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धरा का रक्षक

बाल कहानी

प्रियंका श्रीवास्तव ‘शुभ्र’

बारिश होते ही बच्चे-बड़े, सभी बेहद प्रसन्न हो गए, क्योंकि भीषण गर्मी से धरा तप रही थी। गर्मी भी ऐसी कि छांव भी छांव ढूंढ रही थी, कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। ऐसे में बारिश की बूंदे राहत देने लगीं। बारिश के बाद हल्की हवा चलने से मौसम और भी सुहाना हो गया।
इस सुहाने मौसम का आनंद लेने राहुल अपने माता-पिता और छोटे भाई रोहित के साथ पास वाले पार्क में आ गया। सभी सुहाना मौसम का आनंद ले रहे थे।
मम्मी-पापा एक बेंच पर बैठ गए और बच्चे अन्य बच्चों के साथ दौड़-धूप करने लगे। थोड़ी ही देर में रोहित उदास हो आता दिखाई दिया। मम्मी उत्सुकतावश उसकी ओर बढ़ गई। रोहित निकट आते ही बोल पड़ा, ‘‘मम्मी, पानी का बोतल देना।’’
झटपट पानी का बोतल लेकर वह उसी तरफ दौड़ पड़ा, जिधर से आया था। मम्मी ने सोचा, शायद किसी बच्चे को प्यास लगी होगी। मम्मी-पापा फिर अपनी बातों में मशगूल हो गए।
थोड़ी देर के बाद उनकी निगाह बच्चों को ढूंढने लगी। सारे बच्चे कहीं दूर चले गए थे। जब वे लोग वहां पहुंचे, तो देखा, बच्चे कुछ पौधों में पानी डाल रहे थे। ऊंचा शेड होने के कारण वहां के कुछ पौधे वर्षा के जल से महरूम रह गए थे। वे मुरझा रहे थे। सभी बच्चे मिलकर अपने-अपने बॉटल से पानी उनमें डालकर उनको पुनः हरा करने के प्रयास में लगे थे।
बच्चों को लेकर लौटते वक्त मम्मी ने कहा, ‘‘अब रास्ते में प्यास लगेगी तो मुझसे पानी मत मांगना। कारण तुम खुद जानते हो।’’
मम्मी की आवाज में खीज थी, जो स्पष्ट झलक रही थी। राहुल ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘मम्मा, आज तो पानी हमलोग बचा लेते अपने पीने के लिए, मगर ये पौधे मर जायेंगे, तो कल हमारे लिए पानी की कमी हो जाएगी। तुम्हें पता है, इन पौधों के कारण ही बारिश होती है। यदि सारे पेड़-पौधे सुख जायेंगे, तो बारिश भी नहीं होगी और धरती का जल भी कम होने लगेगा। ये पौधे बारिश भी करवाते हैं और बारिश के पानी को धरती में सहेजकर रखते भी हैं। हमने अपनी किताबों में पढ़ा है।’’
पापा राहुल की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे और उन्हें पर्यावरण के अपने इस नन्हें सिपाही पर गर्व हो रहा था। उन्होंने कहा, ‘‘बच्चों, अब हमारे पर्यावरण को कोई खतरा नहीं।’’
‘‘वो कैसे पापा…?’’ राहुल बोल पड़ा।
‘‘जब हमारे राहुल-रोहित जैसे पर्यावरण के नन्हें सिपाही अपने कंधे पर इनके भार को उठाने की जिम्मेदारी ले लिए, तो अब डर कैसा !’’
‘‘पापा ! अब हम मिलजुलकर एक अभियान चलायेंगे और बड़ों को भी अपने अभियान से जोड़ेंगे, तभी जल की बर्बादी को हम रोक पायेंगे।’’
‘‘शाबाश बेटे… शाबाश…!’’

नदी का ठहाका

‘‘हा… हा… हा… हा…’’
‘‘ये कौन हंस रहा है ?’’
‘‘मैं हूं नदी… तुम मानवों की बुद्धि पर हंसी आती है। तुमलोग अपने को बुद्धिमान समझते हो… धरा तो संभलती नहीं, ग्रह-नक्षत्र पर जाने की बात करते हो। अपने स्वार्थ के वशीभूत हो तुमलोग आज धरा के कण-कण का दोहन कर रहे हो, कल क्या होगा, इसकी कोई चिंता नहीं। तुम्हारे स्वार्थी स्वभाव के कारण तुम्हारी आने वाली पीढ़ी पहले जल जैसी प्राकृतिक संपदा के अभाव का कष्ट उठाएगी। जल का जिस तरह से तुमलोग दुरुपयोग कर रहे हो, कुछ समय बाद तो अनेक संपदाओं के साथ जल का विलुप्त होना निश्चित है। …प्रकृति ने तुम्हें जल और खनिज जैसे अनेक अमूल्य धरोहर दिए। सौम्यता से इसको खर्च करना तो तुमने सीखा नहीं। इसकी कोई कीमत नहीं, ऐसा सोचकर उनका दोहन करने लगे। जब यह समझ में आया कि ये सीमित हैं, तो इनके इर्द-गिर्द काल्पनिक कहानियां गढ़ लिया और बता दिया कि शास्त्र में वर्णित है कि एकदिन गंगा जैसी नदी भी धरती से रुठकर विलुप्त हो जाएगी। …ये बिल्कुल सच है कि शास्त्र में ऐसा वर्णन है, पर वो तुम्हारे आचरण का वर्णन है। वेद पुराण लिखने वालों को पता था कि तुम नादानों का ऐसा ही कलुषित आचरण होगा, जिससे धरा जलविहीन हो जाएगी। …खनिज निकालने के चक्कर में धरती को अंदर से खोखला कर दोगे, धरती का टाइटैनिक प्लेट जगह से खिसक सकता है, भूचाल आ सकता है, इन सब के कारण नदियों की दिशा भी बदल सकती है और उनका जल सूख भी सकता है। पर तुम्हें क्या, तुम तो ’स्वांतः सुखाय’ के तहत जो मिलता है, उसका भक्षण कर लेते हो। …तुम्हारे इस व्यवहार से पहले दुःख होता था, पर अब हंसी आती है। कितनी सरलता से तुमलोग अपनी गलती को दूसरों के सर मढ़ देते हो। करते रहो गलतियां, मैं तो इस लोक को छोड़कर चल दूंगी, फिर रहना जलविहीन तड़प-तड़प कर…।’’
‘‘नहीं… हे नदी ! हमें संभलने का मौका दो।’’ ऐसा कहते धर्म गुरु चल पड़े लोगों के समक्ष सारे कर्मकांड को छोड़ नदी जल संरक्षण का वादा कर। पर नादानों ने उन्हें पाखंडी साबित कर उनके ही खिलाफ षड्यंत्र रच डाला है।
‘‘हे नदानों, अब भी जागो…’’ नदी के स्वर धीमे हो गए। कल-कल, छल-छल कर बहने वाली नदी की धारा पतली होकर नाली सदृश्य हो गई। सारे मनुष्य सो रहे हैं और धरती मां अपने अश्रु से उसकी धार को तीव्र करने का अथक प्रयास कर रही है।
नेपथ्य से जागो… जागो… की धुन आ रही है। पर जाग कौन रहा है, पूरा जहां तो रात क्या दिन में भी सो रहा है।

पता : 305, इंद्रलोक अपार्टमेंट, न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी, पटना-800013 बिहार

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