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गंगा मैया

ऋचा प्रियदर्शिनी

नदियों में पवित्र नदी, नदी है गंगा मैया
सुरतरंगिनी, सुरनदी पावन गंगा मैया
उद्गम हिमालय से हो मिली बंगाल की खाड़ी
कई राज्यों से होकर गुजरी सींचे उत्तरी धरती
घाघरा, गोमती, कोसी, गंडक हैं सहायक नदियाँ
उपचारक गुणोंवाली देव नदी गंगा मैया

गंगा माँ का सिंचित जल उपजाऊ भूमि को करता
उत्तरी क्षेत्रों में फसल फिर प्रचुर मात्रा में होता
भारत की है राष्ट्र नदी प्रांत में सबसे लंबी
देव नदी कहलाती पूजी जाती ज्यों देवी
पवित्र डुबकी लगाने लोग दूर-दूर से आवे
मोक्षदायिनी गंगा माँ स्वर्गपगा कहलावे

शिव शंभु की जटाएँ इनका निवास स्थान
108 संबोधन इनके भिन्न-भिन्न हैं नाम
विष्णु के पैरों से उत्पन्न हो विष्णुपदा कहलाई
ऋषि जह्नु के कर्ण से निकली जान्ह्वी नाम पाई
नभ की ओर विचरने वाली नाम हुआ मंदाकिनी
राजा भगीरथ के तप से उदित बनी यह भागीरथी

त्रिपथगा ये तीन राहों का रुख करती
गमन तीन दिशाओं का आकाश, पाताल व धरती
जल इसका दैवीय गुणों वाला होता न खराब
विज्ञान ने भी स्वीकारा इनके गुण यह खास
वेद-ऋचाएँ, पुराण, शास्त्रों में सदा होती वंदित
इनकी सुंदरता, शुद्धता साहित्य भी करे इंगित

पवित्र पावनी देवनदी भारत में पूजी जाती
पटना, प्रयाग, काशी, हृषिकेश, हरिद्वार से गुजरती
गंगा स्नान, पूजन, दर्शन से हो पापों का नाश
सफल मनोरथ, फलित प्रार्थना, ऐसा है विश्वास
वसुधा को स्वर्ग बना लोकमाता कहलाई
गंगा मैया पावन सरिता सर्वाधिक महिमामई

आज मनुष्य अज्ञानी बन दूषित इसको करता
अमृत-सा जल गंगा का विष में हैं बदलता
गंगा का जल शुद्ध स्वच्छ निर्मल हमें है रखना
प्रदूषण के कारण निवारण हमें आज समझना
युगों युगों से सुरसरिता बन बहती गंगा मैया
बारहमासी निर्झरिणी सदा पावक गंगा मैया।

बारिश

ये बारिश की बूँदे और मौसम सुहाना
याद आ गया फिर ज़्ामाना पुराना
रिमझिम रिमझिम थी बारिश बरसती
भीनी सी खुशबू हवा में थी घुलती
याद आती है वो कॉलेज की कैंटीन
वो चाय के प्यालों पर चर्चे निस दिन
वो चुस्कियों संग बातें हजार
भीगा सा मौसम जिंदगी गुलज़्ाार
कुछ सपने कुछ हकीकत की बातें
तय करना फिर अगली मुलाकातें
पल में गमगीन पल में ठहाके
किस्से थे सौ सौ वक्त जरा कम थे
सुलगते थे दिलों में अरमां हज़्ाार
जोश रगों में ख्वाइशें अपार
तमन्नाओं का सैलाब था आता
चाय के प्याले पर ब्रह्माण्ड रच जाता
चाय तो सिर्फ बहाना था होता
दोस्तों के संग वक्त था कटता
कई मसलों पर मंथन थे करते
ज्ञान के कितने पिटारे थे खुलते
फिल्म, राजनीति, साहित्य, संस्कार
फ़लसफे आते नाना प्रकार
प्रीत से भी थे क्या अछूते
हर रिश्तों के जिक्र थे होते
एक अदद कैंटीन थी प्यारी
जहाँ बूँदों संग होती थी शायरी
जी करता था बारिश थमें न कभी
गीतों, ग़्ाज़्ालों की महफ़िल रहे यूँ सजी
बेफ़िक्री का आलम खूबसूरत समां
गुम हो गए दिन वे न जाने कहाँ
चलते चलते आ गए किस डगर
न पैरों के निशां हैं अंतहीन सफ़र
बरसात कितनी आए लुभाए
पर दिन वे कभी लौट न पाए
अब भी तो वैसी बारिश है होती
पर कहाँ वैसी महफ़िल है सजती
वो मित्र मंडली का चहकना
गीत गुनगुनाना, थोड़ा बहकना
काश लौटा दे कोई वो लम्हे पुराने
वो बूँदों की लड़ियां और वर्षा सुहानी
जहाँ न गम के बादल न पतझड़
धुली हरियाली आशाएं निरंतर
याद बहुत आता है ज़्ामाना पुराना
वो बारिश की बूंदे वो मौसम सुहाना !

कविता संग्रह ‘नव सृजन’ से…

Address : 151, Kalpkriti Parisar, Awadhpuri Risali, Bhilai, Durg, Chhattisgarh.
E-Mail : [email protected]

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