बालक की सूझबूझ
प्रियंका श्रीवास्तव ‘शुभ्र’

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर स्कूल के बच्चों की प्रभात फेरी की टोली निकली। उमंग और जोश के साथ कदमताल मिलाते हुए बच्चे हर गली और मुहल्ले को जागृत करते भारत माता के जयकारे लगा रहे थे। आठ वर्षीय विजय हाथ में तिरंगा लिए सबसे आगे था।
खूंखार भेड़िया रूपी एक मानव कंक्रीट के जंगल अर्थात अधबने मकान की ओट में ताक लगाए बैठा था। नन्हें विजय की निगाह उसकी बंदूक की नाल से टकराई। बात उसे समझते देर न लगी। तत्क्षण हाथ उठाकर टोली को जमीन पर लेट जाने का इशारा किया। शिक्षक ईश्वरदास ने सारे बच्चों को लेटे-लेटे पीछे खिसकने का निर्देश दिया। दो अन्य शिक्षक पीछे से खिसक कर उस बनते भवन की छत पर चढ़ गए, जिसकी ओट में वह खूंखार छुपा था। वे लोग ऊपर पहुंच वहां से ईंट-पत्थर, सीमेंट-बालू की बोरी, जो मिला उसे उस खूंखार मानव पर बरसाने लगे।
क्षण भर में बच्चों के शोर से पूरे मुहल्ले के लोग आ गए और उस आतंकी को दबोच लिया। उसी की बंदूक के बट से मार-मार कर भीड़ ने उसे अधमरा कर दिया। तबतक पुलिस भी पहुंच गई और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस के डंडे की चोट से उसका मुख खुला और उसके अन्य चार साथी भी पकड़े गए।
इस प्रकार नन्हें विजय की सूझबूझ से एक अप्रिय घटना होने से बच गई।