नकाब
कहानी प्रतियोगिता 2020
प्रथम
सर्दियों की कोमल और गुनगुनी सुबह थी। दोपहर होने को चली थी, पर अभी भी शरीर में कपकपी दौड़ रही थी। जिस प्रकार नई नवेली दुल्हन का घूंघट से चेहरा देखने को सब लालायित रहते हैं, उसी प्रकार सूर्य के दर्शन के लिए सभी बहुत तत्पर हैं। मैं अखबार की ताजा खबरों का आनंद ले ही रहा था कि श्रीमती जी चाय का कप लेने आई और बोली – ‘‘क्या आप भी सुबह-सुबह अखबार ले बालकनी में बैठे रहते हैं।’’ और मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही चलती बनी। सुबह-सुबह उन्हें काम ही कितने रहते हैं, और यदि वह प्रतीक्षा करती भी तो मैं शायद उन्हें सही-सही उत्तर नहीं दे पाता। उन्हें कैसे बताता कि वह यहां किसे देखने के लिए बैठता है, पर आज जैसे उनके दर्शन नहीं होंगे, ऐसा ही लगता है। मैं बात कर रहा हूं एक लड़की की, जिसकी सूरत मैंने आज तक नहीं देखी है। जी हां, वह लड़की बुर्के में रोजाना दस बजे के आसपास आती है। ऊपर से लेकर नीचे तक पूरी तरह काले कपड़ों में लिपटी हुई। उसकी मीनाकार, कजरारी, काजल पूरित बड़ी-बड़ी सागर के मोती सी आंखें, जिनकी गहराइयों में कोई डूबे तो उसका उबरना मुश्किल हो जाए ! मुझे घूरती चली जाती थी। उसकी आंखों की चंचलता से उसके स्वभाव व सुंदरता का अनुभव होता था, जो मन को कुछ गुदगुदा जाता था।
पहले पहल तो मैंने उसे अपनी आंखों का भ्रम ही समझा, पर जब रोज-रोज का यही सिलसिला हो गया, तो हम भी यह मानने पर मजबूर हो गए कि वह नकाब वाली आंखें मुझे ही घूरती हैं। लगभग दो सप्ताह होने को आया था, आज मैंने सोचा था कि उसके आते ही उससे बात करने की कोशिश करूंगा कि क्या मैं आपको जानता हूं, पर लगता है ऐसा नहीं हो पाएगा, क्योंकि आज तो वह आई ही नहीं। मैं उदास मन से घर के भीतर आया तथा कोचिंग के लिए तैयार होने लगा। आज मेरा पूरा दिन उदासी में गुजरा था और अपनी उदासी के कारण घबरा-सा गया था।
क्या यह बेचैनी इसलिए थी कि मुझे आज उस नकाब वाली लड़की का चेहरा नहीं दिखा था ? क्या इन पांच सात दिनों में उन सुन्दर आंखों के साथ ही अपने दिनचर्या शुरू करने का मैं अभ्यस्त हो गया था। यदि हां, तो मुझे इस चीज को, इस भावना को अभी इसी वक्त पर रोक देना था। यही मेरे लिए अच्छा था, इसी संकल्प के साथ मैं अगली सुबह बालकनी में बैठे उनका इंतजार करने की बजाय अखबार लेकर सीधे नीचे ही चला गया, ताकि उसके आते ही उससे बात की जा सके।
जैसा कि मैंने सोचा था, नियत समय पर ही वह लड़की आई। उसकी नजरें ऊपर उठी हुई थी, जो मुझे ही खोज रही थी, लेकिन मैं उसके सामने आ गया, अचानक मुझे सामने पाकर वह सकपका गई और उसने नजरे नीचे कर ली।
मैंने कहा – ‘‘हेलो गुड मॉर्निंग, अगर आप बुरा ना माने तो क्या मैं पूछ सकता हूं कि क्या मैं आपको जानता हूं।’’
‘‘बिल्कुल सर, आप मुझे अच्छी तरह जानते हैं।’’ (उसने कहा) उसकी महीन सुरीली आवाज और सर कहने के तरीके ने मुझे झटका-सा दिया, क्या यह वही है ! लेकिन मैं आंखों देखी में विश्वास करता था, इसलिए मैंने कहा – ‘‘सॉरी, मैंने नहीं पहचाना।’’
उसने धीरे-धीरे नकाब हटाते हुए शरारत भरे ढंग से कहा – ‘‘तो मैंने सही सोचा था, आपने मुझे नहीं पहचाना, सर मैं सकीना, आप भूल गए ना मुझे।’’
सकीना को देखकर मुझे खुशी मिश्रित हैरानी हुई, मैंने कहा – ‘‘सकीना, तुम यहां ?’’
सकीना – ‘‘बस सर, आपका पीछा करते-करते आ गई। आपने क्या सोचा, इतनी आसानी से पीछा छुड़ा लेंगे मुझसे।’’
उसकी शरारत भरी बातें सुनकर मुझे हैरानी हुई। सकीना कभी इतनी मुखर नहीं थी, पर उसकी दो अर्थ वाली बात करने की आदत वैसी की वैसी थी। सकीना मेरी विद्यार्थी थी। दो साल पहले इंग्लिश स्पोकन क्लास में आई थी। बेहद संकोची स्वभाव की सकीना। क्लास के पहले दिन क्लास के बाहर आकर खड़ी हो गई थी, वह क्लास में देरी से आई थी। मैं क्लास लेने में खोया हुआ था। वह क्लास के गेट के बाहर आकर चुपचाप खड़ी हो गई थी। ना ही उसने मुझसे अंदर आने के लिए पूछा और ना ही मेरा ध्यान उस पर गया, जब दूसरे स्टूडेंट्स ने उसे देखा, तब मेरा ध्यान उस पर गया। मैंने कहा – ‘‘बाहर क्यों खड़ी हो ? अंदर आ जाओ ना, यह कोई स्कूल नहीं है, यदि देर हो गई हो तो चुपचाप आकर अपनी सीट पर बैठ जाया करो, ठीक है।’’
सकीना – ‘‘ठीक है सर।’’ कहकर जैसे ही वह अंदर आने को हुई, उसकी बैग का एक हिस्सा दरवाजे की सांकल में अटक गया और वह लड़खड़ा गई। मैंने आगे बढ़ कर उसे सहारा ना दिया होता तो वह गिर जाती। हमारी नजरों से नजरें मिली। उसकी आंखें आकर्षक थीं, जो किसी को भी अपने में उलझा सकती थी। उस पर बला की सुंदरता, मैं कहां तक अपने आप को बचाता। उसने संभलते हुए कहा – ‘‘सॉरी सर, थैंक यू सर, आई मीन सॉरी।’’ शायद अचानक हुई इस गतिविधि की वजह से वह घबरा-सी गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था वह क्या करें। चूंकि सब पूरी क्लास के सामने हो रहा था, कुछ विद्यार्थी तो नीचे गर्दन करके मुस्कुरा रहे थे और कुछ दबी जबान में कह रहे थे – ‘क्या सीन है यार।’
मैंने स्थिति को सामान्य करने के लहजे से थोड़ा जोर से बोला – ‘‘चलो चलो ठीक है होता है कभी-कभी ऐसा भी, तुम चलो अपनी सीट पर जाकर बैठो।’’
मैंने यह कह तो दिया था, लेकिन सच यह है कि बहुत देर तक मैं स्वयं सहज नहीं हो पा रहा था। वह अपनी जगह पर जाकर बैठ गई, क्योंकि वह देर से आई थी, तो सबसे पीछे वाली जगह उसे मिली थी। अगले दिन वह सबसे आगे बिल्कुल मेरे सामने वाली सीट पर बैठने लगी, और स्टूडेंट की तुलना में उसकी नजरें मुझे भिन्न प्रतीत होती थी। मैं जब कभी उसकी तरफ देखता, वह मुझे ही घूरती हुई दिखती थी। क्लास के एक महीने बाद वह क्लास के अंत तक रुकी रही। सभी क्लास धीरे-धीरे खाली हो रही थी। मुझे इसका अंदाजा हो गया था कि वह शायद बात करना चाहती है इसीलिए मैं फोन में अपने आप को बिजी दिखा रहा था। आप यह कह सकते हैं कि मैं भी बात करना चाहता था। क्लास खाली होते ही मैंने भी बाहर जाने का प्रति क्रम किया, इतने में ही वह बोली – ‘‘एक्सक्यूज मी सर’’
‘‘यस, बोलो’’ (मैंने कहा)
सकीना – ‘‘मैं आप को थैंक यू कहना चाहती हूं सर, उस दिन अगर आपने मुझे संभाला नहीं होता तो मैं गिर जाती।’’
‘‘इट्स ओके, मैं आपको गिरने कैसे देता।’’ (मैंने शरारत भरे ढंग से कहा)
सकीना – ‘‘सर, मेरा नाम तो जानते हैं ना आप।’’
‘‘हां, बिल्कुल जानता हूं मैं तुम्हारा नाम।’’ मैंने कहा
सकीना – ‘‘सर, मुझे आपका मोबाइल नंबर चाहिए। यदि इंग्लिश में कुछ पूछना हो तो अगर आप सही समझे तोऽ’’
‘‘वैसे मैं अपना मोबाइल नंबर स्टूडेंट्स को कम ही देता हूं। लेकिन आपको मना करने का मन नहीं हो रहा। देता हूं नंबर।’’ (मैंने हंसते हुए कहा)
सकीना – ‘‘थैंक यू सर’’
फिर गुड नाइट, गुड मॉर्निंग के मैसेजेस से शुरू हुई हमारी बातें, कब घंटे भर की बातें बन गई, हमें पता ही नहीं चला। मैं उसे फोन कम ही करता था, वह मुझे ज्यादा फोन करती थी। जिस दिन उसका फोन नहीं आता था, दिन अधूरा-अधूरा सा लगता था, फिर भी मैं उसे फोन करने से बचता रहता था। बातें हमारी फॉर्मल ही होती थीं, पर होती जरूर थी। उसकी बातों से, उसकी आंखों से पता लगता था कि वह मुझे पसंद करती है। मैं भी उसे पसंद करता था, पर यह जाहिर करने से बचता था। क्योंकि मैं शुरू से ही अत्यधिक व्यवहारिक इंसान था। एक तो उसका धर्म, दूसरा मेरी और उसकी उम्र में फासला मुझे आगे बढ़ने से रोकता था।
इंग्लिश स्पीकिंग क्लास का लास्ट दिन था। उस दिन सभी स्टूडेंट्स ने पार्टी करने की सोची थी। वह नीले रंग की सिल्क की साड़ी में आई थी, उसके बाल खुले हुए थे, ज्यादा मेकअप नहीं किया गया था और इस सौम्यता में ही वह बला की सुंदर लग रही थी। किशोरावस्था को पार करके युवावस्था की तरफ यह उसका पहला कदम था।
मैंने अपने आप को देखा, मानकता के हिसाब से युवावस्था खत्म हो चुकी थी। शादी के लिए मेरे घरवाले चिंतित थे। युवावस्था में जो चुहलता, चुलबुलापन होता है, वह सब मुझे बचपना लगने लगा था। कहीं से भी उसकी और मेरी जोड़ी फिट नहीं बैठती थी। उसी दिन मैंने निर्णय ले लिया था। मैं यह सोच ही रहा था कि मैंने देखा कि वह सकुचाती तथा शर्माती हुई मेरे पास ही आ रही है, मैं थोड़ा संभल गया।
सकीना – ‘‘हेलो सर’’
‘‘हेलो, मैं तुम्हें ही देख रहा था। आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो। (मैं ना चाहते हुए भी खुद को सच कहने से नहीं रोक पाया था) प्रतिक्रिया स्वरूप उसके पतले होठों पर मुस्कुराहट छा गई थी, जिसे वह छुपाने का नाकामयाब कोशिश कर रही थी। उसके गोरे गालों पर लालिमा छा गई और नजरे शरमा कर नीचे की ओर झुक गई। उसने बड़ी नजाकत से कहा था – ‘‘थैंक यू सर, आपको पसंद आया। एक्चुअली मैंने पहली बार साड़ी पहनी है, डर रही थी कि पता नहीं कैसी लग रही हूं।’’ शायद वह अपनी और बड़ाई सुनना चाह रही थी, मैंने अपनी बात फिर से दोहराई – ‘‘तुम बेहद सुंदर लग रही हो। यह साड़ी सूट कर रही है तुम्हें।’’
सकीना – ‘‘सर, आज क्लास का आखरी दिन है, पता नहीं आज के बाद मिलना हो या नहीं।’’
‘‘वह तो है ही, आगे का क्या प्लान है स्टडीज को लेकर तुम्हारा।’’ (मैंने कहा) मेरी बात सुनकर वह कुछ अनमनी-सी हो गई। शायद वह इस उत्तर की आशा नहीं कर रही थी, या फिर बात का रुख बदलता देख भी वह नाखुश थी। हम कुछ और बातें करते, इससे पहले ही मुझे स्टूडेंट्स ने घेर लिया और लास्ट तक पीछा नहीं छोड़ा।
घर आया तो घरवालों ने अलग ही अलाप छेड़ रखा था। मेरी शादी के लिए मुझे लड़कियों की तस्वीरें दिखाई जाने लगीं, लेकिन मुझे तो हर तस्वीर में सिल्क की साड़ी में लिपटी हुई खुले बालों वाली सूरत ही दिखाई दे रही थी। उस दिन बड़ी मुश्किल से अपना पीछा छुड़ा पाया मैं अपने घर वालों से। अगले तीन दिन पता नहीं कितनी ही बार मैंने फोन उठाकर देखा था, उसका कोई मैसेज नहीं था। शायद वह इंतजार कर रही थी कि मैं उसे मैसेज करूं, पर मैं तो अपने ही उधेड़बुन में लगा था। चैथे दिन सवेरे उठते ही जब मैंने मोबाइल पर नजर डाली, तो मैसेज बॉक्स में उसके दो मैसेज थे। उन्हें देखते ही मेरा मन खिल उठा। पहला मैसेज गुड मॉर्निंग सर, तथा दूसरे मैसेज में उसने लिखा था – सर, स्टडीज को लेकर मेरे मन में कुछ डाउट्स रह गए हैं, क्या हम कहीं बाहर मिल सकते हैं ? आपसे मिलकर उन डाउट्स को क्लियर करना चाहती हूं।
मैं उसके डाउट्स भली प्रकार से जानता था। मैंने उसे मैसेज करके कॉफी शॉप का एड्रेस देखकर आने का समय सेंड कर दिया। मैं जानता था कि हमारे आगे कुछ नहीं होने वाला, फिर भी मैं उससे मिलने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा था। मैं नियत समय पर कॉफी शॉप पहुंच गया था। कॉफी शॉप में चारों तरफ कपल्स बैठे हुए थे। मैंने भी अपने बारे में कई बार सोचा था कि मैं भी कभी ऐसे कॉफी शॉप में अपने पार्टनर के साथ बैठूंगा, लेकिन वह सकीना नाम की कोई लड़की होगी, यह मैंने नहीं सोचा था। शायद मैं अभी भी कंफ्यूज था। मैं यही सब बातें सोच रहा था कि सामने से मुझे सकीना आती हुई दिखी, उसने बाल खुले छोड़े थे, पिंक कलर का टॉप तथा नीले रंग की जींस पहन रखी थी, हाथ में घड़ी थी। उस समय मैं अपने आपको खुश किस्मत मान रहा था कि इतनी सुंदर लड़की को मुझसे मिलने में रुचि है। कुछ ही देर में वह मेरे सामने थी। मैंने शिष्टता पूर्वक खड़े होकर उसका स्वागत किया तथा उसके बैठने के लिए उसकी कुर्सी पीछे की और खिसका दी। वह थैंक यू बोलकर उस कुर्सी पर बैठ गई। हम दोनों ने ही अपने लिए कॉफी मंगवाई।
‘‘स्टडीज को लेकर तुम्हें कुछ डाउट थे, तुमने कहा था, क्या हुआ।’’ (मुझे कोई बात नहीं सूझी तो मैंने यहीं से अपनी बात की शुरुआत की)
सकीना – ‘‘हां, वह अपने फ्यूचर के बारे में सोच रही थी, तो सोचा आपसे बात कर लूं।’’ वह कुछ अटकती हुई बोली।
‘‘जरूर, करो ना बात’’
सकीना – ‘‘हां सर, वही तो करने आई हूं। क्लास के बाद आपने तो एक बार भी फोन नहीं किया। कुछ नाराजगी है क्या।’’
अचानक इस प्रश्न की आशा मुझे नहीं थी और मैं उसे इसका कुछ वाजिब कारण भी नहीं दे सकता था, तो मैंने बचने का प्रयास किया और कहां – ‘‘फोन तो तुमने भी नहीं किया, कुछ ज्यादा व्यस्त हो गई थी क्या ?’’
सकीना – ‘‘कह सकते हैं सर, मेरे पापा का ट्रांसफर दिल्ली हो गया है। हम एक वीक में ही वहां शिफ्ट होने वाले हैं। सोचा एक बार आपसे मिल लूं, फिर पता नहीं कब आना हो। आपसे फोन पर तो बात होती रहेगी ना ?’’
‘‘हां, क्यों नहीं, कोई काम हो तो जब तुम चाहो मुझे फोन कर सकती हो।’’ (मैंने कहा)
सकीना – ‘‘अगर काम ना हो तो भी मैं क्या आपको फोन कर सकती हूं। मुझे आपकी बहुत याद आएगी, क्या आपको भीऽऽ’’ यह कहकर वह चुप-सी हो गई। उसने नजरें झुका ली।
मैं कुछ कहता उससे पहले ही बेटर कॉफी लेकर आ गया और मुझे कुछ संभलने का मौका मिल गया। बात ऐसे मोड़ पर आ गई थी कि चुप रहने से काम नहीं चलने वाला था। वह लड़की होकर यहां तक बात खींच लाई थी, मैं अभी वहीं का वहीं खड़ा था।
मैंने कॉफी का एक कप उठाया और उसकी तरफ बढ़ा दिया। उसने जैसे ही कॉफी का कप लिया, मैंने उसके नाजुक हाथ पकड़ लिए और कहा – ‘‘तुम मुझे अच्छी लगती हो सकीना, मैं तुम्हें पसंद करता हूं … क्या तुम भी मुझे …’’ (मैंने बात उसके लिए अधूरी छोड़ दी थी)।
उसने गर्दन हिलाकर ‘हां’ कहा था और शरमा कर नजरें झुका ली थीं।
‘‘इसके आगे और कुछ कहने की जरूरत नहीं है। मैं सब जानता हूं और बहुत पहले से जानता हूं, लेकिन तुम्हारे लिए तुम्हारा कैरियर अभी शुरू हुआ है, तुमने एक बार मुझे कहा था कि मैं आईएएस ऑफिसर बनना चाहती हूं, तो कम से कम दो साल अपनी पढ़ाई को तुम्हें देना चाहिए। तुम मुझसे बहुत छोटी हो, अगर मैं चाहूं भी तो हमारी उम्र का फासला मैं नहीं मिटा सकता। इस बीच कभी भी मेरी जरूरत पड़े तो तुम बेझिझक मुझे फोन कर सकती हो। … तुमने मुझसे पूछा मुझे तुम्हारी याद आएगी या नहीं, तो इसका जवाब है ‘हां’, मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी सकीना। मुझे मेरे घरवाले बंधन में बांध देना चाहते हैं और मुझे नहीं लगता तुम अभी किसी भी बंधन में बंधना चाहोगी।’’
यह कहकर मैंने अपनी बात खत्म की और पानी से भरा गिलास पी गया। मैंने उसे देखा, तो उसका पूरा चेहरा लाल हो गया था और उसकी आंखों में आंसू थे। मैंने उसके हाथों पर अपने हाथ रख दिए और कहा – ‘‘अगर मेरी कोई बात तुम्हें गलत लगी हो तो मुझे माफ कर देना सकीना।’’
सकीना – (अपने आप को संभालते हुए) ‘‘इट्स ओके सर, मैं समझ गई।’’
‘‘आई मिस यू’’ (मैंने कहा) और यह बात कहते हुए मुझे भी अपनी आंखों में नमी महसूस हुई, जिसे मैंने मुश्किल से सकीना से छुपाया। यह हमारी आखिरी मुलाकात थी। उसके बाद उसका कोई फोन या मैसेज मुझे नहीं आया था।
यह वाक्या एक याद बनकर मेरे मन के किसी कोने में समाया हुआ था, जिसे कभी छेड़ना मैंने उचित नहीं समझा। सुधा जो कि मेरी पत्नी थी, उससे मिलने के बाद मुझे आकर्षण और प्रेम में अंतर भली-भांति समझ आ गया था। मुझे इस बात की बिल्कुल आशा नहीं थी कि ठीक दो साल बाद मेरा सामना फिर से सकीना से होगा।
सकीना – ‘‘कहां खो गए सर ? मुझसे मिलना अच्छा नहीं लगा।’’
सकीना की बात सुनकर मैं फिर से वर्तमान में लौट आया और बोला – ‘‘नहीं, कुछ नहीं, बस कुछ याद आ गया था।’’
सकीना – ‘‘सर, क्या यह आपका घर है ?’’
‘‘हां, यहीं रहता हूं मैं, पर तुम यहां कैसे ?’’ (मैंने पूछा)
सकीना – ‘‘सर, आपने कहा था ना कि पढ़ाई में ध्यान दो, तो यहीं पास में आईसीजी कॉलेज है, उसी में एडमिशन लिया है।’’
‘‘आओ, अंदर आओ बैठकर बात करते हैं।’’ (मैंने घर की ओर इशारा करते हुए बोला। मैं सकीना को सुधा से मिलाना चाहता था। उसे बताना चाहता था कि मेरी शादी हो चुकी है, पर मेरे मन का एक कोना यह भी चाहता था कि सकीना अंदर आने से मना कर दे।)
सकीना – ‘‘ठीक है सर, चलिए इसी बहाने आपका घर भी देख लूंगी।’’
मैं घर में आगे की तरफ पथ प्रदर्शक बनकर चल रहा था। घर के अंदर प्रवेश करते ही मैंने सुधा को आवाज लगाई। मैंने सकीना के चेहरे पर प्रश्न मिश्रित जिज्ञासा देखी थी। जब तक सुधा आ नहीं गई, मैं उसे कोई जवाब नहीं दे सका। सुधा के आते ही मैंने सुधा को सकीना से मिलाया था – ‘‘सुधा, यह मेरी स्टूडेंट है सकीना और सकीना यह मेरी वाइफ है सुधा।’’
हम सब कमरे में आकर बैठ गए। मैंने सकीना के चेहरे को ध्यान से देखा था, सुधा से मिलाते ही उसके चेहरे का रंग उड़ गया था। जिस चेहरे पर अब तक चंचलता थी, अब उसकी जगह गंभीरता ने ले ली थी। शायद मैंने सकीना का दिल तोड़ दिया था, पर मेरी समझ में यह जरूरी था।
सामान्य बातचीत में पता चला, सकीना के पापा ने दो साल दिल्ली में जॉब करने के बाद वापिस अपना तबादला यहीं करवा लिया था और सकीना के अनुसार यह सिर्फ एक इत्तेफाक था कि उसका कॉलेज मेरे घर के इतना पास था। जब मैं उसे घर जाने के लिए बाहर छोड़ने आया, उसने यही बताया।
सकीना – ‘‘मैंने जब आपको पहली बार बालकनी में देखा, तो सोचा कि जब आप मुझे खुद पहचानोगे तब आपसे बात करूंगी, पर मुझे नहीं पता था कि आप तो मुझे भूल ही गए हो।’’
मैंने कुछ कहना चाहा, पर सिर्फ इतना निकला – ‘‘सकीना … सकीना’’
‘‘बाॅय सर’’ दोबारा उसकी आंखों में आंसू थे, पर इस बार मैंने अपनी आंखों में वह नमी महसूस नहीं की थी। हां, मैंने एक लड़की का दिल दोबारा दुखाया था। इसे मेरा अब अपराध बोध कहें या कुछ और, पर आज भी जब किसी नकाब वाली लड़की को देखता हूं, तो मुझे सकीना ही नजर आती है।
यह हमारी आखिरी मुलाकात थी और किसी के नए जीवन की शुरुआत भी।
पता : ए 10 अशोक विहार, न्यू सांगानेर रोड, मानसरोवर, जयपुर-302020 राजस्थान
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