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साधना सिंह स्वप्निल

नये पल्लव 11 अंक से

नवरात्र का समय था और दीक्षा अपने काम में ऐसे व्यस्त थी जैसे लग रहा हो मानो आज माता रानी उसके ही घर आने वाली है। एयर फोन कान में लगाए वह गाना सुनते-सुनते काम में लगी थी, तभी उसके ससुर उसे आवाज देते हैं, ‘‘दीक्षा… दीक्षा कहां हो…?’’ दीक्षा को ऐसा लगा, मानो पापा बुला रहे हों। वह पापा की आवाज सुनने की कोशिश करती है, तभी दोबारा आवाज आती है दीक्षा को, पापा की आवाज पर दीक्षा दौड़ते हुए ‘जी पापा जी’ … पापा उसकी तरफ देखते हैं। पापा ने थोड़ा डांटते हुए उससे बात की – ‘‘पंडित जी के आने का समय हो गया है और तू गाना सुन रही है।’’ दीक्षा ने पापा को बड़े ही सरल स्वभाव में जवाब दिया, ‘‘पापा, मैंने अपना सारा काम कर लिया है, पूजा की सारी तैयारी हो गई, अब मैं पूजा करने जा रही हूं।“ पापा थोड़ा सा मुस्कुराये और आगे बढ़ गए। दीक्षा के कान में लगे मोबाइल में नोटिफिकेशन की एक आवाज आती हैं … वह देखने के लिए तुरंत मोबाइल अपनी जेब से निकाली और मोबाइल चेक करने लगी … उसके मोबाइल पर किसी अमित नाम के आदमी का मैसेज था।
‘‘हैलो मैम … कैसी हैं ?’’
दीक्षा – ‘‘हॉय…’’
अमित – ‘‘कैसी हैं ?’’
दीक्षा – ‘‘ठीक हूं।’’
अमित – ‘‘क्या आप मुझे जानती हैं ?’’
दीक्षा – ‘‘नहीं …’’
दीक्षा ने लिख कर भेजा और उसके बाद वह अपने काम में जुट गई, उसने मोबाइल ऑफ कर दिया। तभी पंडित जी आ गए और फिर दीक्षा पूजा करने लगी। सब ने पूजा-अर्चना की, उसके बाद पंडित जी चले गए। पंडित जी के जाने के बाद दीक्षा ने प्रसाद सबको बांटा, सब अपने-अपने कमरे में बैठकर प्रसाद खाने लगे। दीक्षा भी आकर आराम से बैठ गई, क्योंकि सुबह से भाग-दौड़ में उसे टाइम ही नहीं मिला था, अब वह थोड़ी देर बैठ कर अपना मोबाइल देखने लगी। उसने अपना मोबाइल ऑन किया, उसके मोबाइल पर फिर मैसेज आता है।
अमित – ‘‘मैम, आप कहां से हैं ? क्या आप मुझे जानती हैं ?’’
दीक्षा – ‘‘नहीं, मैं अनजान लोगों से बात नहीं करती।’’
अमित – ‘‘मैम, आप क्या करते हो ? आपके पति क्या करते हैं ? आप मैरिड हो ?’’
दीक्षा गुस्से से तिलमिला जाती हैं।
दीक्षा – ‘‘मैं फेसबुक पर अपना इंटरव्यू देने नहीं आती।’’
दीक्षा के लहजे में थोड़ा रोष था। दीक्षा ने अपना मोबाइल ऑफ कर दिया और घर के लोगों के लिए खाना बनाने जुट गई। वह सबको खाना खिलाने लगी। उसने अपने बच्चों और पापा को खाना खिलाया। पति सुदेश को भी खाना देकर पूछी, ‘‘कुछ और लेंगे ?’’ सुदेश ने कहा, ‘‘नहीं …।’’
सुदेश और दीक्षा के बीच तो नपी-तुली ही बात होती थी। दीक्षा सोचने लगी, क्या मैं सिर्फ काम करने के लिए बनी हूं। सुबह से शाम तक मैं एक पैर पर खड़ी रहती हूं। वह सोचने लगी, क्या सबके साथ ऐसा होता है, शादी से पहले क्या सोचती थी … उसका पति होगा, उससे प्यार भरी बातें करेगा और वे बाहर लॉग ड्राइव पर जाएंगे। और अच्छे-अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाएंगे, लेकिन यह क्या… उसके पति उससे सीधे मुंह बात ही नहीं करते ! जहां दीक्षा अपनी फ्रेंड सर्किल में घिरी रहती थी… आए दिन उसे प्रपोजल मिलते थे, उसका पति उसे कभी ध्यान ही नहीं देता…।
शाम की चाय का समय हो गया और उसका ध्यान टूटा… चाय बनाई और पापा को दी, खुद भी लेकर बैठ गई … सुदेश कहीं बाहर निकला हुआ था। बच्चे अपनी बुआ के घर गए हुए थे। चाय पीकर उठी और शाम की आरती की तैयारी करने लगी। उसने माता रानी के सामने दीपक जलाया और माता रानी से अपने वैवाहिक जीवन के लिए और बच्चों के लिए प्रार्थना करने लगी।
तभी कॉल बेल बजा… दीक्षा जाकर दरवाजा खोलती है, दरवाजे पर पति व बच्चे होते हैं। बच्चे शोर मचाते हुए पूछते हैं – ‘‘मां, आज क्या बना है ?’’ दीक्षा प्यार से पूछती है, ‘‘बताओ क्या बनाऊं।’’ सुदेश भी पीछे से बोलता है, ‘‘कुछ अच्छा बना लो, बच्चे पूड़ी सब्जी की फरमाइश करते हैं। थोड़ी सी खीर भी बना लेना।’’ दीक्षा गर्दन हिला देती है और किचन में खाना बनाने लग जाती है। तभी उसके मोबाइल में फिर नोटिफिकेशंस आने शुरू हो जाते हैं, दीक्षा मोबाइल निकाल कर देखती है, फिर उसी का मैसेज होता है। मोबाइल बंद करके रख देती है। सब को खाना खिलाने के बाद वो रात में जब बिस्तर पर जाती है, सुदेश सो चुका होता है। सुदेश ने कभी दीक्षा को मोबाइल चलाने के लिए मना नहीं किया।
दीक्षा अपना मोबाइल निकाल कर मैसेज पढ़ने लगती है। अमित लिखता है कि आप जब बात करेंगी तभी तो जान-पहचान होगी। वह अपना पूरा इंट्रोडक्शन देता है। अब वह नॉर्मल बातें करने लगता है। दीक्षा भी उससे ऑनलाइन बातें करने लगती है। धीरे-धीरे समय बीतता है। अब दीक्षा और अमित एक अच्छे दोस्त बन गए थे। दीक्षा को अब अमित से बात करना बहुत अच्छा लगता था। अब उसे अमित के मैसेज का इंतजार रहता था। धीरे-धीरे दोनों ने मिलने का प्लान बनाया। दीक्षा उसको मना करती है, यह गलत है, पर वह दीक्षा को मना लेता है। दीक्षा उससे मिलने को तैयार हो जाती है।
वह उससे एक पब्लिक प्लेस पर मिलती है। दोनों ही एक दूसरे को बहुत पसंद करते हैं। एक दूसरे की तारीफ करते हैं और घंटों बातें होती हैं। इसके बाद दीक्षा अपने घर आ जाती है। घर आते हुए रास्ते में दीक्षा सोचने लगती है, क्या जो उसने किया वह सही था। वह मन ही मन अपने आप को दोषी करार दे रही थी, कहीं ना कहीं वह सुदेश से विश्वासघात कर रही थी, पर वह अमित की तरफ एक चुंबक की तरह खींची जा रही थी, जैसे अमित ने उस पर कोई जादू कर दिया हो। ऐसा क्या था अमित में, जो वह अमित की तरफ खींची जा रही थी, वह उससे प्यार भरी बातें ही तो करता था। फिर भी कुछ अंजाना सा उसे खींच रहा था, जो उसे सुदेश से नहीं मिलता था… अपनापन और प्यार।
सुदेश अपने काम में व्यस्त रहता था। दीक्षा के लिए उसके पास तो समय ही नहीं था। कभी फोन पर बात भी करता, तो काम की बात करके तुरंत फोन रख देता। उसमें प्यार जैसा कुछ भी नहीं था, ऐसा लगता कि वह प्यार के लिए बना ही नहीं है, सुदेश कभी प्यार भरा मैसेज भी नहीं करता था। जब दीक्षा कभी उससे कोई बात करती, तो सुदेश झल्ला जाता, ‘क्या है ? मैं सुबह से थका-हारा घर आया हूं और तुम शुरू हो जाती हो !’ फ़िर क्या था, दोनों में बहुत लड़ाई होती, दोनों इधर-उधर मुंह करके सो जाते। दीक्षा रात भर अपने आंसुओं से तकिए को भिगोया करती। दीक्षा का ध्यान टूटा, वह घर पहुंच गई थी।
दूसरे दिन सुबह उठकर फिर काम में जुटी थी। पर अब वह अमित से मिलने के बाद से बहुत खुश रहा करती, उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, सारा दिन अमित के प्यार भरे मैसेज आते थे। उसका बदला स्वभाव देखकर सुदेश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर वह भी खुश था कि अब लड़ाई नहीं होती। दीक्षा अब रोमांटिक गाने सुनने लगी थी, अब उसे किसी चीज में कोई बुराई नजर नहीं आती। दीक्षा का जीवन ही जैसे बदल गया हो। इतने सालों में पहली बार वह अपनी जिंदगी को खुल कर जी रही थी।
एक दिन अचानक सुदेश को दीक्षा का मोबाइल मिल जाता है। उस पर अमित के मैसेज होते हैं। दीक्षा बाथरूम में नहा रही होती है। सुदेश वो सारे मैसेज खोल कर पढ़ने लगता है। उस मैसेज में दीक्षा ने सुदेश के बारे में भी बहुत कुछ लिखा था। सुदेश मोबाइल को चुपचाप रख देता है। दीक्षा जब बाथरूम से निकलती है, तो सुदेश उससे कुछ नहीं कहता और वह कमरे से चला जाता है। आज सुदेश का मन बहुत बेचैन था।
शाम को जब वह घर आता है, तो नॉर्मल रहता है। उसके अंदर का तूफान शांत हो चुका था। सुदेश को देखते ही दीक्षा चाय पीने को पूछती है, वह हामी भर देता है।
सुदेश को अपनी गलती का एहसास हो चुका था। वह सोच रहा था, कहीं ना कहीं इन सब का जिम्मेदार वह खुद था। अपने आप को बहुत व्यस्त कर लिया था काम में और वह दीक्षा को टाइम नहीं दे पा रहा था। आज उसने प्रण कर लिया था कि अब वह दीक्षा के साथ कोई अन्याय नहीं करेगा। आखिर वह भी इंसान है, सारे दिन में थोड़ा सा प्यार की हकदार तो है ही।
सुदेश ने अपने आप को बदल डाला, अब वह बाहर जाता तो दीक्षा को मैसेज करता। कभी-कभी एक छोटा सा मैसेज ‘आई लव यू’ या एक-दो लाइन शायरी की भी डाल देता। यह एक छोटी सी लाइन दीक्षा को रोमांचित कर जाती। कभी-कभी उसके लिए पिक्चर टिकट ले आता था, दोनों पिक्चर देखने जाते। दीक्षा को कभी-कभी पार्क में भी ले जाता।
दीक्षा को यह सब देख कर बड़ा आश्चर्य हो रहा था। सुदेश को क्या हो गया है, जो वह इतना बदल गया है। पर सुदेश तो अब वो पहले वाला सुदेश था ही नहीं। सुदेश अब दीक्षा की सुंदरता की तारीफ करता। अब दीक्षा भी घर में तैयार होकर रहने लगी थी। कभी-कभी वह बच्चों के सामने भी दीक्षा को गले लगा लिया करता। दीक्षा अब सुदेश की तरफ चुंबक की तरह खींचने लगी। शाम को ऑफिस से लौटने का इंतजार रहता था दीक्षा को…।
हृदय से जो दिया जा सकता है, वो हाथ से नहीं। मौन रहकर जो कहा जा सकता है, वो शब्दों से नहीं। … सुदेश ने बिना कुछ कहे वो सारी बातें अपने प्यार और मौन से ठीक कर ली थीं। आज अगर दीक्षा से वह कुछ बात करता, तो बात लड़ाई तक नहीं जाती। सुदेश ने बड़ी समझदारी का परिचय दिया। गलती सिर्फ दीक्षा की नहीं, उसकी भी थी। जब उसे प्यार और अपनापन घर में नहीं मिला, तो वह बाहर ढूंढने लगी। अमित के अपनेपन ने उसको अपनी तरफ खींच लिया। सुदेश ने अपना परिवार ही नहीं, समाज में भी अपनी इज्जत बचा ली। दीक्षा को अब इतना टाइम ही नहीं मिलता था कि वह मोबाइल पर लगी रहे। उसने धीरे-धीरे अमित को अपने जीवन से दूर कर उसे फेसबुक पर ब्लॉक कर दिया।
आज दीक्षा अपनी जिंदगी में बहुत खुश है। अब उसके बच्चे बड़े हो गए हैं। सुदेश भी अब रिटायर हो गया है।

पता : जी3/50, रेल विहार कॉलोनी, चरगवां, गोरखपुर – 273013

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