बाल मनोविज्ञान को समझने में सफल ‘संस्कारों की पाठशाला’
पुस्तक : संस्कारों की पाठशाला
विधा : बालकहानी संग्रह (सचित्र एवं बहुरंगी)
लेखक : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
प्रकाशक : यूथ एजेंडा और नये पल्लव, पटना
पृष्ठ : 112
मूल्य : 300 रुपए
आज के ज्यादातर बच्चे मोबाइल, टेलीविजन, स्मार्टफोन, सेल्फी, वीडियो और यू-ट्यूब में ही उलझे हुए हैं। घर आए अतिथियों को कहने पर भी नमस्ते नहीं करते। घर में ही मम्मी के हाथ का बना भोजन नहीं खाना चाहते। मैगी, पिज्जा, बर्गर, फास्ट फूड की फरमाइश प्रतिदिन रहती है। मम्मी-पापा के द्वारा अच्छी बातें सिखाने पर भी कहना नहीं मानते, बल्कि जिद करते हैं। सम्मान, संस्कार, अनुशासन, समय का सार्थक एवं सकारात्मक सदुपयोग उनकी जिंदगी में शामिल नहीं है। अक्सर वे भद्दे शब्दों का भी इस्तेमाल कर देते हैं। परिवार की परंपराएं, उत्सव, त्योहार उन्हें पसंद नहीं है। घर के कार्यों में मम्मी-पापा की सहायता करना नहीं चाहते। प्रार्थना, पूजा, मंदिर, मस्जिद, प्राणायाम, योग, ध्यान को स्वीकार नहीं करते। इस प्रकार की अनेक समस्याओं से वर्तमान समय में अधिकांश परिवार कोई समाधान नहीं निकाल पा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर के साहित्यकार डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा जी नये पल्लव प्रकाशन पटना के माध्यम से 38 बाल कहानियों की, 112 पृष्ठों की पुस्तक ‘संस्कारों की पाठशाला’ इन्हीं समस्याओं के समाधान के लिए ही लाए हैं। पौधारोपण, अंधविश्वास, संस्कारों की पाठशाला, सेल्फी का सच, प्यार, रक्षा बंधन, छोटी-सी मदद, जिद, दोस्ती का कर्ज, सुमति, श्रवण कुमार, अनुभव, उपकार का बदला इत्यादि कहानियों में अनेक ज्वलंत विषयों को उठाया गया है। उनकी प्यारी-प्यारी कहानियां पढ़कर बच्चे फोन, वीडियो, टेलीविजन आदि सब कुछ भूल कर इस पुस्तक को अपना मित्र अपनी सहेली बना लेंगे। प्रत्येक कहानी के साथ चित्र भी हैं, जो पाठक को पुस्तक पढ़ने के लिए आकर्षित करते हैं।
लोग जन्मदिन पर अपने बच्चों को यह पुस्तक उपहारस्वरूप दे सकते हैं। उनके जन्मदिन पर अतिथियों को भी रिटर्न गिफ्ट के रूप में भी यह पुस्तक भेंट कर कई परिवारों की समस्या का समाधान करने का पुण्य कार्य कर सकते हैं। शिक्षण संस्थानों के पुस्तकालय में इस पुस्तक को सम्मिलित किया जा सकता है। स्वतन्त्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, बाल दिवस, वार्षिकोत्सव इत्यादि में आयोजित प्रतियोगिताओं के विजेताओं को यह पुस्तक पुरस्कारस्वरूप दी जा सकती है।
बच्चे एवं इस पुस्तक के समीक्षक दिलीप अंकल आभारी हैं लेखक प्रदीप अंकल के, इतनी अच्छी पुस्तक के लिए। उनकी सशक्त कलम को नमन। बच्चे एवं उनके दिलीप अंकल प्रदीप अंकल की अगली पुस्तक की प्रतीक्षा करेंगे ही।
समीक्षक : दिलीप भाटिया, सेवानिवृत्त परमाणु वैज्ञानिक अधिकारी
राजस्थान परमाणु बिजली घर, 238 बालाजी नगर, रावतभाटा राजस्थान
मोबाइल : 9461591498.