मैं तुमसे प्रेम बेशुमार करती हूं
RESULT : कविता प्रतियोगिता 2020
प्रथम
मैं तुमसे प्रेम बेशुमार करती हूं,
पर तुम्हें अपनी देह नहीं सौंपूंगी।
तुम्हारे अश्कों को अपनी आंखों में समा लूंगी,
जो गिरने लगोगे कभी, तुम्हें थाम कर संभालूंगी।
नाजायज कोई मांग नहीं तुम पर मैं थोपूंगी,
मैं तुमसे प्रेम बेशुमार करती हूं,
पर तुम्हें अपनी देह नहीं सौपूंगी।
तुम वो हो जो रूह में शामिल है मेरी,
तुम वो हो जो हसरत-ए-हासिल है मेरी।
तुम वो जमीन हो ख्वाब की,
जहां मैं अपनी हकीकत रोपूंगी।
मैं तुमसे प्रेम बेशुमार करती हूं,
पर तुम्हें अपनी देह नहीं सौपूंगी।
तुम्हारा प्रेम सांसे हैं मेरी तो,
मां-बाबा का प्रेम मेरे रक्त का प्रवाह है।
तुम्हें चिंता रहती है मेरी हर वक्त,
तो उन्हें भी मेरी पल-पल परवाह है।
एक प्रेम में दूसरे प्रेम की गरिमा नहीं मैं रौंदूंगी।
मैं तुमसे प्रेम बेशुमार करती हूं,
पर तुम्हें अपनी देह नहीं सौंपूंगी।
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