काश !
कहानी प्रतियोगिता 2020
तृतीय
नीले अंबर पर काले बादलों का झुण्ड आ जमा था। तेज बारिश आने के आसार नजर आ रहे थे। प्रियांशी बाजार गयी हुई थी, उसे भीग जाने की चिन्ता सताने लगी।
घर से निकली तब तो बारिश आने की कोई संभावना नहीं थी… मई महिना जहां शाम भी जलती भट्टी समान धीरे-धीरे ठंडी होती है, ऐसे में बारिश का आना अप्रत्याशित था।
बारिश शुरू हो गयी, प्रियांशी लपककर एक ऑटो में सवार हो गयी, मगर हालात ऐसे हो गए थे कि लग रहा था कि आज तो भीगते हुए ही घर जाना होगा। ऑटो में सवार अन्य सवारियों को भी भीग जाने की चिन्ता सताने लगी थी।
प्रियांशी के साथ बैठी दो लड़कियों ने बारिश से बचने के लिए अपना स्कार्फ निकाल लिया और सिर, मुंह ढकते हुए पूरी चाक-चैबंद हो गयी।
बारिश से बचने के लिए खिड़की, गेट के पास बैठी सवारियां भी आगे-पीछे हो रही थीं, मानो बारिश नहीं, कोई छूत की बीमारी पानी के रूप में बरस रही हो, जिसके संपर्क में आने से वे बीमार हो जाएंगे। रास्ते में भी यही नजारा देखने को मिल रहा था… लोग दुकानों के शेड के नीचे खड़े थे, बरसात से बचने के लिए।
इन सब के बीच प्रियांशी का ध्यान अपने ही ऑटो में सवार एक छोटी सी बच्ची पर गया। वो सबकी तरह बारिश से बचने की कोशिश नहीं कर रही थी, बल्कि खिड़की के पास सटकर बरसती बूंदों को हथेली में भरकर खुश हो रही थी। ‘बारिश से भीग जाऊंगी, कपड़े खराब हो जाएंगे या जुकाम हो जाएगा’ … ऐसा कोई भी नकारात्मक भाव उसके मन में स्थान नहीं बना सका। बेफिक्र बच्ची अपनी मम्मी की गोद में बैठने की बजाय भीड़ भरे ऑटो में ही खड़ी होकर बरसते आकाशीय अमृत का आनंद ले रही थी।
प्रियांशी मंत्रमुग्ध सी उस बच्ची की नटखट अठखेलियां निहार रही थी। कुछ देर बाद उस छोटी सी परी का स्टॉप आ गया और वो अपनी मम्मी के साथ ऑटो से उतर गयी।
उतरते ही तेज बारिश ने उनका स्वागत किया, लेकिन बच्ची के मुंह से जो शब्द निकले, उससे प्रियांशी के साथ-साथ ऑटो में सवार सभी के चेहरों पर एक मुस्कराहट छा गयी। उस मासूम के शब्द थे- ‘‘वाह, मजा आ गया !’’
इस पूरे घटनाक्रम में प्रियांशी ने महसूस किया कि जून माह की तपती दोपहर के बाद वो पहली बरसती सुहानी शाम थी, मगर उस अचानक से आयी बारिश से सब परेशान हो गये थे, किसी को भी बारिश में भीगकर मजा नहीं आया !
प्रियांशी सोच में डूब गयी – जब बारिश नहीं आती है तो लोग परेशान होते हैं कि कितनी गर्मी है, मौसम ठंडा हो जाता तो कितना अच्छा होता और जब प्रकृति आसमानी नेमत बरसाती है तब भी कोई खुश नहीं होता, बल्कि सबकी जुबां पर शिकायतें ही होती हैं कि अरे, ऑफिस जाने का टाइम है, इस बारिश को भी अभी आना था ! या फिर क्या यार, घर जाने का टाइम हो गया और ये बारिश शुरू हो गयी !
…और फिर शिकायतों के साथ-साथ बारिश में भीग जाने का डर, भीगने पर बीमार हो जाने का डर, बिजली चमके तो उसका डर, बादल गरजे तो उसका भी डर… सबको डर-डर कर जीने की आदत सी हो गयी है।
मगर वो छोटी बच्ची जो पानी में भीग रही थी, वो इसलिए खुश थी क्योंकि वो एक छोटी बच्ची थी ! उसे अभी कोई डर नहीं था… वहीं व्यस्क अपने ही आन्तरिक डर के कारण अपने एहसास, भावनाएं छुपाकर रखते हैं।
क्यों ना बड़े भी बारिश में बच्चे बन जाएं जो भीगने से डरे नहीं, बल्कि झमाझम बरसात का बांहे फैलाकर स्वागत करें, खासकर पहली बारिश का… फिर चाहे घर में हों या बाहर, बूंदों को हथेली में भरने की ख्वाहिश रहे हमेशा।
सभी के दिलों में एक छोटा बच्चा जिन्दा रहे ताउम्र, जो पहली बारिश में भीगने पर परेशान होने की बजाय कह सके कि वाह, मजा आ गया !
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