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भूत से सामना

संस्मरण

प्रियंका श्रीवास्तव ‘शुभ्र’

दिल दहलाने वाली वो रात भूले नहीं भुलाई जाती, जब हमने रात के साढ़े ग्यारह बजे भूत देखने का मन बना लिया, सिर्फ अपनी हेकड़ी में कि हमें डर नहीं लगता और फिर अंजाम क्या हुआ !
घर के प्यार भरे सुरक्षा कवच से निकलकर मन में अनेक उमंग लिए पहली बार हॉस्टल की दुनिया में आई, किंतु सब फीका पड़ गया, क्योंकि मुझे कमरा मिला सीनियर के साथ।
हमारी एक-दो सहेलियों को छोड़कर सभी अपने ही बैच वाली लड़कियों के संग रहती थीं। उन लोगों की मस्ती थी, क्योंकि सीनियर मुझे घर वाली सुरक्षा कवच प्रदान कर रही थी। जैसे ही मालूम हुआ कि कमरा नंबर 13 में एक बेड खाली हुआ है, मैं अपना बोरिया-बिस्तर समेट वहां आ गई।
इस कमरे में आने के लिए वार्डेन की कितनी मनुहार करनी पड़ी थी। कमरा तो मिल गया, पर उस कमरे में रात ग्यारह बजे से ज्यादा नहीं जागने की हिदायत मिली, क्योंकि साढ़े ग्यारह के लगभग वहां रोज घुंघरू की आवाज सुनाई देती थी, जिसे भूत की आवाज बताई जाती थी।
प्रायः हम तीनों सहेलियां नित्य ग्यारह बजे तक सो ही जाती थीं। अतः कभी इस आवाज का सामना नहीं करना पड़ा। परीक्षा नजदीक आते ही हम अकसर रात में ज्यादा देर तक जागने लगे और तब उस घुंघरू की आवाज का सामना करना पड़ा। आवाज धीमी होती, अतः उधर से ध्यान आसानी से बंट जाता। जिस दिन कोई अकेली जागती, उस दिन साहसी होने का नाटक करते हुए भी थोड़ी ही देर में वो डरकर बिस्तर में दुबक जाती।
एक रात हम तीनों जाग रहे थे। ग्यारह बजते ही घुंघरू की आवाज छन-छन कर आने लगी। उस दिन जाने कैसे हम तीनों में वीरता के भाव जागृत हो गए और हमने भूत देखने का मन बना कमरे की लाइट बंद कर टॉर्च का सहारा लिया। खिड़की खोलकर टॉर्च के सहारे बाहर भूत देखने का अथक प्रयास जारी था। हम तीनों किसी तरह से खिड़की पर लटकी हुई थीं। हमारे खिड़की से टॉर्च की रौशनी ज्यों ही बाहर गई, गॉर्ड पीछे से नजदीक आकर पूछ बैठा – ‘‘दीदी, क्या बात है ?’’
नीलू बोल पड़ी – ‘‘ये घुंघरू की आवाज कहां से आ रही है ?’’
‘‘दीदी, मेरी बकरी के गले में घुंघरू बंधी है। अभी तक हमलोग आग का धुंआ करके बैठे थे, अतः मच्छर नहीं लग रहा था। सोने जाने से पहले हम आग बुझा देते हैं, तो धुंआ खत्म होते ही बकरियों को मच्छर काटने लगता है और ये अपने बचाव में हिलने लगती हैं, जिससे गले में बंधा घुंघरू बजने लगता है।’’
अनोखे भूत से हमारा सामना हो चुका था। एक बिल्कुल सफेद और दूसरा उजला-काला प्यारा-सा मेमना, मच्छर से बचाव के लिए अपनी मां के पेट में समा रहा था।
‘‘सॉरी दीदी, आपलोगों की नींद खुल गई।’’
वो सॉरी कर रहा था और हमारे हंसने की आवाज कमरे में गूंज… बाहर भी निकल रही थी।

पता : 305, इंद्रलोक अपार्टमेंट, न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी, पटना-800013 बिहार

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