बाएं क्यों चलें ?
हरिशंकर परसाई
परिचय : हरिशंकर परसाई (22 अगस्त, 1924 – 10 अगस्त, 1995) हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। उनका जन्म जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ था। उन्होंने हिन्दी में एम.ए. किया। 18 वर्ष की उम्र में वन विभाग में नौकरी की षुरूआत की। इसके अलावा कई जगह नौकरी कर चुके हैं। 1947 में नौकरी छोड़कर स्वतंत्र लेखन की शुरूआत। वे हिन्दी के पहले रचनाकार हैं, जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया। व्यंग्य के अलावा वे कहानी, उपन्यास, संस्मरण, लेख भी लिखते रहे हैं। विकलांग श्रद्धा का दौर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
साधो हमारे देश का आदमी नियम मान ही नहीं सकता। वह मुक्त आत्मा है। वह सड़क के बीच चलकर प्राण दे देगा, पर बाएं नहीं चलेगा। मरकर स्वर्ग पहुंचेगा, तो वहां भी सड़क के नियम नहीं मानेगा। फरिश्ते कहेंगे कि बाएं चलो। तो वह दाहिने चलेगा।
साधो, आत्मा अमर है। सड़क पर दुर्घटना में सिर्फ देह मरती है, आत्मा थोड़े ही मरती है। इस तुच्छ देह के लिए ज्ञानी इतना अनुशासन क्यों सीखे कि सड़क के बाए बाजू चले।
साधो, मैं तो पुलिस का भक्त हूं, सो फौरन बाएं बाजू हो जाता हूं। मैं कायर हूं। मगर उन्हें नमन करता हूं, जो सड़क के कोई नियम नहीं मानते।