प्रेम गुनाह नहीं होता
फणीभूषण एन.के. ‘दीप्त’
प्रेम गुनाह नहीं होता
गुनाह होता है
प्रेम में छल
और प्रेम की नसों में … सिर्फ
वासना का बहना कल-कल
प्रेम का प्रवाह और
जीवन भर का निबाह
है प्रकृति का मीठा फल।
प्रेम गुनाह नहीं होता
गुनाह होता है
विवाह से पूर्व
वासना का दलदल
और अपने गुनाह के परिणाम को
गंगा में बहा देना
पेट में ही कटवा देना
कूड़ा-कचरा में गिरा देना।
बाप होना पाप नहीं है
पाप है अपने क्षणिक
आनंद के लिए बाप होना
अपने बच्चों को छोड़ देना निरानंद
रोटी के लिए भटकते-तड़पते
छटपटाते दर-दर
और तरक्की व विकास
के नाम पर लादना
ताबड़तोड़ कर।
आज गम्भीरता समझ आ रही
जब लाखों लाल बेहाल
कुलबुला कर लौटना चाहते घर
अपना घर बिहार, पर…
नेताओं को यहां कल-कारखाने
लगाने की जरूरत समझ नहीं आती
क्योंकि वे जीत जाते हैं चुनाव
जात-पात और अपराध को
बनाकर अपनी नाव।
याद रखना अपने पैरों का वह घाव
गलत पैदल चलना नहीं
गलत पैदल चलते मर जाना भी नहीं
गलत है इस भयावह स्थिति को भूल जाना
गलत है फिर जात के नाम पर
धर्म के नाम पर वोट देना
ताड़ी-दारू पर बेच देना
अपना हक, अपना मत।
मनुष्य सामाजिक कम
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है
तो असामाजिक कौन है ?
शेर, हाथी, गाय, बंदर
सांप, छुछुंदर, कौन ?
सभी तो समूह में
अपनों के साथ रहते हैं
एक साथ काम करते हैं
चलते हैं, शिकार करते हैं
तो मनुष्य ही सामाजिक प्राणी कैसे हुआ ?
मनुष्य के जीवन जीने का कुछ
नियम-कानून है, तो फिर
हत्या, लूट, बलात्कार
अन्य अपराध कैसे होते हैं ?
मनुष्य के दांत, आंखों की बनावट
पर गौर करें –
जैसे शेर की आंखें गोल तो मांसाहारी
गाय की आंखें लम्बी तो शाकाहारी
मनुष्य की आंखें भी लंबी
दांत पैनी नहीं
फिर गाय, भैंस, बकरी, पठरू
मुर्गा-मुर्गी, मछली, सुअर,
खाता है
सामाजिक कैसे है ?
उसे तो शाकाहारी होना चाहिए
इतना ही नहीं
चिड़ियों-पंछियों, पशु को कैद कर
उसे यातनाएं देता है
मनुष्य को एक ही पोस्चर में लगातार
एक दिन तक रखें
तो बाप-बाप चिल्लाएगा
पर, वह गाय को, भैंस को
जिसको माता कहता है
उसका दूध पीता है
एक जगह बांधकर रखता है
उसको ट्यूबरक्लोसिस, गठिया जैसी
कई बीमारियां हो जाती हैं
हर जीव में अपने जैसों के साथ
काम करने की प्रवृत्ति होती है
मनुष्य में भी है
मनुष्य सामाजिक कम
जंगली ज्यादा है
जंगली ज्यादा है
सामाजिक कम।