नहीं हो पाएगा तुझसे
यह कहकर मत टोको मुझे।

दुनिया बड़ी है
अब मुझे निकलने दो बाहर
कुछ कर दिखाने दो मुझे भी
संसार में मेरी भी पहचान
बनाने दो ना मुझे।

क्यों ढकेलते हो मुझे ?
क्यों कर देते हो पीछे ?
क्यों मार देते हो मेरे सपनों को ?
क्यों डराते हो बेटी कहकर ?

हर दम बेटी को ही
समाज में पीछे किया गया है !
हरदम उसके सपनों को ही
क्यों मारा गया है ?
क्या सच में बेटी होना पाप है ?

थप्पड़

उसने मारा था मुझे थप्पड़
क्योंकि मांग लिया था
उससे अपना हक
गिरा दिया मुझे उसने
खुद को ऊपर करने के लिए
गिरी थी मैं, पर टूटी नहीं थी
ठोकर खाई, थप्पड़ खाई
पर रुकी नहीं मैं
ताना मिला मुझे
सम्मान छिना गया मेरा
समाज ने नीचे गिराया मुझे
पर रुकी नहीं मैं
नहीं दिया मुझे दर्जा
इंसान के रूप में
हमेशा नीचे गिराकर रखा
मुझे किसी पत्थर की तरह
उसने मारा था मुझे
थप्पड़ क्योंकि …
मैंने मांग लिया था
अपना ही हक।

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