बच्चों के साथ-साथ बड़ों को सीख दे जाता है यह संग्रह
विजय लक्ष्मी वेदुला ‘चिरुगाली’
- पुस्तक : ‘आहना की उदारता’ और ‘वह लौट आई’ (बाल कहानी संग्रह)
- लेखक : रंदी सत्यनारायण राव
- प्रकाशक : नये पल्लव, पटना
हमने बचपन में कई तरह की बाल पत्रिकाओं का लुत्फ उठाया था। उनमें चंदामामा, पराग, नंदन, अकबर-बीरबल, तेनालीराम, कृष्णा, चंपक, बंगाल के गोपाल दास, मन को लुभाने के साथ-साथ जीवन के प्रत्येक पहलू में सीख भी दे जाते हैं।
इसी श्रृंखला में श्री रंदी सत्यनारायण राव जी की बाल कहानी संग्रह में ‘आहना की उदारता’ एवं ‘वह लौट आई’ में बच्चों के साथ-साथ बड़ों का मनोरंजन तो होता ही है, जीवन में कुछ सीखने को भी मिलता है।
प्रस्तुत दोनों पुस्तकों में कहानियों द्वारा क्या बच्चे, बड़े भी कुछ सीख पाते हैं। इन कहानियों द्वारा हमें सीख मिलती है कि हमारा व्यवहार सही हो, दीन-हीन के प्रति दया की भावना हो। स्त्री और पुरुष को समाज में मिलजुल कर काम करना चाहिए। सबके प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार हो। अनुशासन में रहकर कार्यों को पूरा करना चाहिए। प्रकृति हमारी शिक्षक है। ध्यान से सभी बातों को सुनें। अच्छी बातों को दिमाग में रखें और बुरी बातों को एक कान से सुनें और दूसरे कान से निकाल दें। आपसी द्वेष और बैर को भुलाकर प्रेम भाव बढ़ाएं। पर्व-त्योहार तो आपसी रंजिश मिटाकर लोगों में सद्भावना, सहृदयता, प्रेम आदि गुणों का विकास करता है। बुरे कामों का त्याग एवं अच्छे कार्यों की प्रशंसा आदि गुणों का विकास करता है। इतने सारे गुणों को इन बाल कहानियों द्वारा अपना सकते हैं।
लेखक महोदय ने जानवरों को किरदार बनाकर उनके द्वारा मानवीय मूल्यों को जागृत किया है। ‘वह लौट आई’ में प्रेम के बंधन का महत्व बताया गया है। वहीं ‘आहना की उदारता’ में आठ वर्षीया बालिका के मन में उदारता, त्याग की भावना का पन्ना, यह संस्कार घर से ही प्राप्त होता है। आहना ने समाज के सामने उदारता का परिचय दिया है।
स्त्री-पुरुष दोनों का ही घर-समाज में महत्वपूर्ण योगदान है। परिवार को आगे बढ़ाने में, इस सिद्धांत को प्रदिपादित करते हुए नारी के सम्मान का भी ख्याल रखा गया है। ‘नकल का धोखा’ में आज की शिक्षा व्यवस्था पर नकेल कसा गया है। बहुत ही न्यायोचित कहानी एवं भाव हैं। ‘श्रेया ने कसम खायी’ कहानी में आजकल के खाने-पीने की व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया है। कहानी ‘पेड़ की ममता’ में परोपकारी गुण को दर्शाया गया है। प्रकृति गुणों की खान है। प्रकृति से हमें सीखने को बहुत कुछ मिलता है। ‘आलोचक’ कहानी में आलोचना करें तो सटीक होनी चाहिए, समालोचना होनी है। ‘सच्चा सेवक’ कहानी में कथनी और करनी में फर्क बताया गया है। कथनी से करनी बेहतर है।
उपसंहार में इतना ही है कि इन दो किताबों के माध्यम से मानवीय मूल्यों की गरिमा को बताते हुए समाज की दिशा बदलने की चेष्टा की गयी है।
अंत में इनकी भाषा शैली सरल व सहज है। कहीं भी क्लिष्ट पदों का आभास नहीं है। एक धारा में बहते हुए इनके विचार लगातार बहती हुई निर्झरिणी के तुल्य है।
लेखक महोदय को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई। आने वाले समय में इनकी और पुस्तकें निकले और समाज लाभान्वित हो, ऐसी आशा है।