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मॉरिशस का नजारा

प्रोफेसर डॉ. सुधा सिन्हा


हसीन वादियों का सुन्दर नजारा,
भूल कैसे सकती समुन्दर प्यारा।
सबकुछ आंखों में ठहर सा गया है,
वहीं काश बस जाता नगर हमारा।
बादल गरजते हैं, पक्षी की चहचह,
लहरों पे जाके दिल मचले है रह रह।
कहीं है सन्नाटा, वीरानी पसरी सी,
कोई नहीं दिखता, बस बगिया हरी सी।
बिहारी ने क्या नहीं किया नगर में,
मॉरिशस बसाया, इसे लाया नजर में।
अप्रवासी घाट में यादें दबी हैं,
बिहारी के पल्लू में सबकुछ सिमटी हैं।
हमारे पूर्वज थे, जाने तुम बंदर,
बिहारी मॉरिशस के मस्त कलंदर।
महात्मा गांधी विश्वविद्यालय बसा है,
भारत के तर्ज पे सबकुछ सजा है।
भोजपुरी, फ्रेंच वहां की है भाषा,
भारतीय संस्कृति वहां की लबादा।
बम बम भोले की वे पूजा हैं करते,
मंदिर में जाके शिवरात्रि मनाते।
पलकें भी झपकना भूल गयी थीं,
सुन्दर नजारों में झूल गयी थीं।

ग़ज़ल

तुम से मिलना हमारा नहीं हो सका
ख्वाब में ही कभी मिलने आया करो


ना मुझे तुम कभी भी सताया करो
हर घड़ी ना मुझे आजमाया करो

दोस्ती तो रही गुलफिशानी बहुत
चाहते हो अगर तुम जताया करो

इश्क करना सदा बन कभी जीस्त ही
पानी सर से नहीं तुम गिराया करो

मैं बहुत ही परेशान अशफाक बन
जल रही हूं नमक न लगाया करो

दिल हमारा सदा मुफलिसी में रहा
बोझ इसपे चढ़ा तुम हटाया करो

कह रही है ‘सुधा’ जुस्तजू है तिरी
हर घड़ी दाग तुम ना दिखाया करो।

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