राजीव मणि की कविताएं
तुम्हारी प्रतिक्षा में
तुम्हारा हर प्रेम पत्र
पत्रिका का एक संग्रहणीय अंक की तरह है
यह सोचकर
मैं इसे दिलरूपी डायरी में
नोट कर लेता था।
कभी मिलो, तो मैं तुम्हें बताऊं
कि इन प्रेम पत्रों का विशेषांक
कैसे मेरे दिल के छापेखाना से
छपकर तैयार रखा है
तुम्हारी प्रतिक्षा में
तुम्हारे ही हाथों विमोचन के लिए।
शून्य
जन्म से पहले
हम शून्य में थें
जन्म लिए, शून्य में आएं
लड़कपन गया, जवानी आई
पर शून्य नहीं गया
कुछ देखा, कुछ सुना
पर शून्य में ही रहकर
शून्य को समझ नहीं पाए
शून्य में ही पढ़ें, काम किये
कठिनाइयों का सामना किए
और कठिनाइयों से लड़ते
हम बूढ़े हो गए
शून्य में मरकर
हम शून्य को चले गए
हमारी यात्रा शून्य से चलकर
शून्य को समाप्त हो गई
यह कोई छोटा शून्य नहीं
यह है एक विशाल शून्य
और इस शून्य की आत्मा हैं
हमारे प्रभु, हमारे ईश्वर।।