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मेरी कलम

कविता

निमेष सिंह कंडारी

एक कलम ही है जिसे अपना कह सकता हूं
यह वह दोस्त है जिससे
सब कुछ साझा कर सकता हूं
यह मेरा दर्द तो कम नहीं करती
पर मेरे दर्द का मजाक भी नहीं उड़ाती
मेरी खुशी में हंसती नहीं है
पर कभी मुझे रुलाती भी नहीं
इसके जरिए सच को सच और
झूठ को झूठ लिख सकता हूं
बहुत बड़ी खूबी है इसके अंदर
यह कभी बुरा मानती नहीं
अपने सारे गुस्से को इसके जरिए
कागज पर उतार देता हूं
पर हां, ये पलट कर मुझको
जवाब कभी देती नहीं
यह मेरे साथ …
हर अहसास को महसूस करती है
कभी मेरी मुस्कान तो
कभी आंसुओं को बयां करती है
हर इंसान की दोस्ती का मतलब होता है
पर यह कलम अपने साथ के बदले
कभी कुछ मांगती नहीं
इसके और मेरे बीच की बातें
हमेशा राज रहती हैं
हमारे बीच हुई बातें
कभी किसी तीसरे तक पहुंचती नहीं
मेरे अच्छे और बुरे दोनों
वक्तों में मेरा साथ देती है
लोगों की तरह मतलब की यारी रखती नहीं
सौ बात की एक बात
हम दोनों के विचारों में कभी दर्द नहीं होता
हम दोनों की दोस्ती के बीच
कभी संघर्ष नहीं होता
ये कलम मुझे आईना दिखाती है
मेरी काबिलियत क्या है ?
मुझको बताती है
मुझसे कभी झूठ नहीं बोलती
कभी कुछ छुपाती नहीं
यह कलम है, सच बोलती है
फरेब इसे आता नहीं
दोस्तों की इस फरेबी भीड़ में
कलम जैसी बात किसी में नहीं
नाम के तो बहुत दोस्त हैं
पर कलम जैसी यारी कोई निभाता नहीं।

गांव बड़ा याद आता है

जब यहां आर्टिफिशियल गुलाब देखता हूं
तो तेरे जंगल का बुरांश याद आता है
डी.जे. की कर्कश आवाज सुनकर
मंडाणों का नाच याद आता है
यहां ऊंची-ऊंची इमारतें देखकर
वापस जाने को दिल सताता है
सच में यार, यहां शहर में रहकर
गांव बड़ा याद आता है।

जब भी फ्रिज का दरवाजा खोलता हूं
तो तेरी हवाओं का ठंडा झोंका याद आता है
यहां बोतल बंद पानी पीकर
ठंडी-ठंडी धारा याद आती है
इस जकड़न भरी जिंदगी में …
तुझ संग बिताया मदमस्त बचपन याद आता है
सच में यार, यहां शहर में रहकर
गांव बड़ा याद आता है।

इन शोर भरी सड़कों पर
शांत सा पहाड़ याद आता है
कभी-कभी अचानक से चोटी पर
बने मंदिर का नजारा याद आता है
जहां कभी मछली पकड़ने
तो कभी नहाने जाया करते थे
वो गदेरा याद आता है
सच में यार, यहां शहर में रहकर
गांव बड़ा याद आता है।

यहां सड़क का काला रंग देखकर
गांव का आंगन याद आता है
इधर रूखी-सूखी खाकर
बाल मिठाई और अरशे का स्वाद याद आता है
मुझको फूल देई, घी सक्रांत,
भैलो और इगास याद आता है
सच में यार, यहां शहर में रहकर
गांव बड़ा याद आता है।

तेरी खूबसूरती का नशा
मुझे लौटने को उकसाता है
वो मिट्टी का मकान
मेरे कानों में कुछ कह जाता है
तुझसे दूर होने का एहसास
हर बार आंखों में पानी भर लाता है
सच में यार, यहां शहर में रहकर
गांव बड़ा याद आता है।

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