आखरी खत
शुभी मिश्रा
सुन मां, जा रहा हूं शरहद पर…
धरती मां का बुलावा आ गया
तेरा मुस्कुराता चेहरा याद करके
देख आज फिर जोश आ गया…
मां, बहुत याद आती है तेरी
आंखें नम हो जाती हैं मेरी
तेरी गोद का वो सुकून
तेरा मुझे दुलार करना
हल्की सी चोट पर सीने से लगाना
मां, आज तू बहुत याद आ रही है …
मां, याद है मुझे …
बाबूजी के डाट से तेरा बचाना
रोता देख मुझे तेरा यूं हंसाना
मेरे साथ तेरा खेलना
खुद हारकर मुझे जीताना
रूठ जाने पर तेरा वो
गुदगुदी कर मना लेना
सुन मां, मैं जंग में जा रहा हूं
आपनी मां की रक्षा करने …
मां, याद है मुझे
मेरी छुट्टी की खबर सुन खुश होना
मेरी पसंद का खाना बनाकर खिलाना
काम जल्दी खत्म कर मेरे पास बैठना
कभी मुझे यूं ही देख तेरा रो पड़ना
हर पल मेरी चिंता करना
हर दुआ में मेरी सलामती मांगना
वापस जाते समय तेरा राह निहारना
मेरे जल्दी आने की आस लगाना…
मां, तू बहुत प्यार करती है मुझसे
जानता हूं, पर शायद
मैं अपना फर्ज ना निभा पाऊं
मां, तू मुझे माफ कर देना
मेरी नादानियों को हंसकर याद कर लेना
मां, जब तेरे सामने आऊं
मेरे सर पर हाथ फेर देना
एकबार फिर मुझे सीने से लगा लेना…
सुन मां, अब जाता हूं मैं
धरती मां की रक्षा करनी है मुझे
आज फिर जंग लड़ना है मुझे
दुश्मनों के कदम को मिटाना है मुझे
सुन मां, अब जाना है मुझे…
मां, शायद ये मेरा आखरी खत हो !
क्या पता मेरा आखरी सलाम हो !
सुन मां, तू अपना ख्याल रखना
अपने इस बेटे को याद रखना
लौटूंगा जरूर मां वापस मैं
चाहे तिरंगा साथ लाऊं या
तिरंगे में लिपट कर आऊं
पर आऊंगा जरूर मैं…
मां, इस खत को संभाल कर रखना
क्या पता ये मेरा आखरी पैगाम हो !