सबक
Dr. Amita Saxena

मैंने तुम्हारी हर गलतियों को
कबूल किया
तूमने क्यों मुझे हर बार
गुलाम होने का अहसास दिया
थे जब तक मेरे आँचल में
महफूज रहे थे हर बला से
फिर क्यों गोद छोड़ मेरी
मेरे दामन को राख किया
तुम्हारी मोहब्बत, तुम्हारी हसरत
हर बात में बसा एक लालच
तुम्हारी बातें, तुम्हारी ख्वाहिशें
सबने मुझे क्यों नाराज किया
हुकुम तुम्हारा, जीव तो मेरे थे
जिस पर ढाये वो जुल्म तुमने
मेरी कोख से ही तो जनमे थे
चांद को छू कर, गुरूर न कर
तू आज चारदीवारी में कैद
और परिंदे बेखौफ सड़कों पर हैं
तुझे बख्शी थी मैंने काबिलियत
क्यों अपने हुनर को बेकार किया।