जरा बताना तो अम्मा
जब दरवाजे बहू तुम्हारी
डोली चढ़कर आयी थी
मेरे लाख समझाने पर भी
तुम खुश हो आंसू बहायी थी
लोगों से कहती फिरती थी
बहू हमारी लक्ष्मी है
दो ही साल में क्या हुआ जो
तुम कहती कुलक्षणी है
सुबह-शाम दो रोटी खाकर
घर-आंगन में जुतती है
फिर भी बोलो क्यों अम्मा
तुम्हारे हाथों वह कुटती है
क्या हुआ जिस बेटी को तुम
मेंहदी खूब रचायी थी
अपने ही दामाद को तुम
खुद सीने से लगायी थी
चंद दिनों में क्या हुआ जो
बेटी को बहला लिया
अपने ही दरवाजे से देखो
दामाद को टहला दिया
रिश्ते नाते छूट रहे क्यों
वीरान संसार बसाया है
हंसता खेलता घर को तुमने
मरघट सा सजाया है
मेरी दादी देखो कितना
तुम्हें आंखों में बसायी थी
उसके प्यार को पचा न पायी
तुम कितना घबरायी थी
मरते-मरते कुछ न कहा
आशीर्वाद तुम्हें दे गयी
एक तरफ तुम थी जो
उसके ‘गहने-गुड्डे’ ले गयी
ननद तुम्हारी आयी तो थी
चंद दिनों को मिलने को
जरा बताना तो अम्मा
क्यों कहा ओठ सिलने को
सीता की धरती पर अम्मा
यह कैसा अवतार है
तुम ही सोचो, फिर बोलो अम्मा
यह जीत है या हार है।
एकल काव्य संग्रह ‘तुम्हारी प्रतीक्षा में’ से