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सिंड्रेला

कहानी

हर लड़की को अपने राजकुमार का इंतजार होता है, जो घोड़ी में आकर उसे ले जाये। लगभग सभी लड़कियां यही सपने देखकर बड़ी होती हैं। सिंड्रेला भी ऐसी ही लड़की थी, जो बचपन से अपने राजकुमार का इंतजार करती आ रही थी। सिंड्रेला के हालात बहुत खराब एवं मजबूरी भरी थे, तब भी उसने यह सपना देखना नहीं छोड़ा था। सिंड्रेला के जीवन में एक परी आती है, जो उसके जीवन को बदल देती है, उसे उसके राजकुमार से मिलाती है। चलिए, आज आपको परियों की दुनिया में लेकर चलते हैं और सिंड्रेला और उसके राजकुमार से मिलाते हैं।

प्राचीन समय की बात है। कहीं दूर देश में सिंड्रेला नाम की एक सुंदर लड़की रहती थी। खुबसूरत होने के साथ-साथ सिंड्रेला बहुत समझदार और दयालु भी थी।
सिंड्रेला की मां का बचपन में ही देहांत हो गया था। मां के देहांत के बाद सिंड्रेला के पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। अब वह अपने पिता, सौतेली मां और दो सौतेली बहनों के साथ ही रहा करती थी।
सौतेली मां और बहनें सिंड्रेला को बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थीं। उसकी खुबसूरती और समझदारी से वे तीनों हमेशा जलती रहती थीं, क्योंकि उसकी दोनों सौतेली बहनें न तो खुबसूरत थीं और न ही समझदार।
एकदिन की बात है। सिंड्रेला के पिता को किसी काम के लिए बाहर जाना पड़ा। सिंड्रेला के पिता के बाद सौतेली मां ने सिंड्रेला के साथ बुरा बर्ताव करना शुरू कर दिया।
सबसे पहले तो उसने सिंड्रेला की खूबसूरत वस्त्र को उतरवा लिया और उसे नौकरानियों वाले कपड़े पहनवा दिए। इसके बाद उन तीनों ने सिंड्रेला के साथ नौकरानी जैसा व्यवहार करना शुरू कर दिया।
वो उससे खाना बनवाती, घर की सफाई करवाती, कपड़े और बर्तन धुलवाती और घर के बाकी सारे काम करवाती। यहां तक कि उन तीनों ने सिंड्रेला का कमरा भी उससे छीन लिया और उसे स्टोर रूम में रहने के लिए मजबूर कर दिया।
बेचारी सिंड्रेला के पास उनकी बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था। आसपास के पेड़ों पर रहने वाले पक्षी और स्टोर रूम के चूहों के अलावा सिंड्रेला का और कोई दोस्त नहीं था। वह दिनभर काम करती और रात में अपने दोस्तों से बात करते-करते सो जाया करती थी।
जिस देश में सिंड्रेला रहती थी, एकदिन वहां के राजा के सिपाहियों ने बाजार में घोषणा करवाया कि राजकुमार की शादी के लिए राजा ने महल में एक समारोह का आयोजन करवाया है। इस समारोह के लिए उन्होंने नगर की विवाह योग्य सभी लड़कियों को आमंत्रित किया है। सिंड्रेला की बहनों ने जैसे ही यह घोषणा सुनी, वे दोनों दौड़ती हुई अपनी मां के पास पहुंचकर उन्हें सारी बात बताई।
उनकी मां ने कहा कि इस समारोह में सबसे सुंदर तुम दोनों ही लगोगी। राजकुमार का विवाह तुम दोनों में से किसी एक के अलावा किसी और के साथ नहीं होगा।
इस बात को सिंड्रेला ने भी सुना और उसके मन में भी समारोह में जाने की इच्छा हुई, मगर इस बारे में अपनी सौतेली मां से बात करने में उसे बहुत डर लग रहा था।
उसकी सौतेली मां और बहनें समारोह में जाने की तैयारी करने लगीं। उन्होंने नए कपड़े सिलवा लिए और नए जूते भी खरीद लिए। वो दोनों हर रोज इस बात का अभ्यास करती थीं कि जब वो राजकुमार से मिलेंगी तो क्या बात करेंगी और कैसे बात करेंगी ?
आखिरकार समारोह का दिन आ ही गया। दोनों बहने समारोह में जाने के लिए बहुत उत्साहित थीं। उन दोनों ने सुबह से ही समारोह में जाने की तैयारी शुरू कर दी थी।
सिंड्रेला ने भी अपनी दोनों बहनों की मदद की। अपनी बहनों को पूरी तरह तैयार करने के बाद, सिंड्रेला ने बहुत हिम्मत जुटाई और अपनी सौतेली मां से पूछा कि मां, अब मैं भी विवाह योग्य हो गई हूं। क्या मैं भी समारोह में जा सकती हूं ? यह सुनकर वे तीनों जोर-जोर से हंसने लगीं और कहा – राजकुमार को अपने लिए पत्नी चाहिए, नौकरानी नहीं। यह कहकर वो तीनों वहां से चली गईं।
उनके जाने के बाद सिंड्रेला बहुत उदास हो गई और रोने लगी। तभी उसके सामने एक तेज रोशनी आई, जिसमें से एक परी निकली। परी ने सिंड्रेला को अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘मेरी प्यारी सिंड्रेला, मैं जानती हूं कि तुम क्यों दुखी हो, मगर अब तुम्हारे मुस्कुराने का समय आ गया है। तुम भी उस समारोह का हिस्सा बन पाओगी। इसके लिए मुझे सिर्फ एक कद्दू और पांच चूहों की जरूरत है।’’ सिंड्रेला कुछ समझ नहीं पाई, फिर भी उसने बिल्कुल वैसा ही किया, जैसा परी ने कहा।
वह दौड़ती हुई रसोईघर में गई और एक बड़ा-सा कद्दू उठा लाई। उसके बाद वह स्टोर रूम में गई और अपने मित्र चूहों को ले आई।
सबकुछ मिल जाने के बाद परी ने अपनी जादुई छड़ी को घुमाया और कद्दू को एक बग्गी में बदल दिया। फिर वह चूहों की तरफ मुड़ी और उसने चार चूहों को खूबसूरत सफेद घोड़ों में बदल दिया और एक चूहे को बग्गी चालक बना दिया।
यह सब देखकर सिंड्रेला को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। इससे पहले कि वह कुछ पूछ पाती, परी ने अपनी छड़ी घुमाई और सिंड्रेला को एक खूबसूरत राजकुमारी की तरह सजा दिया।
उसके शरीर पर एक बहुत सुंदर गाउन और पैरों में चमचमाते जूते थे। वह समारोह में जाने के लिए पूरी तरह तैयार थी और इस खुशी से वह फूली नहीं समा रही थी।
परी ने सिंड्रेला से कहा, ‘‘अब तुम समारोह में जाने के लिए पूरी तरह तैयार हो, मगर ध्यान रखना, रात को 12 बजे से पहले तुम्हें घर पहुंचना होगा, क्योंकि 12 बजे के बाद जादू का असर खत्म हो जाएगा और तुम अपने असली रूप में आ जाओगी।’’
सिंड्रेला ने परी को धन्यवाद कहा और बग्गी में बैठकर महल की ओर निकल पड़ी। जैसे ही सिंड्रेला महल पहुंची, सबकी नजर उसपर आ टिकी।
उसकी सौतेली मां और बहनंे भी वहीं थीं। मगर वह इतनी खूबसूरत लग रही थी कि वे तीनों भी उसे पहचान नहीं पाई। तभी सिंड्रेला ने देखा कि राजकुमार सीढ़ियों से उतरते हुए नीचे आ रहे हैं।

सब लोग उनकी तरफ देखने लगे। जैसे ही राजकुमार की नजर सिंड्रेला पर पड़ी, वे उसे देखते ही रह गए। समारोह में सभी राजकुमारियों के पास न जाकर राजकुमार सीधे सिंड्रेला के पास आए और अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा कि राजकुमारी, क्या आप मेरे साथ नाचना पसंद करेंगी ?
सिंड्रेला ने शर्माते हुए अपना हाथ राजकुमार के हाथ में दे दिया और दोनों नाचने लगे। सिंड्रेला राजकुमार के साथ नाचते-नाचते इतना खो गई कि उसे समय का ध्यान ही नहीं रहा। …तभी अचानक उसकी नजर दीवार पर लगी घड़ी पर गई। 12 बजने ही वाले थे और सिंड्रेला को परी की बात याद आ गई। परी की चेतावनी याद आते ही वह घबरा गई और राजकुमार को वहीं छोड़कर भाग गई।
सिंड्रेला को इस तरह अचानक भागता देखकर राजकुमार भी उसके पीछे-पीछे दौड़े। जल्दीबाजी में दौड़ने की वजह से सिंड्रेला का एक जूता निकल गया और महल के बाग में ही छूट गया।
वह फटाफट अपनी बग्गी में बैठी और घर को लौट गई। जब उसे ढूंढ़ते हुए राजकुमार बाहर आए, तो उन्हें बगीचे में सिंड्रेला का जूता मिला। यह देखकर राजकुमार दुखी हो गए और सोचा कि वह सिंड्रेला को ढूंढ़कर ही रहेंगे।
अगले दिन राजकुमार ने अपने सिपाहियों को बुलाया और उन्हें जूता थमाते हुए कहा कि शहर के हर घर में जाओ और समारोह में आई हर लड़की को यह जूता पहनाकर देखो। जिसके भी पैर में यह जूता आ जाए, उसे यहां ले आओ। सिपाहियों ने बिल्कुल ऐसा ही किया। वे शहर के हर घर में गए और समारोह में आई हर लड़की को जूता पहनाकर देखा।
किसी को जूता छोटा पड़ रहा था, तो किसी को बड़ा। सारा शहर घूमने के बाद, आखिर में सिपाही सिंड्रेला के घर पहुंचे। जैसे ही सिंड्रेला ने सिपाहियों को देखा, तो वह समझ गई कि ये राजकुमार के कहने पर आए हैं और वह खुशी से दरवाजे की तरफ दौड़ी।
उसी समय उसकी सौतेली मां ने उसका रास्ता रोक लिया। सौतेली मां ने सिंड्रेला से पूछा, ‘‘तुम कहां चली ? सिपाही उस लड़की के लिए आए हैं, जो कल रात समारोह में थी। तुम तो कल गई ही नहीं थी, तो तुम्हें नीचे जाने की क्या जरुरत ?’’ ऐसा कह उसकी सौतेली मां ने सिंड्रेला को स्टोर रूम में ताला बंदकर चाबी अपनी जेब में रख ली।
जब सिपाही जूता लेकर घर में आए, तो उसकी दोनों बहनों ने उस जूते को पहनने की कोशिश की, मगर वो दोनों नाकाम रहीं। वहीं, निराश होकर सिंड्रेला रोने लगी। उसे रोता देख उसके चूहे मित्र को एक उपाय सूझा।
दरवाजे के नीचे से निकलकर वह दौड़ते हुए नीचे गया और चुपके से सौतेली मां की जेब से चाबी निकाल लाया और सिंड्रेला को दे दी। चाबी मिलते ही सिंड्रेला ने दरवाजा खोला और दौड़ती हुई नीचे गई।
सिपाही महल की ओर लौट ही रहे थे कि तभी उन्हें सिंड्रेला की आवाज आई, ‘‘‘मुझे भी जूता पहनकर देखना है।’’ यह सुनकर सौतेली मां और बहनें हंसने लगीं, परन्तु सिपाही ने सिंड्रेला को भी जूता पहनने का मौका दिया।
जैसे ही सिंड्रेला ने जूते को पैर में पहना, वह आसानी से उसके पैर में आ गया। यह देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गए, तब सिपाही ने सिंड्रेला से पूछा, ‘‘क्या यह जूता आपका ही है ?’’ इस पर सिंड्रेला ने हां में अपना सिर हिलाया।
सिपाही सिंड्रेला को बग्गी में बिठाकर महल ले गए, जहां उसे देखकर राजकुमार बहुत खुश हुए। उन्होंने सिंड्रेला के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे उसने प्रसन्नता से स्वीकार कर लिया। राजकुमार और सिंड्रेला की शादी हो गई और वो एक दूसरे के साथ खुशी-खुशी महल में रहने लगे।

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