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मेरा अंतर्मन बोल रहा है

कविता

हरि प्रकाश गुप्ता

मेरा अंतर्मन बोल रहा है
मुझे कोस रहा है
साधन न कोई सूझ रहा है
कैसे समझाऊं अंतर्मन को
न जाने क्यों डोल रहा है
मेरा अंतर्मन बोल रहा है
चाहत मेरी अच्छी है
अच्छा सभी कुछ सोच रहा पर
कैसे समझाऊं भटके हुए को
अंतर्मन से क्यों न कुछ सोच रहा हूं
सुन-सुन कर सबकी बातों को
क्यों भटक रहा किंतु
दिल की बातों को कैसे बताऊं
अंतर्मन को न जाने क्यों अटक रहा हूं
आगे आते-आते क्यों पीछे हो जाते हैं
साथ नहीं चलता कोई
आगे आने से कतराते हैं
बड़ी-बड़ी बातें करते पर
सच कहने से कतराते हैं
आतंकी और देशद्रोहियों की कमी नहीं
फिर हम अनजान क्यों रह जाते
सामने लाइन में खड़े हुए हैं
फिर पहचान नहीं कर पाते
राष्ट्र प्रेम की अलख जगाने से
क्यों पीछे रह जाते हैं
तुम भी आगे-आगे और
हम भी आगे-आगे आएं
समस्या मिलकर सभी मिटाते हैं
सोच-सोच कर सारी समस्याओं का
हल क्यों हमारा मन न कुछ सोच रहा है
मेरा अंतर्मन बोल रहा है
मुझे कोस रहा है
साधन न कोई सूझ रहा है
बहुत खो दिया और नहीं अब खोना
उठो सभी, जागो सोने वालों
और अब नहीं सोना है
अंधकार को दूर भगाकर
फिर नया उजाला लाना है
राष्ट्र प्रेम की अलख हर दिल में
जगाना है
मेरा अंतर्मन बोल रहा है
मुझे कोस रहा है
समय निकल न जाए हाथों से
समय की पहचान करें
अब मुंह से न बात करें
आगे आकर कुछ काम करें
तिरंगा तुम्हें पुकार रहा
तिरंगे का मान बढ़ाना है
देश के दुश्मनों को तिरंगे का
जलवा दिखाना है
मेरा अंतर्मन बोल रहा है।

क्षणिकाएं

दुख-सुख की क्या बात कहूं
दुख से अपना अच्छा साथ है।
दुखों की चिंता किसको करना जब
सिर पर साईं का हाथ है।।

खुद को बदल लीजिए
दुनिया को न बदल पाओगे।
उदासी दूर तो होगी
मुस्कान चेहरे पर अवश्य लाओगे।।

जहां चाह है, वहां राह है,
खुश रहने का एक ही उपाय है।
खुद में खुशी ढूंढ़ो यहां,
कहां किसी को किसी की परवाह है।।

पता : स्मृति नगर, भिलाई, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़़ पिनकोड-490020

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