पहचान
गीता गुप्ता ‘मन’

‘‘अरे मोनिका ! क्या कर रही हो ?’’ चित्र बनाने में व्यस्त मोनिका को टोकते हुए रीता बुआ ने पूछा।
‘‘कुछ नहीं बुआ… स्कूल प्रोजेक्ट के लिए महापुरुषों के चित्र बनाने हैं, बस वही बना रही हूं।’’ परेशान होते हुए मोनिका बोली।
‘‘अरे, इसमें क्या समस्या है… लाओ कागज और पेंसिल।’’ मोनिका की पीठ पर थपकी देकर बुआ ने कहा।
कुछ ही समय में रीता ने बहुत ही आकर्षक चित्र बना दिए, इतने सजीव लग रहे थे कि अभी बोल उठेंगे।
मोनिका ने जब देखा, तो आंखें फटी की फटी रह गयी। इतनी आकर्षक चित्रकला !
विद्यालय में भी मोनिका के चित्रों को बहुत सराहना मिली। पूछने पर उसने सबको बता दिया कि चित्र उसकी बुआ ने बनाये है।
एक दिन मोनिका के प्रधानाध्यापक जी उसके साथ घर आये और उसकी बुआ से मिले। प्रधानाध्यापक ने कहा, ‘‘रीता जी, आपके द्वारा बनाये गए चित्र बेहद आकर्षक थे, वो चित्र मुख्य अतिथि जी अपने साथ ले गए।’’
‘‘ये तो मेरे लिए सौभाग्य की बात है, महोदय।’’ रीता बुआ ने कहा।
प्रधानाध्यापक जी फिर बोले, ‘‘हम सब चाहते हैं, आप अपने इस गुण को अपनी पहचान बनायें।’’
‘‘कैसे महोदय ? मैंने तो पढ़ाई भी नहीं की है, गांव में काॅलेज नहीं था, इसलिए आठवीं तक ही पढ़ सकी।’’ रीता बुआ भावुक होकर बोली।
‘‘यदि आप करना चाहें, तो मेरे स्कूल में कला शिक्षक का पद रिक्त है, मैं आपकी नियुक्ति कर सकता हूं।’’ प्रधानाध्यापक महोदय जी ने प्रस्ताव रखा।
‘‘ये तो मेरे लिए अत्यन्त खुशी की बात है। मैं आपके विद्यालय में कला शिक्षिका के रूप में कार्य करने को तैयार हूं।’’ रीता बुआ खुशी से झूमते हुए बोली।
‘‘फिर इसी बात पर सबका मुंह मीठा कराओ, मोनिका।
आज मुझे कला शिक्षिका मिल गयी, जिसकी विद्यालय को बहुत आवश्यकता थी।’’ प्रधानाध्यापक महोदय ने मोनिका से कहा।
‘‘…और मुझे मेरे हुनर से एक नयी पहचान मिल गयी।’’ रीता बुआ ने कहा।
साथ में बैठे सभी लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी।