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पहचान व अन्य कविताएं

हरि प्रकाश गुप्ता

पहचान
हमारी और तुम्हारी
इसकी और उसकी
सभी की बड़ी-बड़ी पहचान
एक से बढ़कर एक खाल
ओढ़े रहते दिखाने को अपनी शान।
अपना और सिर्फ अपना
इसके अलावा नहीं और कोई सपना
सबकुछ अच्छा हो जाए
पराया माल जमकर उड़ाएं
जतन हराम के लिए करें और
मेहनत से हमेशा भागे
किसी भी तरीके से बढ़ते जाएं आगे।
भागमभाग की दौड़ में
झूठी न बनाएं अपनी पहचान
नीचे धरती और ऊपर देख रहा भगवान
झूठ के सपने कभी
लंबे समय तक साथ नहीं देते
संभलना ही बेहतर होगा
मुसीबत में लोग दूर हो लेते
वरना ऐसी पहचान के चक्कर में
हम खुद गुमनाम हो जाएंगे
कुछ लोग याद भले ही कर लें पर
खुद की पहचान नहीं बन पाएंगे।

रुपैया जी
रुपैया जी जबतक साथ,
सभी के चेहरे पर मुस्कान।
सबसे बड़ा रुपैया,
सबकी इसी से पहचान।
जहां जाएं वहां पाएं
अपने से मिलने वाले।
पल भर के समय में
न जाने कितने काम बता डाले।
सभी की अलग-अलग आवश्यकता होती,
किसी की कम और किसी की ज्यादा होती।
जिसकी हो जाती पूरी चाहत,
मिल जाती उसको थोड़ी राहत।
फिर भी आशाएं उनकी नहीं होती कम,
कभी पूरी न कर पाएं हम।
जिनको आवश्यकता पड़ने पर दे दी उधारी,
कभी वापस नहीं करते हमारी।
फोन लगाया पर उसने ना कभी उठाया,
भले ही जरूरत उनसे अपनी हो।
उधारी गई और संबंध भी गए,
जिनको कभी न दी आवश्यकता पड़ने पर
वो तो जैसे भूल ही गए।
संबंधों का मेल-मिलाप
न जाने क्या-क्या रंग दिखाता है।
वाह रे कैसा रूप-रंग जो
रुपयों के खातिर अपना प्रभाव जमाया
हमने तो न जाने कितनी बार
कितनों को आजमाया।
आवश्यकता एक दूसरे से होती,
…तो बनी रहे बढ़िया पहचान।
सभी संबंध खट्टे हो जाते
जो थोड़ी भी हो गए बेईमान।
लालच और बेईमानी का जो
लग जाता ठप्पा मेरे आका,
फिर समझ लीजिए…
हर बना काम लटक जाता।

गांव की सैर
सुबह-सुबह जब आंख खुली,
कोयल की सुरीली आवाज सुनी।
चिड़ियों की चूं-चूं की साज,
जब आई हमको याद आज।
जब भी मैं गांव को जाता,
सुबह-सबेरे सैर को निकल जाता।
गांव का दृश्य देख आनंद बहुत आता।
नदी किनारे बसा गांव,
बहते पानी की आती आवाज।
संगीत निकलता पानी से जब
समझ न पाया अबतक राज।
प्रकृति हमें अचंभित करती अपने खूबसूरत खजाने से।
दिल खुश हो जाता उस
किसुन ग्वाले की बांसुरी बजाने से।
गायों और भैंसों को वह नदी किनारे ले जाता,
चलते-चलते उनके संग बांसुरी वो बजाता।
सुबह-सुबह की हवा से मन बहुत खुश रहता,
भले आज शहरों में रहें, पर दिल गांव चलने को कहता।
प्रदूषण का क्या काम वहां,
हरी-भरी होती हरियाली।
कितनी आकर्षित करती वह
भटे और जु़ंडी की रोटी वाली थाली।
सुबह-सुबह जब आंख खुली,
कोयल की सुरीली आवाज सुनी।
चिड़ियों की चूं-चूं की साज,
जब आई हमको याद आज।

जिंदगी तो जिंदगी
जिंदगी तो जिंदगी
ईश्वर का अनोखा उपहार है।
सब अपने साथ हों तो
इससे खूबसूरत नहीं कोई त्योहार है।
पर अलग-अलग विचार और
भावनाएं लोगों की रहती हैं।
समझ-समझ की बात,
अपना-अपना दिल, किससे क्या कहती हैं।
जीवन तन्हाई से भरा हुआ है,
नहीं कोई साथ आता है।
जो जहां से आया फिर वहां चला जाता है।
अहं भरा है सभी के जीवन में
नहीं कोई बच पाता है।
जिसने अहं को त्याग दिया,
जीवन सुखमय हो जाता है।
इसकी उसकी और …
किस किस की क्या बात करूं,
सभी के जीवन में कुछ न कुछ तो अंधेरा
यही सोचता रहता हूं और
मांगता प्रभु से, सभी के जीवन में हो उजियारा।
न मांगू अपने लिए, बिन मांगे वो दे देता है।
कुछ तो दोष है हम में, इसलिए परीक्षा वो लेता है।
प्रकृति से प्यार हो गया मुझको,
कुछ न कुछ वो देती रहती है।
कितना भी दर्द देते फिर भी कुछ न कहती है।
असहनीय दर्द जब उसे हो जाता है
भूचाल धरा पर आ जाता है।
न जाने कितने लोगों को सबक मिल जाता है।
अपने से प्यार कीजिए और
अगल-बगल का भी ध्यान रखना होगा।
बड़ी कठिन और सरल भी जीवन की राहें
सिर्फ इनपर चलना होगा।
यों तो दर्द भरा सभी का जीवन
पर दर्द स्वयं वो लेता।
कुछ तो कम हो जाता गर वो
मुस्कान के बदले मुस्कान देता।
राह किसे क्या चुनना है,
यह तो उसपर निर्भर होता है।
हर रात्रि के बाद ही खूबसूरत सबेरा होता है।
सलाह देना सरल काम है पर
चलना उसपर बहुत कठिन होता है।
जिसने चलना शुरू कर दिया,
हर काम आसान फिर होता है।
जिंदगी तो जिंदगी
ईश्वर का अनोखा उपहार है।
सब अपने साथ हों तो
इससे खूबसूरत नहीं कोई त्योहार है।

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