निःशब्द प्रेम
THIRD : कहानी प्रतियोगिता 2021

’‘अरे वर्मा साहब, काट दो इस पेड़ को, बाद में दिक्कत होगी, बहुत टेढ़ा पेड़ है। अभी तो छोटा है तो काट दो।’’
‘‘सही कह रहे हो आप, किसी माली को बुलवाकर कल इसे कटवा ही देता हूं।’’
सुबह कुल्हाड़ी लिए माली आ गया और वह उस पेड़ को काटने ही वाला था कि उसे कर्नल साहब ने देख लिया। वह उस माली पर एकदम चिल्लाए और बोले – ‘‘अरे, तुम ये क्या कर रहे हो ? इस पेड़ को क्यों काट रहे हो ?’’
माली ने कर्नल साहब की बात सुन अपनी कुल्हाड़ी रोक लिया और कहा, ‘‘साहब, मुझे तो वर्मा साहब ने कहा था इस पेड़ को काटने के लिए और अभी वह खुद इसे मुझे बता कर गए हैं।’’
कर्नल साहब माली के पास आये और बोले, ‘‘तुम अपनी कुल्हाड़ी लेकर वापस जाओ, यह पेड़ नहीं कटेगा।’’
माली बोला, ‘‘साहब, वर्मा साहब कह रहे थे कि यह पेड़ बहुत टेढ़ा है इसलिए काटना पड़ेगा।’’
कर्नल साहब ऊंची आवाज में बोले, ‘‘मैंने कहा यह पेड़ नहीं कटेगा, तुम जाओ यहां से, वर्मा साहब से मैं बात कर लूंगा।’’ माली अपनी कुल्हाड़ी कंधे पर रख वापस चला गया।
इतने में ही वर्मा साहब यह देखने आ पहुंचे कि माली ने पेड़ काटा या नहीं। जब उन्होंने वहां कर्नल साहब को खड़े देखा तो कहा, ‘‘कर्नल साहब, यहां माली नहीं है और उसने पेड़ भी नहीं काटा !’’
कर्नल साहब – ‘‘उसे मैंने पेड़ काटने नहीं दिया और वापस भेज दिया।’’
वर्मा साहब – ‘‘क्यों ?’’
कर्नल साहब – ‘‘क्योंकि यह पेड़ नहीं कटेगा। घर में अगर कोई बच्चा लूला लंगड़ा पैदा हो जाता है तो उसका डॉक्टर से इलाज करवाया जाता है, ना कि उसे घर से बाहर फेंक दिया जाता है। आप चिंता मत करो, मैं इसका इलाज कर दूंगा।’’
…और उन्होंने उसी वक्त उस पेड़ को तार से अपने घर के पिलर से सीधा बांध दिया और पूरे एक साल तक उस पेड़ की अच्छी तरह से देखभाल की। जब उस पेड़ का तना मजबूत और सीधा हो गया तो उन्होंने उस तार को हटा दिया। पेड़ पूरी तरह सीधा और बड़ा हो चुका था। अब उसमें फूल भी आने लगे थे। वह बहुत सुंदर और हरा-भरा दिखने लगा। लोग उसमें से फूल तोड़ कर पास के ही मंदिर में भगवान को अर्पित करने लगे। घरों में आने-जाने वाले मेहमान उस पेड़ की छाया तले अपनी गाड़ियां खड़ी कर देते। वैसे तो उस पेड़ के नीचे अधिकतर वर्मा साहब की ही गाड़ी खड़ी होती थी। वह पेड़ अब कई तरह के पक्षियों का आशियाना बन गया था। गिलहरियां उसकी टहनियों पर कूद-कूद कर टिलटिलाने लगी थीं। उसके नीचे बैठकर आने-जाने वाले मजदूर राहत की सांस लेते, कुछ लोग उसके नीचे खड़े होकर किसी का इंतजार करते। कभी कुत्ते उसकी शीतल छांव व ठंडी हवाओं का लुफ्त लेते हुए सोते रहते। वो पेड़ अब बहुत लोगों का सहारा बन गया था।
कुछ सालों के बाद कर्नल साहब की तबीयत खराब हो गई और उनको अस्पताल में भर्ती करवाया गया, हालांकि उनकी उम्र भी हो गई थी। उनकी सेहत लगातार बिगड़ने लगी। दूसरी तरफ उस हरे-भरे पेड़ की पत्तियां भी पीली पड़ने लगी। कर्नल साहब की तबीयत में कोई सुधार नहीं हो रहा था और पेड़ की पत्तियां पीली होने के साथ-साथ अब उसकी शाखाएं भी सूखने लगी थीं।
एक महीने के बाद फूलों से आच्छादित हरा-भरा वह पेड़ बिल्कुल सूख गया। उसके ऊपर अब न फूल बचे थे न पत्ते, उसकी छाल तने से अपने आप हटने लगी। अब वह एक सूखा ठूठ हो गया था।
उस पेड़ को बिल्कुल सूखा देख वर्मा साहब ने फिर उसी माली को पेड़ कटवाने के लिए बुलवा लिया। माली ने दोपहर तक उस पेड़ को काट दिया और उसकी लकड़ियों को एक तरफ रख दिया।
शाम को वर्मा साहब के पास फोन आया कि कर्नल साहब का देहांत हो गया है। अब उनको घर ला रहे हैं।
जब कर्नल साहब को उनकी अंतिम यात्रा पर शमशान ले जाया जा रहा था, तो अचानक बहुत तेज बारिश होने लगी। वर्मा साहब ने उस पेड़ की कटी लकड़ियों को देखकर कहा, ‘‘ये लकड़ियां यहां पड़ी-पड़ी बारिश में बेकार हो जाएंगी, इनको शमशान पहुंचा दो।’’
शमशान में कर्नल साहब को उन्हीं लकड़ियों में जलाने कि तैयारियां हो गई। कर्नल साहब को उसी पेड़ की लकड़ियों में पचंतत्व में विलीन कर दिया गया। दोनों एकसाथ इस दुनिया को अलविदा कह गए।
सचमुच प्रेम की कोई भाषा नहीं होती। आज एक निःशब्द प्रेम एकसाथ जल गया।
पता : जयपुर, राजस्थान
behad Maarmik kahani, Nishabd prem , sach much, kaafi kuchh sochne pe majboor karti kahani…
aapko badhaai…