असंयम का फल
महिमा पटावरी जैन
कहते हैं तृष्णा, इच्छा, लालसा, असंयमिता कभी नहीं मरती, विशेषतः उम्र के उस पड़ाव में जब हम अपनी आधी जिंदगी जी चुके होते हैं। हालांकि तृष्णा की कोई उम्र नहीं होती। वह कभी पीछा नहीं छोड़ती, यही बात हुई – सदरगंज में रहने वाले रामलाल के साथ।
एक दिन रामलाल अचानक बीमार हो गया। बहुत इलाज कराया, पर ठीक नहीं हुआ। एक पुराने वैद्य ने रामलाल की नब्ज पकड़ ली और शर्तिया उसको ठीक करने के लिए कहा।
रामलाल ने कहा, ‘‘जी आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा करूँगा।’’
वैद्य की दवा से रामलाल ठीक हो गया। वैद्य का कार्य पूरा हो गया, तो उसने रामलाल से कहा, ‘‘तुम अब एकदम ठीक हो गए हो। आनंद से रहो पर पथ्य का पालन करना पडे़गा।’’
रामलाल ने पूछा, ‘‘कैसा पथ्य ?’’
वैद्य जी ने कहा, ‘‘अब तुमको जीवन भर आम नहीं खाना है।’’
रामलाल पर तो जैसे तुषारापात हो गया। वह आम का शौकीन था। उसने वैद्य जी को बोला, ‘‘ये पथ्य-वथ्य मुझसे नहीं होगा। बहुत कठिन है। मैं यह सब नहीं मानता।’’
वैद्य जी बोले, ‘‘शर्त यही थी कि मैं आपको ठीक कर दूँगा तो आपको मेरी बात माननी होगी। इसका पालन तो करना ही होगा। नहीं तो आपको कोई भी बचा नहीं सकेगा।’’
रामलाल हताश होकर पूछा, ‘‘मैं प्रतिदिन कितने आम खा सकता हूँ।’’
वैद्य जी बोले, ‘‘कितने नहीं, बिल्कुल भी नहीं खाना है।’’
रामलाल बोला, ‘‘आम का मौसम तो कुछ ही महीनों के लिए आता है। क्या एक-दो दिन भी नहीं खाना है ?’’
वैद्य जी बोले, ‘‘बिलकुल भी नहीं खाना है, अन्यथा उसी पल मृत्यु के लिए तैयार रहना होगा।’’
रामलाल विवश होकर सुनता रहा।
कुछ दिनों बाद वैशाख का महीना आया। आम की ऋतु … रामलाल को आम दिखे बाजार में। क्या भीनी-भीनी खुशबू …। रामलाल ने अपनी बेटी श्यामली से कहा, ‘‘ये वैद्य लोग ऐसे ही कह देते हैं। उनकी बातें मानने लगे, तो आदमी जी ही नहीं सकेगा। उनकी बातें तो बस सुनने की होती हैं। माननी उतनी ही चाहिए, जितनी उचित लगे।’’
श्यामली सोची, आज क्या हो गया पिताजी को… ये क्यों अपने जीवन के साथ खिलवाड़ कर तृष्णा में जा रहे है।
रामलाल बोला, ‘‘बेटी ! देखो बाजार में कितने रसीले आम !’’
श्यामली बोली, ‘‘पिताजी, जिस गली जाना नहीं, वहाँ का रस्ता क्यूँ देखना।’’
रामलाल बोला, ‘‘बेटी, यदि इन वैद्यांे के कहने अनुसार चलते रहें, तो जीना दूभर हो जाएगा। जीने का सारा रस निचुड़ जाएगा। यदि मनुष्य अपना मन चाहा न कर सके, तो जिए किसलिए ?’’
ये कहते हुए रामलाल ने झट से एक आम खा ही लिया। आम खाते ही बीमारी का दोष उभर आया और साँझ होते-होते रामलाल इस संसार से विदा हो गया। श्यामली तृष्णा के फल का अंत देखती रह गई। इस प्रकार असंयम का फल उसके जीवन का रस ले गया।